ISC / गद्‌य संकलन




1. पुत्र- प्रेम

प्रेमचंद
प्रेमचंद जी आधुनिक काल के रचनाकार हैं। इनके बचपन का नाम धनपत राय था। आरंभ में ये नवाबराय के नाम से लिखते थे। जहाँ इनकी रचनाओं में हमें आदर्श्वाद के दर्शन होते हैं, वहीं यर्थाथवाद भी दिखाई देता है। १९१० में उनकी रचना सोजे-वतन (राष्ट्र का विलाप) के लिए हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने तलब किया और उन पर जनता को भड़काने का आरोप लगाया। सोजे-वतन की सभी प्रतियाँ जब्त कर नष्ट कर दी गईं। कलेक्टर ने नवाबराय को हिदायत दी कि अब वे कुछ भी नहीं लिखेंगे, यदि लिखा तो जेल भेज दिया जाएगा। इस समय तक प्रेमचंद, धनपत राय नाम से लिखते थे।
रचनाएँ: 'पंच परमेश्‍वर', 'गुल्‍ली डंडा', 'दो बैलों की कथा', 'ईदगाह', 'बड़े भाई साहब', 'पूस की रात', 'कफन', 'ठाकुर का कुआँ', 'सद्गति', 'बूढ़ी काकी', 'तावान', 'विध्‍वंस', 'दूध का दाम', 'मंत्र' .सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, गोदान, मंगलसूत्र (अपूर्ण) आदि.।
भाषा: इन्होंने जहाँ उर्दू शब्‍दों का प्रयोग किया है, वहीं मुहावरेदार भाषा को भी अपनाया है।
शब्दार्थ:
१.श्रेणी- दर्जा
२. होनहार- योग्य
३.संशय- दुविधा
४.विस्मयकारी- आश्‍चर्य
५.खेद- दु:ख
६.शर- काँटा
७. चित्‍त- हृदय।


प्रश्‍न- चैतन्यदास कौन थे ? उनके कितने पुत्र थे ? वे किससे ज्यादा स्‍नेह करते थे और 
       क्यों ? उन्होंने कौन-सी गलती की और किस प्रकार उन्हें अपनी गलती का एहसास 
       हुआ ?
-  कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद द्‌वारा रचित पुत्र-प्रेम कहानी में पिता-पुत्र के वास्तविक और अवास्तविक प्रेम को उजागर करने की कोशिश की गई है। प्रेमचंद जी ने अपनी रचनाओं में समाज के यथार्थ रूप का चित्रण किया है। इनकी रचनाओं में हिंदी, उर्दू शब्दों का बाहुल्य है। गोदान,रंगभूमि, कर्मभूमि आदि रचनाएँ इनके द्‌वारा रचित है।
        चैतन्यदास पुत्र-प्रेम कहानी के प्रमुख पात्र थे। वे अर्थशास्त्र के ज्ञाता और उसका अपने जीवन में व्यवहार करने वाले थे। वे वकील थे, दो-तीन गाँवों में उनकी जमींदारी थी।
        चैतन्यदास के दो पुत्र थे। बड़ा पुत्र प्रभुदास और छोटा शिवदास था।
        चैतन्यदास प्रभुदास से ज्यादा स्‍नेह करते थे। प्रभुदास में सदुत्साह की मात्रा ज्यादा थी और पिता को उसकी जात से बड़ी-बड़ी आशाएँ थी। वे उसे विद्‌योन्‍नति के लिए इंग्लैंड भेजना चाहते थे। उसे बैरिस्‍टर बनाना चाहते थे जिससे उनके खानदान की मर्यादा और उनका ऐश्‍वर्य बना रहे। यही कारण था कि वे उससे ज्यादा स्‍नेह करते थे।
        चैतन्यदास ने अपने पुत्र प्रभुदास के इलाज के लिए डाक्टर के सुझाव पर भी इटली के किसी सेनेटोरियम में भेजना उचित नहीं समझा क्योंकि वहाँ भेजने पर भी वे पूरी तरह वहाँ से ठीक होकर आएँगे, यह निश्‍चित रूप से नहीं कहा जा सकता था। उन्हें लगा कि जब यह जरुरी नहीं है कि वे ठीक होंगे ही तब इस पर रुपया खर्च करना व्यर्थ है। स्वयं उन्हीं के शब्दों में-
इतना खर्च करने पर भी वहाँ से ज्यों के त्यों लौट आये तो ?’
        हम कह सकते हैं कि वे पुत्र की तुलना में अपने धन को ज्यादा महत्‍त्‍व देते थे। पत्‍नी द्‌वारा बार-बार उन्हें डाक्टर का सुझाव मानने के लिए कहे जाने पर भी वे तरह-तरह के बहाने बनाते हैं। जब पत्‍नी तर्क एवं जीद्‍द करती है तो वे कहते हैं कि –
इटली में ऐसी कोई संजीवनी नहीं रखी हुई है जो तुरंत चमत्‍कार दिखाएगी। जब वहाँ भी केवल प्रारब्ध ही की परीक्षा करनी है तो सावधानी से कर लेंगे। पूर्व पुरुषों की संचित जायदादौर रखे हुए रुपए मैं अनिश्‍चिथित की आशा पर बलिदान नहीं कर सकता।’
इस प्रकार धन के मोह में वे अपने पुत्र रत्‍न को खो देते हैं। उसकी मृत्‍यु हो जाती है। यही गलती उन्होंने की।
        उन्हें अपनी गलती का एहसास मणिकर्णिका घाट पर एक देहाती से मिलने पर हुआ जो अपने पिता का दाह संस्कार अपने पिता की इच्छा पूर्ति के अनुसार करने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। देहाती युवक के शब्दों में-
भैया, रुपया-पैसा हाथ का मैल है। कहाँ आता है, कहाँ जाता है, मनुष्‍य नहीं मिलता । जिंदगानी है तो कमा खाऊँगा। पर मन में यह लालसा तो नहीं रह गई कि हाय ! यह नहीं किया, उस वैद्‍य के पास नहीं गया, नहीं तो शायद बच जाते।’
        अंतत: हम कह सकते हैं कि धन से अधिक महत्‍त्‍व किसी के जीवन का नहीं होता है। धन आता-जाता है पर इंसान नहीं।


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                                                           2.    गौरी
                                                सुभद्राकुमारी चौहान
रचनाकार परिचय:
१. सुभद्राकुमारी चौहान आधुनिक काल की रचनाकार हैं।
२.  देश-प्रेम की भावना इनके हृदय में कूट-कूट कर भरी थी।
३. भाषा : इन्होंने अपनी रचनाओं मे शुद्‍ध खड़ी बोली का प्रयोग किया है।
४. रचनाएँ : त्रिधारा, मुकुल, बिखड़े मोती, उन्मादिनी आदि।

शब्‍दार्थ:
१. तन्मय- मग्‍न
२. पूनो- पूर्णिमा
३.पग- पाँव
४. कोटिश:- असंख्य
५.यथेष्‍ट- जितना चाहिए उतना

प्रश्‍न: गौरी कौन है ? उसका स्वभाव कैसा था और क्यों ? उसे किस बात की आत्मग्लानी होती है ? उस समय  
       वह क्या सोचती है ? कौन, किसके लिए चिंता की सामग्री है ? वह अपने पिता से विवाह के लिए मना
       क्यों नहीं कर पाती? किसके प्रति गौरी का मन श्रद्‍धा और घृणा से भर जाता है और क्यों ? गौरी को  
       किस बात की चिंता थी और क्यों ? सीताराम जी का संक्षिप्‍त परिचय दें। वे दो बच्‍चों के होते हुए भी क्यों
      विवाह करना चाहते थे ? गौरी ने कानपुर जाने की हठ क्यों की ? वहाँ जाकर उसने क्या किया?

उत्‍तर- सुभद्राकुमारी चौहान द्‍वारा रचित 'गौरी’ एक प्रसिद्‍ध कहानी है। सुभद्राजी
         आधुनिक काल की रचनाकार हैं। देश-प्रेम की भावना इनके हृदय में कूट-कूट  
         कर भरी थी। इन्होंने अपनी रचनाओं मे शुद्‍ध खड़ी बोली का प्रयोग किया
        है।
        रचनाएँ : त्रिधारा, मुकुल, बिखड़े मोती, उन्मादिनी आदि।
         गौरी सुभद्राकुमारी चौहान द्‍वारा रचित 'गौरी’ कहानी की प्रमुख पात्रा है।
         वह बाबू राधाकृष्‍ण और कुन्ती की इकलौती संतान है।
        अकेली संतान होने के कारण छुटपन से ही  उसका बड़ा लाड़-प्यार हुआ था।
       प्राय: उसकी उचित-अनुचित सभी हठ पूरी हुआ करती थी इसलिए गौरी का
      स्वभाव निर्भीक, दृढ़-निश्‍चयी और हठीला था। तभी तो पिता के बाहर जाने
      पर भी वह उनके लौटने तक का भी इंतज़ार नहीं करती और माँ के मना करने
      पर भी वह सीतारामजी के बच्‍चों की देख-रेख करने निकल जाती है। इस
      संदर्भ में निम्‍नलिखित पंक्‍तियाँ प्रस्‍तुत है -

" नहीं माँ, मैं पागल नहीं हूँ। बच्‍चों को तुम भी जानती हो। उनके पिता को रजद्रोह के मामले में साल-भर को सजा हो गई है। बच्‍चे छोटे हैं। मैं जाऊँगी माँ, मुझे जाना ही पड़ेगा।"

        उसे इस बात की आत्‍मग्लानी होती है कि रात-दिन उसके माता-पिता उसके विवाह के लिए चिंतित रहते हैं। उन्हें इसके अलावा और कुछ सूझता ही नहीं है।
        उस समय वह सोचती है कि धरती फटे और वह उसमे समा जाए।
        गौरी जो पूनो की चाँद की तरह बढ़ना जानती थी वह अपने माता-पिता के लिए चिंता की सामग्री है।
        संकोच और लज्‍जा के कारण वह अपने पिता से विवाह के लिए मना नहीं कर पाती है।
        सीतारामजी के प्रति गौरी का मन श्रद्‍धा से भर जाता है क्योंकि वे विनयी, नम्र और सादगी की प्रतिमा थे। साथ ही देशभक्‍त, त्यागी और वीरों के लिए उनके मन में सम्‍मान की भावना थी तथा अपने भावी वर-नायब तहसीलदार साहब के प्रति उनका मन घृणा से भर जाता है क्योंकि वे अपने आराम, अपने ऐश के लिए ब्रिटिश सरकार के इशारे मात्र पर निरीह देशवासियों के गले पर छूरी फेरते हैं। वे कुछ चाँदी के टुकड़ों के लिए निन्दनीय कर्म करते हैं।
        गौरी को सीतारामजी के बच्‍चों की चिंता थी क्योंकि सत्‍याग्रह संग्राम छिड़ गया था। उसे लग रहा था कि कहीं सीतारामजी गिरफ्‍तार कर लिए गए तो बच्‍चों की देख-रेख कौन करेगा।
        सीतारामजी की उम्र ३५-३६ वर्ष थी। वे दो बच्‍चों के पिता थे। हृदय उनका दर्पण की तरह साफ था। देशभक्‍त होने के कारण वे खादी का कुरता और गाँधी टोपी पहनते थे। तीस रुपए उनकी तन्‍खाह थी।कांग्रेस दफ्‍तर में सेक्रेटरी का काम करते थे। तीन बार जेल जा चुके थे। स्त्री जाति के प्रति सम्‍मान की भावना थी। इस संदर्भ में राधाकृष्‍णजी को कहे उनके वाक्य प्रस्‍तुत हैं -

" नहीं साहब ! मैं लड़की देखने न आऊँगा। इस तरह लड़की देखकर मुझसे किसी लड़की का अपमान नहीं किया जाता।"

        वे दो बच्‍चों के होते हुए भी विवाह करना चाहते थे क्योंकि उनकी पत्‍नी का देहांत हो चुका था और वे अंग्रेजी शाशन के खिलाफ आवाज उठाते थे अर्थात वे देशभक्‍त थे। कभी भी अंग्रेजी सरकार के अत्याचार का शिकार हो सकते थे। ऐसी अवस्था में घर में उन दो छोटे बच्‍चों के अलावा और कोई नहीं था जो उनकी अनुपस्थिति में उन बच्‍चों की देख-रेख कर सके। यही कारण है कि वे विवाह करना चाहते थे।
        एक दिन अख़बार पढ़ने के दौरान उसे ज्ञात हुआ कि सीतारामजी गिरफ्‍तार हो गए, और उन्हें एक साल का सपरिश्रम कारावास हुआ है। अत: उनकी अनुपस्थिति में उन बच्‍चों  की देख-रेख करने के लिए गौरी ने कानपुर जाने की हठ की।
        वहाँ जाकर उसने उन बच्‍चों की माँ समान परवरिश की।
        अंतत: हम कह सकते हैं कि न केवल सीतारामजी ने देश की सेवा की बल्कि गौरी ने भी अपनी अहम्‍ भूमिका निभाई।उसके हृदय में भी अपने देश के लिए, देश के लिए अपना जीवन उत्सर्ग करने वाले लोगों के लिए श्रद्‍धा और सम्मान की भावना है।

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3.शरणागत
   वृंदावन लाल वर्मा
रचनाकार परिचय: ये आधुनिक काल के रचनाकार हैं। इनकी अधिकांश रचनाएँ ऐतिहासिक पृष्‍ठभूमि पर आधारित है।इन्होंने कुछ सामाजिक उपन्यासों की भी रचना की हैं।
रचनाएँ: सेनापति ऊदल (ब्रिटिश सरकार द्‌वारा जब्‍त), मृगनयनी, झाँसी की रानी, कचनार,विराट की पद्‌मिनी, आदि।
पुरस्कार: इन्हें पद्‌मभूषण पुरस्कार से सम्‍मानित किया गया था।
भाषा: इनकी रचनाओं की भाषा सहज है।
शब्दार्थ:
१.कसाई: बूचड़
२.पेशगी- अग्रिम दी जाने वाली धनराशि
३.सेत-मेंत-  फिजूल
४.ढोर- पशु
५.पौर- ड्‌योढ़ी
६.घिग्घी बँधना- भयभीत होने पर साफ न बोल पाना।
प्रश्‍न: रज्‍जब कौन था  ? उसने ललितपुर जाते समय उस रात गाँव में ही ठहरने    
       का निश्‍चय क्यों किया ? रज्जब किसे कोसने लगा और क्यों ? गाँव में रहने
      वाले ठाकुर की स्‍थिती कैसी थी ? गाँव वाले उसे किस नाम से पुकारते थे
      और क्यों ? ठाकुर ने शरणागत की रक्षा कैसे की ?
उत्‍तर- रज्‍जब एक कसाई  था।
उसने ललितपुर जाते समय उस रात गाँव में ही ठहरने का निश्‍चय किया क्योंकि उसके साथ उसकी स्‍त्री थी जो बुखार से तड़प रही थी। साथ ही मार्ग बीहड़ और सुनसान था और गाँठ में दो-तीन सौ की बड़ी रकम। अत: उसके चोरी होने का भय भी उसे था। वहाँ से ललितपुर काफी दूर भी था।

रज्जब हिंदू-मात्र को मन ही मन कोसने लगा क्योंकि बहुत विनती करने पर भी ठाकुर साहब ने उसे अपने यहाँ और नहीं रुकने दिया। ठाकुर साहब का कहना था कि -

  मैंने खूब मेहमान इकट्ठे किए हैं। गाँव भर थोड़ी देर में तुम लोगों को मेरी पौर में टिका हुआ देखकर तरह-तरह की बकवास करेगा। तुम बाहर जाओ और इसी समय।

 यद्यपि गाँव ठाकुर के दबदबे को मानता था, परंतु अव्यक्त लोक-मत का दबदबा उसके मन पर भी था। इस्लिए रज्जब गाँव के बाहर सपत्नीक एक पेड़ के नीचे जा बैठा और हिंदू-मात्र को मन ही मन कोसने लगा।
गाँव में रहने वाले ठाकुर की स्‍थिती आर्थिक दृष्टि से अच्छी नहीं थी। उनके पास थोड़ी-सी जमीन थी, जिसको किसान जोतते थे। निज का हल-बैल कुछ भी न था। लेकिन अपने किसानों से दो-तीन साल का पेशगी लगान वसूल कर लेने में उन्हें किसी विशेष बाधा का सामना नहीं करना पड़ता था। उनके पास छोटा-सा मकान था, जिसे गाँव वाले गढ़ी के आदर व्यंजक शब्द से पुकारा करते थे।
गाँव वाले ठाकुर साहब को डर के मारेराजा’ शब्द से संबोधित करते थे।
सर्वप्रथम उसने अपने शरणागत की रक्षा उस समय की जब उनके घर आगंतुक आकर उनसे कहता है-

“ एक कसाई रुपए की मोट बाँधे इसी ओर आया है। परंतु हम लोग ज़रा देर में पहुचे। वह खिसक गया। कल देखेंगे।”

तब उन्होंने घृणा सूचक शब्दों में बिना बहस किए बाहर का बाहर उन्हें यह कहते हुए टाल दिया-

“ कसाई का पैसा न छुएँगे।

फिर जब चार-पाँच आदमी बड़े-बड़े लट्ठ बाँधकर उन्हें लूटने के इरादे से आए और उनमें से एक लाठीवाले आदमी को यह पता चलता है कि यह रज्जब है जो उनकी शरण में आया था तो वह अपने साथी से कहता है कि-

इसका नाम रज्जब है। छोड़ो, चलो यहाँ से।

जब उसके साथी नहीं मानते हैं और गाड़ी में चढ़ कर रज्जब को धमकी देता है तो ठाकुर अपने शरणागत की रक्षा करने हेतु अपने साथी से भी दुश्मनी मोल लेते हुए यह कहता है-

“ खबरदार, जो उसे छुआ। नीचे उतरो, नहीं तो तुम्हारा सिर चूर किए देता हूँ। वह मेरी शरण आया था।”

इसके बाद वह गाड़ीवान से कहता है-

“ जा रे, हाँक ले जा गाड़ी। ठिकाने तक पहुँचा आना, तब लौटना, नहीं तो अपनी खैर मत समझियो। और तुम दोनों में से किसी ने भी कभी इस बात की चर्चा कहीं की तो भूसी की आग में जलाकर खाक कर दूँगा।”

अंतत: हम देखते हैं कि ठाकुर ने शरणागत की रक्षा हेतु अपने साथियों को भी छोड़ दिया।

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4. सती
- शिवानी
रचनाकार परिचय:
१. ये आधुनिक काल की रचनाकार हैं।
२. इनका असली नाम गौरा पंत था।  
३. इनकी अधिकांश रचनाएँ स्‍त्री जाति पर आधारित होती हैं।
४. रचनाएँ : आपका बंटी, भैरवी, आमादेर शांतिनिकेतन, कृष्‍ण्कली आदि।
५. भाषा : इनकी रचनाओं की भाषा व्यावहारिक और सजीव है।
शब्दार्थ :
१.द्रव्य- धन
२. उपालंभ- शिकायत
३. नासिका गर्जन- खर्राटे
४. होल्डाल- बिस्‍तरबंद
५. औंधी- उलटी   
६. लावण्य-सुंदरता
७. वर्तुलाकार- गोल
८. ठुड्‌डी- ठोड़ी
९. गोष्‍ठी- बैठक
१०. आबद्‌ध- ठहरना।

प्रश्‍नोत्‍तर
“भावावेश के दुर्बल क्षणों में नारी कभी-कभी बड़ा बचपना कर बैठती है, इसका
   मुझे व्यापक अनुभव है।”
क) प्रस्तुत पंक्‍ति का वक्‍ता कौन है ?
-  प्रस्तुत पंक्‍ति का वक्‍ता खादीधारी महिला है।
ख) वक्‍ता को किस बात का व्यापक अनुभव है ?
-   वक्‍ता अर्थात खादीधारी महिला को इस बात का व्यापक अनुभव है कि महिलाएँ कभी-कभी भावावेश के कारण बहुत दुर्बल हो जाती हैं। उस समय उसे लगता है कि जो उसके जीवन का आधार था अब उससे किसी कारण वश दूर हो गया या उसकी मृत्‍यु हो गई तो उसे लगता है कि अब उसका जीवन व्यर्थ है। अत: वह अपने जीवन का अंत कर देने के लिए तत्‍पर हो जाती है। ठीक इसी बात का वक्‍ता को व्यापक अनुभव है। उसके आश्रम की दो युवतियाँ इसी तरह की मूर्खता कर बैठी थी।
ग) सती कहानी का उद्‌देश्य लिखें।
- शिवानी द्‌वारा रचित सती कहानी का उद्‌देश्‍य आज के युग में महिलाओं के स्वभाव पर प्रकाश डालना है। कहानी में लेखिका ने मदालसा नाम की एक तेज़ तर्रार महिला के माध्‍यम से यह स्‍पष्‍ट किया है कि आज के युग में भी किसी को बातों में उलझा कर अपना स्वार्थ सिद्‌ध किया जा सकता है, उसे मूर्ख बनाया जा सकता है। मदालसा ने भी सती का ढोंग रचकर तीन महिलाओं को न केवल मूर्ख बनाया अपितु उन्का सामान लेकर भी चंपत हो गई।
घ) उक्‍त कथन कहाँ पर कही जा रही है ? उस समय वहाँ कौन-कौन उपस्‍थित था ? उनका संक्षिप्‍त परिचय दें।
- उक्‍त कथन गाड़ी के डिब्‍बे में सफ़र के दौरान कही जा रही है ? उस समय वहाँ लेखिका शिवानी के साथ उसकी सहयात्री वक्‍ता खादीधारी महिला जो कि पंजाबी है, महाराष्‍ट्री महिला और मदालसा उपस्‍थित थीं।
लेखिका शिवानी: लेखिका यात्रा के दौरान बहुत ही हल्का रहना चाहती है। वह कम से कम सामान लेकर यात्रा पर निकलती है। जिससे डिब्‍बे में चढ़ने-उतरने में कोई तकलीफ न हो, न ही वह कुली के झंझट में पड़ना चाहती हैं। स्‍वयं उन्हीं के शब्‍दों में-

“ बक्‍स-होल्‍डालहीन यात्रा में जो सुख है, वह अन्‍य किसी में नही। चटपट चढ़े और खटपट उतर गए। न कुलियों की हथेली पर धरे द्रव्‍य को अवज्ञापूर्ण दृष्‍टि से देखकर ये क्या दे रही हैं साहब कहने का भय, न सहयात्रियों के उपालंभ की चिंता।”

खादीधारी महिला: ये पंजाबी थीं। ये पंजाब के एक विस्‍थापित स्‍त्रियों के लिए बनाए गए आश्रम की संचालिका थीं। समाज-सेविकाओं में उनका नाम अग्रणी था। दूसरों के दुख से वह द्रवित हो जाती थीं। तभी तो वह मदालसा का दुख सुनकर वह कहती है –

“ आपके पति के अंतिम संस्‍कार में सहायता कर आपको अपने आश्रम में ले चलूँगी। ”

महाराष्‍ट्री महिला: ये पत्रिका पढ़ने में रुचि रखती थीं। तुरंत किसी से घूल-मिल जाना इसका स्‍वभाव नहीं था।  जल्दी से किसी पर विश्‍वास नहीं करती थीं।मदालसा के संदर्भ में वह कहती है कि-

“ मरने वाला कभी ढिंढोरा पीटकर नहीं मरता।”  

मदालसा: ये महिलाओं की कमज़ोरी से परिचित थीं। यही कारण है कि वह सती होने का ढोंग रचकर सबको अपनी बातों में उलझाकर अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं। साथ ही सबको अपना नशीला चटपटा भोजन खिलाकर उन्हें लूट कर भाग जाती हैं।  
  

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5.आउट साइडर

                                                                             मालती जोशी

  रचनाकार परिचय:
  . ये आधुनिक काल की रचनाकार हैं।
  २. इनकी कहानियाँ सामाजिक परिवेश पर आधारित हैं।
  इनकी रचनाओं का विभिन्‍न भारतीय एवं विदेशी भाषा में अनुवाद किया गया है।
  भाषा शैली अत्यंत रोचक, व्यावहारिक तथा सरस है। इनकी भाषा में बोलचाल के शब्दों    
      की प्रचूरता है।
  इन्हें हिन्दी और मराठी साहित्यक संस्थाओं द्‌वारा सम्मानित व पुरस्कृत किया गया है।
  .प्रमुख रचनाएँ :- अपने आँगन की छाँव, परख, जीने की राहदर्द का रिश्ता इत्यादि।

 शब्दार्थ :-                                      

१. निढाल - अत्यंत थका हुआ        
२. मुलतवी - स्थगित
३. दिलेर -हिम्मतवाला
४. त्रस्त- दुखी
५. दुराशा-व्यर्थ की आशा
६. कृतार्थ-एहसान मानना
७. मसरूफ़ -व्यस्त 
८. प्रपंच -छल , फरेब
९. जायज़ा लेना अनुमान लगाना
१०. प्रतिवाद -विरोध
               
पंक्‍तियों पर आधारित प्रश्‍नोत्‍तर:-

रात खाने की मेज़ पर रसगुल्‍लों का एक बड़ा-सा डोंगा सजा हुआ था। उसने शाही अंदाज़ में ऐलान किया, “ये मेरे प्रमोशन की मिठाई है। प्रिंसीपल बनकर जा रही हूँ।”

प्रश्‍न क) वक्‍ता कौन है और वह कहाँ जा रहा है ?
उत्‍तर-   वक्‍ता आउट साइडर’ कहानी की मुख्‍य पात्रा नीलम है और वह प्रिंसीपल बनकर
            बस्‍तर नामक स्थान पर जा रही है।
प्रश्‍न ख) कहानी में आए पात्रों का संक्षिप्‍त परिचय देते हुए बताएँ कि यह किस प्रकार की   
           कहानी है ?
उत्‍तर-  प्रस्तुत कहानी में आए पात्र निम्‍नलिखित हैं:-
        कहानी की मुख्‍य पात्रा नीलम, सुजीत और उसकी पत्‍नी अलका, सुदीप और उसकी  
        पत्‍नी सुषमा, सुमित और उसकी पत्‍नी नेहा, पूनम और उसके पति नरेश।
        नीलम अपने परिवार की सबसे बड़ी लड़की है जो अपने पिता की आकस्मिक निधन
        के बाद नौकरी करके तथा अविवाहित रहकर पूरे परिवार के भरण-पोषण का
        उत्‍तरदायित्व   निभाती है। वह एक कॉलेज में अध्यापन का कार्य करती है।
        नीलम के तीन भाई हैं सबसे बड़ा सुजीत (जीत) है। ये बैंक में काम करता है। मझला  
        सुदीप ( दीपू ) है। सुदीप कनाडा में काम करता है। सबसे छोटा सुमित है। ये मेडिकल    
        कर रहा है। पूनम (पम्‍मी) नीलम की छोटी बहन है। ये अपनी दीदी को दुनिया के  
        यथार्थ से परिचय करवाती है।
        यह कहानी सामाजिक परिवेश पर आधारित है।    

प्रश्‍न ग) आउटसाइडर कहानी में किस समस्या को उजागर किया गया है ?
उत्‍तर-  इस कहानी के माध्यम से लेखिका ने समाज में अविवाहित स्त्रियों की त्रासदी को   
          उजागर करने का प्रयास किया है। लेखिका के अनुसार समाज में जब कोई स्‍त्री पुरुषों
         की तरह अपने कंधों पर अपने परिवार की ज़िम्मेदारियों का बोझ उठाती है और  
         निष्‍ठापूर्वक उसे निभाती है तो उसे घर का अधिपति नहीं वरन्‌ आउट साइडर ही
         माना जाता है। यह हमारे समाज की एक विकट समस्या है कि लड़की का घर, जहाँ
         उसका जन्म हुआ है, वह कभी अपना नहीं होता। उसका ससुराल ही उसका घर होता
         है। अर्थात्‌ जिस लड़की की शादी न हो उसका कभी अपना घर होगा ही नहीं। वह
         हमेशा हर किसी के लिए आउट साइडर ही रहेगी।

प्रश्‍न घ) आउटसाइडर कहानी हमारे समाज के किस सच्‍चाई को उजागर करती है ?
उत्‍तर-   आउटसाइडर कहानी जहाँ हमारे समाज के मानव के स्वार्थ प्रवृत्‍ति को उजागर
           करती है, वहीं अपने स्वार्थ के लिए किसी के त्याग को भुला देने से भी वाज़ नहीं
           आती। व्यक्‍ति अपने मनोनुकूल कार्य (आजादी) करने के लिए किसी का भला करने
           का झूठा दिखावा करता है।
इस कहानी में भी नीलम ने अपने जीवन का त्याग अपने परिवार के लिए कर दिया। जब घर के सदस्‍य नीलम को शादी करने के लिए कहते हैं जिससे वह इस घर से चली जाए और वह इस प्रस्ताव को ठुकरा देती है क्योंकि वह अपने परिवार से दूर नहीं रहना चाहती है। तब सुषमा से अलका अफ़सोस प्रकट करते हुए बड़े दुख के साथ कहती है कि-

उसे मालूम था कि दीदी शादी करने से मना कर देंगी, क्योंकि इतने दिनों तक वह घर में बॉसिंग करती रही हैं, अब ससुराल की धौंस-डपट सहना उनके बस की बात नहीं है।

पूनम ने भी अपनी नीलम दीदी को जीवन की सच्‍चाई बताते हुए कहा कि

दीदी तुमने इस घर को लाख इस ख़ून से सींचा हो, पर यह घर कभी भी तुम्हारा नहीं हो सकता है। तुम हमेशा इस घर के लिए आउट साइडर ही रहोगी। अभी तुम्हारे पास नौकरी है, पर जब तुम रिटायर हो जाओगी तो तुम्हारी हैसियत इस घर में एक फ़ालतु सामान की तरह रह जाएगी, तब तुम्हें मेरी बात याद आएगी।

नीलम ने अपनी छोटी बहन पूनम की बात को गंभीरता से नहीं लिया। इसलिए कॉलेज के प्रिंसिपल ने जब उसे प्रमोशन और ट्रांसफर का प्रस्‍ताव दिया तो वह उसे स्वीकार नहीं करती है। उसे लगता है कि उसके भाई उन्हें कभी भी अपने से दूर नहीं जाने देंगे। परंतु घर जाकर जब उसने स्वयं अलका के मुख से सुना कि, उनका उस घर में रहना अलका को नहीं भाता है। उसका मानना था कि दीदी के रहते वह घर कभी भी पूरी तरह से उसका नहीं हो सकता है तथा दीदी के कारण ही उसे अपनी बहुत सी इच्छाओं का गला घोंटना पड़ता है। नीलम को जब घर में अपनी स्थिति की सही जानकारी होती है और उसे अपनी छोटी बहन पूनम की कही बात आज समझ में आती है। नीलम एक संवेदनशील महिला थी परंतु वह एक जुझारू स्‍त्री भी थी। वास्तविकता का बोध होते ही उसने परिवार से अलग  होने का निश्‍चय किया। नीलम ने अपना प्रमोशन और ट्रांसफर दोनों स्वीकर कर लिया।
अतः हम देखते हैं कि जिस घर के लिए नीलम ने अपने सपने, अपनी खुशियाँ और अपनी ज़िंदगी लगा दी थी, उसी घर के लोगों ने उन्हें आउट साइडर बना दिया था। नीलम एक स्वाभिमानी स्‍त्री थी, उसने उनसे पहले ही स्वयं को आउट साइडर बना लिया।

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6. दासी
जयशंकर प्रसाद
रचनाकार परिचय:

१. जयशंकर प्रसाद जी आधुनिक काल के छायावादी रचनाकार हैं।
२. इनकी कहानियों में भारतीय संस्‍कृति एंव राष्‍ट्रीयता का स्वर गुंजित होता है।
३. रचनाएँ: झरना, लहर, आँसू, कामायनी, कानन कुसुम, आकाशदीप आँधी,
    इंद्रजाल आदि।
४. भाषा: इन्होंने तत्सम शब्दावली से युक्‍त संस्‍कृत्निष्‍ठ खड़ी बोली का प्रयोग
              किया है।
   शब्‍दार्थ:
१. प्राचीर- चहारदीवारी
२.प्रत्‍यावर्तन- लौटआना
३. क्रीत- खरीदी हुई
४. तोरण- वंदन्वार
५. वणिक- बनिया
६.वह्‌नि- अग्‍नि
७. च्तुष्‍पथ- चौराहा
८. अंतरंग- घनिष्‍ठ
९. मंत्रणा- सलाह
१०.निष्‍प्रभ- प्रभाहीन

.  मैं बिकी पाँच सौ दिरम पर, काशी के ही एक महाजन ने मुझे दासी बना
      लिया। 
प्रश्‍न (i) रचनाकार का नाम लिखते हुए बताएँ कि वक्‍ता कौन है ?        [1½] 
   - प्रस्‍तुत पंक्‍ति के रचनाकार का नाम जयशंकर प्रसाद है तथा वक्‍ता इरावती
     है।
 प्रश्‍न (ii) वक्‍ता ने दासी बनने के बाद क्‍या-क्‍या स्‍वीकार किया ?        [3]
   - वक्‍ता ने दासी बनने के बाद लिखकर यह  स्‍वीकार किया कि वह उस घर का
      कुत्सित से कुत्‍सित कर्म करेगी और कभी विद्रोह भी नहीं करेगी। वह कभी     
      भागने की चेष्‍टा भी नहीं करेगी। न ही किसी के कहने पर अपने स्वामी का
      अहित सोचेगी। यदि वह आत्‍म्हत्‍या भी कर ले तो उसके स्वामी या उनके  
      कुटुंब पर कोई दोष न लगा सकेगा।उसके मालिक गंगा-स्‍नान किये-से पवित्र
      हैं। इरावती के संबंध में वे सदा ही शुद्‌ध और निष्‍पाप रहेंगे। उसके शरीर  
      पर उसके मालिक का आजीवन अधिकार रहेगा। उसके मालिक उसके 
      नियम-विरुद्‌ध आचराण पर जब चाहें राजपथ पर उसके बालों को पकड़  
      कर उसे घसीट सकते हैं। उसे दंड दे सकते हैं।
प्रश्‍न (iii) श्रोता ने उसकी बात सुनकर क्‍या प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त की ?                [3]
उत्‍तर-  श्रोता अर्थात बलराज ने जब उसकी बात सुनी तो वह क्रोधित हो गया
          और प्रतिक्रिया व्‍यक्‍त करते हुए कहता है कि पशुओं के समान मनुष्‍य
          कभी नहीं बिक सकता। वह कहता है कि यह पाखण्ड तुर्की घोड़ों के
          व्यापारियों ने फैलाया है। साथ ही वह उसे कहता है कि उसने ऐसी
          प्रतिज्ञा अनजानवश की है। अत: यह ऐसा सत्‍य नहीं है कि इसे पालन
          किया जाय।
प्रश्‍न (iv) दासीकहानी के शीर्षक की सार्थकता सिद्‌ध करें।                       [5]
 उत्‍तर -  दासीकहानी शीर्षक के सभी नियमों का पालन करती है। शीर्षक जहाँ
           संक्षिप्‍त, आकर्षक और जिज्ञासावद्‌र्धक है वहीं पूरी कहानी शीर्षक के
           चारों ओर घूमती है। यदि इस कहानी से दासी’ शब्‍द को निकाल दें तो
           कहानी खोखली प्रतीत होगी।
          दासी’ शीर्षक कहानी ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्‍य में लिखी गई है। कहानी में
           मानव हृदय के द्‌वंद्‌व एवं संवेदनाओं को अत्‍यंत सूक्ष्‍मता एंव कुशलता
           से प्रभावशाली ढ़ंग से उजागर किया है। काहानी में परिस्‍थितिवश
           मानव-हृदय की सबलता-दुर्बलता, कर्त्‍तव्य-अकर्त्‍तव्य का सजीव चित्रण
           किया गया है। कहानी का शीर्षक अंत तक मार्मिक बना रहता है।
           इरावती जहाँ अपने दासी जीवन का निर्वाह भली-भाँति करती है, वहीं
           फिरोजा अहमद की समाधि के पास झाड़ू देती है, समाधि पर फूल
            चढ़ाती है और दीप जलाती है। वह उस समाधि की आजीवन दासी
           बनी रहती है।  


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                                7. क्या निराश हुआ जाए ?


                                         हजारी प्रसाद द्‌विवेदी


रचनाकार परिचय:

१. हजारी प्रसाद द्‌विवेदी जी आधुनिक काल के सशक्त निबंधकार हैं।
२. इनके निबंधों में जीवन का यथार्थ दिखाई देता है।
३. इनकी रचनाएँ आशावादी दृष्‍टिकोण से परिपूर्ण है।
४. भाषा : इनकी रचनाओं की भाषा जहाँ व्यावहारिक और सुव्यवस्थित है, वहीं
              मुहावरे और लोकोक्‍तियों से भी भरपूर है।
५. रचनाएँ:  अशोक के फूल, कुटज, कल्‍पलता, बाणभट्‌ट की आत्‍मकथा, कबीर,
                 सूरदास और उनका काव्‍य आदि।
६. पुरस्कार:  इन्हें साहित्‍य अकादमी पुरस्कार एवं पद्‌म भूषण अलंकरण
                    से सम्‍मानित किया गया था।

शब्दार्थ:

१.  फ़रेब – धोखा, छल
२.मनीषी- विद्‌वान
३.आलोड़ित- मथा हुआ
४. बंचना- धोखा देना
५. गह्‌वर- अत्‍यधिक गहरा
६. गंतव्‍य- मंजिल
७. भीर- डरपोक।

प्रश्‍न: “ आज समाज में ठगी, डकैती, चोरी, तस्‍करी और भ्रष्‍टाचार बढ़ता जा रहा है। आरोप-प्रत्‍यारोप का कुछ ऐसा वातावरण बन गया है, कि लगता है, देश में कोई ईमानदार आदमी ही नहीं रह गया है। फिर भी ईमानदारी पूरी तरह से खत्‍म नहीं हुई है।” प्रस्‍तुत कथन की पुष्‍टि सोदाहरण करते हुए निबंध का प्रतिपाद्‌य स्‍पष्‍ट करें।

उत्‍तर:
हजारी प्रसाद द्‌विवेदी द्‌वारा रचित निबंध क्या निराश हुआ जाए ’ में निबंधकार ने समाज के यथार्थ रूप को उजागर करने की कोशिश की है। द्‌विवेदी जी आधुनिक काल के सशक्त निबंधकार हैं। जहाँ इनके निबंधों में जीवन का यथार्थ दिखाई देता है, वहीं इनकी रचनाएँ आशावादी दृष्‍टिकोण से परिपूर्ण है।इनकी रचनाओं की भाषा जहाँ व्यावहारिक और सुव्यवस्थित है, वहीं मुहावरे और लोकोक्‍तियों से भी भरपूर है। इनकी रचनाएँ अशोक के फूल, कुटज, कल्‍पलता, बाणभट्‌ट की आत्‍मकथा, कबीर, सूरदास और उनका काव्‍य आदि है । इन्हें साहित्‍य अकादमी पुरस्कार एवं पद्‌म भूषण अलंकरण से सम्‍मानित किया गया था।

“ आज समाज में ठगी, डकैती, चोरी, तस्‍करी और भ्रष्‍टाचार बढ़ता जा रहा है। आरोप-प्रत्‍यारोप का कुछ ऐसा वातावरण बन गया है, कि लगता है, देश में कोई ईमानदार आदमी ही नहीं रह गया है। फिर भी ईमानदारी पूरी तरह से खत्‍म नहीं हुई है।” मैं इस कथन से पूरी तरह सहमत हूँ। आज समाचार पत्र पढ़ते हुए या सुनते हुए अथवा हमारे आस-पास भी ऐसी बहुत–सी घटनाएँ घटती हैं जिससे उपर्युक्‍त आरोप सही साबित होते हैं लेकिन इसके बाद भी कुछ ऐसे ईमानदार लोग आज भी इस संसार में व्याप्‍त हैं, जिनकी वज़ह से दुनिया चल रही है।

प्राय: ऐसा भी देखा गया है कि हम कुछ अच्‍छा करने की कोशिश करते हैं तो लोग उसमें भी कमियाँ खोज़ कर हमारी आलोचना करते हैं। तब एक बार मन में यह आता है कि इससे से तो अच्‍छा है कि कुछ भी न करूँ। इसका कारण यह है कि यदि हम कुछ करेंगे ही नहीं तो गलतियाँ होगी भी नहीं। लेकिन मेरा मानना है कि यदि हर इंसान ऐसा ही सोचने लगे तो दुनिया आगे नहीं बढ़ेगी।

आज हमारे समाज में कुछ ऐसा माहौल बन गया है, कि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलाने वाले निरीह और भोले-भाले श्रमजीवी पिस रहे हैं, जबकि झूठ और फ़रेब का रोज़गार करने वाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय माना जाने लगा है, सच्‍चाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्‍से पड़ी है। ऐसी स्‍थिती में जीवन के महान मूल्‍यों के बारे में लोगों की आस्‍था हिलने लगी है। पर इसके बाद भी कुछ ऐसे लोग हैं,  जो जीवन के महान मूल्‍यों को बचाए रखने की कोशिश करते हैं। उदाहरणार्थ इस निबंध में भी हमने देखा कि किस तरह से टिकट बाबू ने निबंधकार  के नब्‍बे रुपए ईमानदारी के साथ लौटाया जब उन्होंने टिकट लेते समय गलती से दस की बजाए सौ रुपए दे दिए तब टिकट बाबू उन्हें सैकिंड क्लास के डिब्‍बे में खोजते हुए उन्हें बाकी रुपए लौटाते हुए कहा-

“यह बहुत बड़ी गलती हो गई थी। आपने भी नहीं देखा, मैंने भी नहीं देखा।”

दूसरी घटना बस ड्राइवर और कंडक्टर से संबंधित है। जब एक सुनसान इलाके में बस खराब हो जाती है तो लोगों को लगता है कि  ड्राइवर और कंडक्टर डाकू के किसी गिरोह से मिलकर उन्हें लूटने वाले हैं। यह बात उस समय और बल पकड़ती है जब कंडक्टर साइकिल लेकर वहाँ से चला जाता है। वास्तव में वह नई बस की व्यवस्था करने गया था। स्वयं कंडक्टर के शब्दों में-

“अड्‍डे से नई बस लाया हूँ, इस बस पर बैठिए। यह बस चलने लायक नहीं है।”
उसने जाने से पूर्व निबंधकार के बच्‍चों को भूख-प्यास के कारण रोते हुए देखा था। अत: वह अड्‌डे से बच्‍चों के लिए पानी और दूध भी लेकर आया और निबंधकार को देते हुए कहा -

“पंडित जी, बच्‍चों का रोना मुझसे देखा नहीं गया। वहीं दूध मिल गया; थोड़ा लेता आया।”

अंतत: हम कह सकते हैं कि निबंधकार का उद्‌देश्‍य देश की वर्तमान स्थिति का चित्रण करना है। साथ ही परिस्थितिवश जहाँ जीवन के महान मूल्यों के प्रति लोगों की आस्था डगमगा रही है, उसे बरकरार रखने की बात भी निबंधकार ने की है क्योंकि आज भी मनुष्‍यता, ईमानदारी, सेवा आध्यात्मिकता के मूल्य बने हुए हैं। वे दब अवश्‍य गए हैं, पर नष्‍ट नहीं हुए हैं। अत: निराश होने की आवश्‍यकता नहीं है। 

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8. भक्‍तिन
महादेवी वर्मा
  रचनाकार परिचय :

१. ये आधुनिक काल की चार छायावादी रचनाकारों में से एक है।
२. इनकी रचनाओं में भारतीय समाज की स्‍त्री जीवन की वास्तविक स्थिति का
    बोध भी है।
३. महादेवी वर्मा को आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है।
४. रचनाएँ : पथ के साथी, अतीत  के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं, श्रृंखला की
    कड़ियाँ, यामा (भारतीय ज्ञानपीठ’  पुरस्कार) आदि।
५. भाषा : महादेवी जी की भाषा, स्वच्छ, मधुर, संस्कृत के तत्सम शब्दों से युक्त
               परिमार्जित खड़ी बोली हैं।

शब्दार्थ :

१.गोपालिका- अहीरिन
२. इतिवृत्‍त- घटना, विवरण
३. वय- आयु
४. अभिषिक्‍त- अधिकार प्राप्‍त
५. काकभुशुंडी- कौआ
६. इति- अंत
७. आप्‍लावित- डुबाया हुआ
८. सोंधा- सुगंधित
९. उद्‌भाषित- प्रकाशित
१०.कंडे- उपले
११. अल्गौझा- अलगाव
१२. अथ- शुरुआत
१३. तुषारापात- पाला गिरना
१. मेरे रात-दिन नाराज़ होने पर भी उसने साफ़ धोती पहनना नहीं सीखा; पर
     मेरे स्वयं धोकर फैलाए हुए कपड़ों को भी वह तह करने के बहाने सिलवटों से  
     भर देती है।

प्रश्‍न: क) किसके संबंध में चर्चा की जा रही है ? उसका संक्षिप्‍त परिचय दें।

उत्‍तर: - प्रस्‍तुत चर्चा महादेवी वर्मा के पाठ भक्‍तिन’ की स्‍त्री लछमिन या लक्ष्मी के विषय में की जा रही है। वह ऐतिहासिक झूसी में गाँव-प्रसिद्‌ध एक सूरमा की इकलौती बेटी थी। उसे विमाता का कटु व्यवहार झेलना पड़ा था और केवल पाँच वर्ष की आयु में बाल विवाह की प्रथा का शिकार होना पड़ा।

प्रश्‍न: ख) लेखिका का उससे क्या संबंध था ? लेखिका को भक्‍तिन का चरित्र
            कैसा लगा ?

उत्‍तर:- लेखिका का उससे मानवीय संबंध था। उसका वास्तविक नाम लछमिन था, परंतु वह अपना वास्तविक नाम किसी को नहीं बताती। जब वह लेखिका के पास नौकरी की खोज़ में आई थी, तब भी उसने प्रार्थना की थी कि उसे लछमिन’ नाम से कभी न पुकारा जाए। इस प्रकार उसके गले में कंठी की माला देखते हुए लेखिका ने उसका नाम भक्‍तिन रख दिया और वह लेखिका की एकनिष्‍ठ सेविका बनी रही।
लेखिका को भक्‍तिन का चरित्र अत्यंत सुदृढ़ और पवित्र लगा। वह कर्मशील स्‍त्री थी। समझौता करना उसे स्वीकार नहीं था। वह अपनी बुद्‌धि के बल पर सत्‍य के मार्ग पर कर्म करने वाली स्‍त्री थी। वह अपने स्वभाव द्‌वारा दूसरों को भी अपना बना लेना जानती थी। वह अपनी स्वामिनी के ज्ञान पर गर्व प्रकट करके अपनी निरक्षरता की अबावपूर्ति करती रहती है। वह मानवोचित दुर्बलता की भी शिकार थी। इधर-उधर पड़े पैसों को भंडार-गृह की मटकी में छिपा देती थी, कंजूसीपूर्वक धन संग्रह करती थी।  

प्रश्‍न: ग) प्रस्‍तुत संस्‍मरण का मूल-भाव क्‍या है ?

 उत्‍तर: -   प्रस्‍तुत संस्‍मरण का मूल-भाव एक ऐसी ग्रामीण महिला का चित्रण करना है जो अपने पैतृक घर से लेकर विवाह तक और यहाँ तक कि उसके बाद भी अन्‍याय और क्रूरता का शिकार होती है, का चित्रण करना रहा है। प्रस्‍तुत संस्‍मरण में भक्‍तिन एक ऐसी ही ग्रामीण स्‍त्री है, जो अन्‍याय तथा क्रूरता का शिकार होती है। लेखिका ने उन करुण प्रसंगों को गहरी संवेदना और मार्मिकता के साथ चित्रित किया है। इसके साथ ही पाठ में समाज तथा सामाजिक मानदंडों की समीक्षा की भी वकालत की गई है जो युगों-युगों से स्‍त्री के विरोध में खड़े दिखाई देते आए हैं।

प्रश्‍न: घ) पाठ के आधार पर बताएँ कि लेखिका की सहानुभूति और आक्रोश   
           किसके प्रति है और क्यों ?

उत्‍तर:- प्रस्‍तुत पाठ में लेखिका की सहानुभूति भक्‍तिन जैसी प्रभावित स्‍त्रियों के प्रति है। दूसरी ओर उसका सारा आक्रोश हमारे झूठे नियमों, अंधविश्‍वासों और अमानवीय चिंतन-धारा के प्रति है। दुख इस बात का है कि हमारे यहाँ स्‍त्री ही हर प्रकार के प्रकोप का भाजन बनती है। सारे कायदे-कानून स्‍त्री के विरोध में ही जाते हैं। लोग चाहकर भी स्‍त्री के प्रति सद्‌भावना और संवेदना नहीं रख पाते हैं। 


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9. संस्कृति क्या है ?
रामधारी सिंह दिनकर’
 रचनाकार परिचय :
१. ये आधुनिक काल के रचनाकार हैं।
२. इनकी रचनाओं में सामाजिक जीवन और राष्‍ट्रीय समस्‍याओं का समावेश
    हुआ है।
. रचनाएँ : रेणुका, रसवंती, रश्‍मिरथी, हुंकार, उर्वशी, नीलकुसुम आदि।
४. भाषा : इनकी रचनाओं की भाषा शुद्‌ध खड़ी बोली है।
५. पुरस्‍कार : इन्हें साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार,द्‌विवेदी पदक, ज्ञानपीठ पुरस्कार
                  से सम्‍मानित किया गया है।

शब्दार्थ:
१. मद- अहंकार
२. मत्‍सर- द्‌वेष, क्रोध
३. खोह- गुफ़ा
४. जलाशय- तालाब
५. विकार- दोष।
१ “ इसलिए मनुष्‍य प्रकृति के इन आवेगों पर रोक लगाता है और कोशिश करता है कि वह गुस्‍से के वश में नहीं, बल्कि गुस्‍सा ही उसके वश में रहे ; वह लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्‌वेष और कामवासना का गुलाम नहीं, बल्कि ये दुर्गुण ही उसके गुलाम रहें।”

प्रश्‍न:क) लेखक ने संस्कृति और प्रकृति में क्या भेद बताया है ?

उत्‍तर:-  लेखक लेखक रामधारी सिंह दिनकर’ ने संस्कृति और प्रकृति के भेद को
           सूक्ष्मता से समझाया है। गुस्सा, लोभ, ईर्ष्या, मोह आदि मनुष्‍य की
           प्रकृति है। इसे हम स्वभाव भी कह लेते हैं। मगर इन गुणों को अपनाने
           वाला सभ्य नहीं कहला सकता। संस्कृति ऐसी चीज़ है जिसे लक्षणों से
           तो हम जान सकते हैं लेकिन इसकी परिभाषा नहीं दिया जा सकता।
           विभिन्‍न कलाएँ व श्रेष्‍ठ साधनाएँ ही संस्‍कृति कहलाती हैं।

प्रश्‍न: ख) लेखक ने सभ्यता और संस्कृति का क्या संबंध और क्या अंतर बताया
              है ?

उत्‍तर:- लेखक ने बताया है कि सभ्यता और संस्कृति साथ-साथ चलते हैं। सभ्यता
          और संस्कृति की प्रगति अधिकतर एक साथ होती है और दोनों का एक-
          दूसरे पर प्रभाव भी पड़ता रहता है। लेखक ने घर बनाने की प्रविधि का
          उदाहरण देते हुए समझाया है कि सभ्यता के संस्कृति पर और संस्कृति के
          सभ्यता पर पड़ने वाले प्रभाव का क्रम निरंतर चलता रहता है और
          भविष्‍य में भी यह रहेगा। लेखक कहते हैं कि जब हम कोई घर बनाने
          लगते हैं, तब स्थूल रूप में यह सभ्‍यता का कार्य होता है। मगर, हम घर
          का कौन-सा नक्‍शा पसंद करते हैं, इसका निर्णय हमारी सांस्‍कृतिक रुचि
         करती है। इस प्रकार संस्‍कृति की प्रेरना से हम जैसा घर बनाते हैं, वह
         फिर हमारी सभ्‍यता का अंग बन जाता है।

        सभ्यता और संस्कृति जहाँ साथ-साथ चलते हैं वहीं उसमे सूक्ष्‍म अंतर भी
        है। लेखक कहते हैं कि सभ्‍यता वह चीज है जो हमारे पास है जबकि
        संस्‍कृति वह गुण है जो हममें व्याप्‍त है। मोटर, महल, पोशाक और अच्‍छा
        भोजन ये तथा इनके समान अन्‍य स्थूल वस्‍तुएँ संस्‍कृति नहीं, सभ्‍यता के
        समान हैं। मगर, पोशाक पहनने और भोजन करने में जो कला है वह
        संस्‍कृति की चीज है।

प्रश्‍न:ग) गुस्से को क्यों वश में करना चाहिए ?

उत्‍तर:- लेखक ने बताया है कि क्रोध या गुस्सा मनुष्य की प्रकृति या स्वभाव
          है। इसी क्रोध से ईर्ष्या, मोह,राग,द्‌वेष, काम आदि गुण या दुर्गुणों को   
          जुड़ा देखा जा सकता है। यदि मनुष्‍य इन गुस्से तथा प्रकृति के इन दुर्गुणों
        को बेरोक अपनाता रहेगा तो उसमें तथा जानवर में कोई अंतर नहीं रह
        जाएगा। मनुष्य प्रकृति के इन आवेगों पर रोक लगाता है और सुनिश्‍चित
        बनाना चाहता है कि वह इस गुस्से को वश में रखे न कि उसके वश में स्वयं
        चला जाए।

प्रश्‍न: घ) उच्‍च संस्कृति के क्या लक्षण बताएँ गए हैं ?

उत्‍तर:- लेखक ने बताया है कि मनुष्‍य अपने दुर्गुणों पर जितना अधिक विजयी
          होता है, उसकी संस्कृति भी उतनी ही उच्‍च कही और समझी जाती है।  
          लोभ, मोह, ईर्ष्‍या, द्‌वेष और कामवासना का गुलाम बनना संस्‍कृति नहीं
          है। जो इन दुर्गुणों का गुलाम बन जाता है, वह असभ्‍य तथा असंस्‍कृत है।    
          इन पर नियंत्रण करने वाला व्यक्‍ति हीएक उच्‍च तथा सुसंस्‍कृत व्यक्‍ति
          होगा।



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10. मज़बूरी
मन्‍नू भंडारी
 रचनाकार परिचय:

१. ये आधुनिक काल की रचनाकार हैं।
२. इनका बचपन का नाम महेंद्र कुमारी है।
     ३. रचनाएँ: आपका बंटी, एक इंच मुस्‍कान, मैं हार गई, यही सच है, तीन निगाहों की एक
          तस्‍वीर, त्रिशंकु, बिना दीवारों का घर।

शब्‍दार्थ:
१. खड़िया एक प्रकार की मिट्‌टी
२. गठिया जोड़ों का दर्द
३. औषधालय दवाखाना
४. साध इच्छा
५. नोन राई करना नज़र उतारना
६. अदब तमीज़
 ७.बौराना पगलाना
८. सामंजस्य तालमेल
९. कौर निवाला
१०. प्रयाण प्रस्थान प्रयाण प्रस्थान
११. पैरों तले ज़मीन सरकना घबरा जाना
१२. थाती अमानत
१३. मनौती मन्‍नत

 “ नहीं रह सकती तो भेजती ही क्यों ? अब यह कोई बच्‍चे पालने की उमर है भला !   
     जिसकी थाती उसी को सौंपी।”

प्रश्‍न: क) किसने, किसे, कहाँ भेजा ?
उत्‍तर:- रामेश्‍वर की अम्‍मा ने, अपने पोता बेटू को, अपने पुत्र और पुत्रवधु के पास भेजा।

प्रश्‍न:ख) रमा बेटू को अपने साथ क्यों ले जाना चाहती है ? फिर वह क्यों नहीं ले जा पाती ?
उत्‍तर:- रमा अपने बेटू का भविष्य सँवारने के लिए उसे अपने साथ मुंबई ले जाना चाहती
          थी परंतु एक वर्ष के पप्पू के साथ यह अभी संभव नहीं हो पा रहा था। इसीलिए न
         चाहते हुए भी मजबूरन उसे बेटू को अम्मा के पास छोड़कर वापस आ जाना पड़ा।
         रमा ने पत्र के माध्यम से अम्मा जी को बेटू को स्कूल भेजने की सलाह दी , परंतु
         अम्मा जी ने उसे गंभीरता से नहीं लिया। दो साल बाद जब रमा पुनः बेटू को देखने
         गई तो उसने पाया कि बेटू के स्वभाव में कोई परिवर्तन न हुआ था और अम्मा जी का
         रवैया भी नहीं बदला था। अतः अम्मा जी का दिल दुखाकर, उन्हें बेटू के उज्ज्वल
         भविष्य का वास्ता देकर रमा बेटू को अपने साथ अपने मायके ले आई। रमा अपने
         मक़सद में कामयाब न हो सकी क्योंकि बेटू अपनी दादी से इतना घुला था कि उनसे
         दूर जाते ही उसकी तबीयत इतनी बिगड़ गयी कि पुनः उसे उसकी दादी के पास छोड़
         देना पड़ा।

प्रश्‍न:ग) अम्‍मा और रमा दोनों बेटू को बहुत प्यार करते हैं फिर भी बेटू को लेकर दोनों के  
            विचारों में अंतर है। स्पष्‍ट करें।

उत्‍तर:-  अम्‍मा और रमा दोनों बेटू को बहुत प्यार करते हैं फिर भी बेटू को लेकर दोनों के       
            विचारों में अंतर है। इसका सबसे बड़ा कारण दो पीढ़ियों का अंतराल है। इसी
            समय के अंतराल के कारण रमा और अम्‍मा दोनों की सोच में ज़मीन-आसमान का
            अंतर है और उनके दर्द को इस कहानी में कहानीकर ने बखूबी दर्शाने की कोशिश
            भी की है।

             आज शिक्षा के विकास में ज़मीन-आसमान का अंतर आया है। ग्रामीण और शहरी
             शिक्षा में भी अंतर है। शहर में रहने वाले माता-पिता अपने बच्‍चों को जिस तरह
             से प्रशिक्षित करना चाहते हैं, वह ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से बिल्‍कुल    
             भिन्‍न है। यही कारण है कि जब अम्मा ने बेटू की परवरिश बिल्‍कुल अपने बेटे
             रामेश्‍वर की तरह करनी चाही तो रमा दुखी हो जाती है और बेटू के उज्ज्वल
             भविष्य के लिए अम्मा को दुख देकर भी उसे वापस अपने साथ मुंबई ले आती है।

प्रश्‍न:घ) शीर्षक की सार्थकता सिद्‌ध करें।
उत्‍तर:- मज़बूरी कहानी शीर्षक के सभी नियमों का पालन करती है। शीर्षक जहाँ संक्षिप्‍त,
           आकर्षक और जिज्ञासावर्द्‍धक है वही पूरी कहानी शीर्षक के चारो ओर घूमती है।
           यदि इस कहानी से मज़बूरी’ शब्‍द को निकाल दें तो कहानी खोखली प्रतीत होगी।

           संपूर्ण कहानी में लेखिका जी ने दो पीढ़ी के अंतराल के कारण जो पारिवारिक
           समस्या उत्‍पन्‍न होती है उस पर प्रकाश डाला है। पीढ़ी के अंतराल के कारण ही    इस
          कहानी के प्रत्येक पात्र के साथ कोई न कोई मज़बूरी थी। अम्मा जी का एकाकी
          जीवन बिताना, उनकी मज़बूरी थी। रमा का बेटू को पहले अम्मा जी के पास छोड़ना
          और बाद में पुनः अपने साथ ले जाना भी उसकी मज़बूरी थी। रामेश्‍वर का बुढ़ापे में
          अपने माता-पिता के पास न रहना भी एक मज़बूरी ही थी।

          अतः प्रस्तुत कहानी में समय की गति की प्रधानता को बताया गया है कि समय बड़ा
          बलवान होता है उसके आगे सभी को झुकना पड़ता है। इस प्रकार कहानी का शीर्षक
          एकदम उपयुक्त है।    







  
 
 
      


 

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