1. संस्कार और भावना ( विष्णु प्रभाकर)
रचनाकार परिचय:
ये अधुनिक काल के रचनाकार हैं। इनकी रचनाओं में मानवतावादी दृष्टिकोण मुखरित हुआ है। इनके द्वारा रचित एकांकी समस्या प्रधान तथा मानव-प्रकृति से ओत-प्रोत है।
रचानाएँ: प्रकाश और परछाइयाँ, दस बजे रात, ये रेखाएँ, ये दायरे, तीसरा आदमी आदि।
भाषा: इन्होंने सरल भाषा क प्रयोग किया है।
शब्दार्थ:
१. संक्रान्ति काल- एक अवस्था से निकलकर दूसरी अवस्था में पहुँचने का काल
२. रक्तिम- लाल
३. दिवा- दिन
४. विद्रूप- व्यंग्य
५. निर्मम- कठोर हृदय
६. पचड़े- बेकार की बातें
७. परितोष- संतोष
८. आतुर- व्याकुल
९. डाकिन- चुड़ैल
१०. विजातीय- दूसरी जाति की।
वाक्य गठन:
१. मरणासन्न- बाढ़ के कारण मुर्शिदाबाद के लोग मरणासन्न हैं।
२. फ़ौलाद- भारतीय सैनिक फ़ौलाद का हृदय रखते हैं।
३. उद्विग्न- विपरीत परिस्थिति में भी हमें उद्विग्न नहीं होना चाहिए।
प्रश्नोत्तर
१. “ माँ को बेटे से अलग करना पाप है, माँ का हृदय तोड़ना अत्याचार है। उस अत्याचार
को दूर करने के लिए प्राण भी देने पड़ें तो कम हैं।”
प्रश्न क) प्रस्तुत पंक्तियाँ कहाँ से ली गई है तथा इसके रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर - प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘संस्कार और भावना’ एकांकी से ली गई है तथा इसके रचनाकार ‘विष्णु
प्रभाकर जी’ हैं।
प्रश्न ख) वक्ता कौन है ? उसने किसे अत्याचार कहा है ?
उत्तर - वक्ता अतुल की पत्नी उमा है। उसने माँ और बेटे को अलग करके माँ का हृदय तोड़ने को
अत्याचार कहा है।
प्रश्न ग) उस अत्याचार को दूर करने के लिए उसने किसे, क्या सुझाव दिया ?
उत्तर - उस अत्याचार को दूर करने के लिए उसने अविनाश की पत्नी अर्थात अपनी जेठानी को
सुझाव दिया कि अब भी सब कुछ ठीक हो सकता है, अगर वह अपने पति अविनाश को
छोड़ दे। उसका कहना है कि माँ का हृदय तोड़ना अत्याचार है। उस अत्याचार को दूर
करने के लिए प्राण भी देने पड़े तो वह भी कम हैं।
प्रश्न घ) क्या आप अविनाश की पत्नी को दोषी मानते हैं ? तर्क सहित अपने विचार प्रकट करें।
उत्तर- मेरे विचार से अविनाश की पत्नी दोषी नहीं है। अविनाश से उसने प्रेम विवाह किया था।
इस बात के आधार पर उसे दोषी मान लेना उसके साथ अन्याय करने जैसा होगा।
विवाह एक पवित्र बंधन है। अविनाश से विवाह करके वह एक ज़िम्मेदार पत्नी के रूप में
अपना कर्त्त्व्य पूरी तरह निभा रही है। वह विजातीय है, बंगाली है, मात्र इस आधार पर
हम उसे दोषी नहीं मान सकते हैं। वृद्धा माँ ने उसे स्वीकार नहीं किया, जिसके कारण
अविनाश को भी अलग रहने के लिए विवश होना पड़ा, इन सब बातों के लिए हम अपने
संस्कारों तथा सामाजिक बंधनों पर दृष्टि डालें तो हम कहीं न कहीं स्वयं को ही दोषी
पाएँगे। अत: मेरे विचार से अविनाश की पत्नी पर दोषारोपण करना गलत है।
२. काश की मैं निर्मम हो सकती, काश कि मैं संस्कारों की दासता से मुक्त हो सकती ! हो
पाती तो कुल, धर्म और जाति का भूत मुझे तंग न करता और मैं अपने बेटे से न
बिछुड़ती। स्वयं उसने मुझसे कहा था, “ संस्कारों की दासता सबसे भयंकर शत्रु है।”
प्रश्न क) वक्ता और श्रोता कौन है ? ‘उसने’ से किसकी ओर संकेत है ? वक्ता और ‘उसने’ का क्या
संबंध है ?
उत्तर- वक्ता माँ और श्रोता उमा है। ‘उसने’ से अविनाश की ओर संकेत है। वक्ता और ‘उसने’ का
माँ-बेटे का संबंध है। अविनाश माँ का बड़ा पुत्र है।
प्रश्न ख) माता-पिता और संतान के संबंध में ‘उसने’ का क्या विचार है ?
उत्तर- माता-पिता और संतान के संबंध में ‘उसने’ का विचार है कि संतान का पालन करना
माता-पिता का नैतिक कर्त्त्व्य है। वे किसी पर एहसान नहीं करते, केवल राष्ट्र का ऋण
चुकाते हैं। वे ऋण-मुक्त हों, यही उनका परितोष है। इसी से उन्हें प्रसन्न होनी चाहिए।
इससे अधिक मोह है, इसीलिए पाप है।
प्रश्न ग) एकांकी का उद्देश्य लिखें।
उत्तर- ‘संस्कार और भावना’ एकांकी एक पारिवारिक नाटक है। इस एकांकी का उद्देश्य़
संस्कार और भावना का अन्तर्द्वन्द्व प्रदर्शित करके भावना की संस्कार पर विजय दिखाना
है। एकांकीकार का मानना है कि आपसी रिश्तों एवं संबंधों में प्रेम एवं स्नेह से बढ़कर
और कुछ नहीं होता। अंतत: हम कह सकते हैं कि एकांकी का उद्देश्य हमें यह भी बताना
है कि यदि रिश्तों को बनाए रखने के लिए हमें अपने संस्कारों व परंपराओं से समझौता
भी करना पड़े तो अवश्य करना चाहिए।
प्रश्न घ) धर्म तथा जाति को लेकर इस प्रकार का भेदभाव किस प्रकार समाज के लिए हानिकारक
है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- धर्म तथा जाति को लेकर इस प्रकार का भेदभाव किया जाना किसी भी समाज के लिए
हानिकारक है। एक ओर विकास के नाम पर दुनिया तेज़ी से आगे बढ़ रही है तो दूसरी
ओर जाति-धर्म के नाम पर आज भी समाज बँटा हुआ है। इससे समाज की एकता तथा
सद्भावना खंडित होती है। यदि कोई आगे बढ़ कर इस दीवार को गिराना चाहता है तो
स्वयं उसका परिवार साथ नहीं देता। पूरे समाज से उसे अपमान भी झेलना पड़ता है।
अंतत: हम कह सकते हैं कि धर्म तथा जाति को लेकर चला आ रहा भेदभाव किसी भी
समाज की उन्नति में सदैव बाधा बनता है तथा मानवता के विकास में आड़े आता है।
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2. बहू की विदा (विनोद रस्तोगी)
रचनाकार परिचय:
ये अधुनिक काल के रचनाकार हैं। इनकी रचनाओं में समाजसुधार की भावना दिखाई देती है। इनके द्वारा रचित एकांकी समस्या प्रधान तथा मानव-प्रकृति से ओत-प्रोत है।
भाषा: इन्होंने सरल भाषा क प्रयोग किया है।
शब्दार्थ
१. नाता- संबंध
२.सामर्थ्य- क्षमता
३. शान – प्रतिष्ठा
४. दंग- अश्चर्य
५.नाक वाले- स्वाभिमान वाले
६. यवनिका- पर्दा
प्रश्नोत्तर
१.यह क्या कह रहे हो, बेटा ? मेरे रहते विदा न हो यह कभी नहीं हो सकता। मैं माँ हूँ, माँ के दिल को समझती हूँ। (भारी स्वर में) जिस तरह उतावली होकर मैं गौरी की राह देख रही हूँ उसी तरह तुम्हारी माँ भी कमला की राह देख रही होगी। नहीं, विदा जरूर होगी। तुम अकेले नहीं जाओगे।
प्रश्न क) - ‘ यह क्या कह रहे हो ? ’ इस वाक्य को किसने कहा ? उसका परिचय देते हुए उसके
स्वभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर- ‘ यह क्या कह रहे हो ? ’ इस वाक्य को राजेश्वरी ने कहा।
राजेश्वरी जीवनलाल की पत्नी है।
राजेश्वरी का स्वभाव दया से परिपूर्ण है। वह एक माँ है। अत: माँ की भावनाओं को समझती है।
प्रश्न ख) बेटा शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है ? वह राजेश्वरी के घर क्यों आया था ?
उत्तर - बेटा शब्द का प्रयोग प्रमोद के लिए किया गया है। वह राजेश्वरी के घर अपनी बहन कमला
को, विवाह के बाद पहला सावन सखी-सहेलियों के साथ बिताने के लिए उसके ससुराल से
उसे विदा करवाकर अपने घर ले जानेआया था।
प्रश्न ग) मैं माँ हूँ, माँ के दिल को समझती हूँ। इस वाक्य का भाव स्पष्ट कीजिए। इस उक्ति का प्रयोग
किस संदर्भ में किया गया है ?
उत्तर- उपर्युक्त वाक्य का भाव माँ के हृदय के ममत्त्व को प्रकट करना है। उपर्युक्त वाक्य द्वारा
रचनाकार कहना चाहते हैं कि रजेश्वरी एक माँ है। अत: वह माँ की भावनाओं से भली-भाँति
परिचित है। जिस तरह वह अपनी बेटी से मिलने के लिए उतावली होकर उसकी राह देख
रही है, ठीक उसी तरह से कमला की माँ भी अपनी बेटी से मिलने के लिए उसकी राह देख
रही होगी और यदि वह नहीं पहुँचेगी तो उसे बहुत आघात पहुँचेगा।
प्रमोद अपनी बहन के विवाह पर जीवनलाल को दहेज में पूरे रुपए नहीं दे पाता है , जिससे
जीवनलाल नाराज होते हैं । अत: जब वह अपनी बहन को विदा कराने आता है तो वह उसे
जाने नहीं देते। जीवनलाल की पत्नी राजेश्वरी को यह बात सही नहीं लगती। अत: वह
प्रमोद से कहती है कि वह उसे रुपए देगी ,जो वह जीवनलाल को दे दे और वह अपनी बहन
को विदा कराके ले जाए। लेइन प्रमोद इंकार कर देता है और कहता है कि वह अपनी बहन
को बिना विदा कराए ही जा रहा है। तब राजेश्वरी कहती है कि ऐसा नहीं हो सकता। इस
उक्ति का प्रयोग इसी संदर्भ में किया गया है।
प्रश्न घ)- प्रमोद की बेचैनी का क्या कारण था ? क्या वह अपने उद्देश्य में सफल रहा ? यदि हाँ तो
कैसे ?
उत्तर - प्रमोद अपनी बहन कमला को अपने साथ अपने घर नहीं ले जा पाने के कारण बेचैन है। वह
अपनी बहन को उसके विवाह के बाद उसके ससुराल से,पहला सावन मायके में बिताने के लिए लेने आया है लेकिन जीवनलाल, जो कमला के श्वसुर हैं, वे दहेज पूरा न मिलने के कारण उसे जाने नहीं देना चाहते हैं।
हाँ, वह अपने उद्देश्य में सफल रहा। जब जीवनलाल का पुत्र अपनी बहन गौरी को उसके ससुराल से बिना लिए ही वापस आता है क्योंकि उसके ससुरालवालों का कहना है कि उन्हें दहेज पूरे नहीं मिले। इससे जीवनलाल को एहसास हो जाता है लड़कीवाले कितना भी क्यों न दे दे पर लड़के वालों का मन नहीं भरता है। अत: अपनी बेटी के ससुरालवालों द्वारा दिए गए चोट ने उन्हें उनकी गलती का एहसास करा दिया और वह अपनी बहू को विदा करने के लिए तैयार हो गए।
२. “ अगर तुम्हारी सामर्थ्य कम थी तो अपनी बराबरी का घर देखते। झोंपड़ी में रहकर महल से
नाता क्यों जोड़ा ?”
प्रश्न क) उपर्युक्त वाक्य किसने, किससे कहा ?
उत्तर- उपर्युक्त वाक्य जीवनलाल ने, प्रमोद से कहा ?
प्रश्न ख) श्रोता ने अपनी सामार्थ्य के विषय में वक्ता से क्या कहा ?
उत्तर - श्रोता अर्थात प्रमोद ने वक्ता अर्थात जीवनलाल से अपनी सामर्थ्य के विषय में कहा कि
अपनी हैसियत के हिसाब से जितना भी हो सका उन्होंने दान-दहेज दिया। उन्होंने अपनी ओर
से किसी प्रकार की कमी नहीं होने दी।
प्रश्न ग) श्रोता का ऐसा कहने के पीछे क्या कारण था ?
उत्तर- श्रोता ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि जीवनलाल प्रमोद को खरी-खोटी सुना रहे थे और कह रहे
थे कि बहू की विदाई तभी होगी जब उनका परिवार उनको पाँच हज़ार रुपए की माँग पूरी
करेगा।
प्रश्न- घ) वक्ता किस बात पर क्रोधित हो रहा है ?
उत्तर - वक्ता के क्रोध का कारण है दहेज के प्रति लोभ।
जीवनलाल को प्रमोद पर इसलिए क्रोध आ रहा है कि उसके अनुसार उन लोगों ने एक तो
कमला की शादी में दहेज कम दिया और दूसरे बारात की खातिर्दारी भी ठीक से नहीं की। वक्ता
का कहना है कि उनलोगों के कारण उनके नाम पर धब्बा लगा है, उनकी शान पर ठेस पहुँची है।
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3. मातृभूमि का मान (हरिकृष्ण प्रेमी)
रचनाकार परिचय:
ये आधुनिक काल के रचनाकार हैं। प्रेमी जी एक सफल नाटककार हैं। इन्होंने अपनी रचनाओं में मानवीय प्रेम, देशप्रेम, वीरता जैसे मूल्यों को स्थान दिया है।
रचनाएँ: बंधन, छाया, ममता, पाताल विजय, शिवसाधना, नया समाज आदि।
भाषा: भाषा सरस एवं काव्यमय होते हुए सरल है।
शब्दार्थ:
१. काव्यमय- कवितायुक्त,
२. अधीनता- परतंत्रता,
३. कलंक- दोष,
४. धमनी-नस,
५.बलि- कुर्बानी,
६. ससैन्य- सेना के साथ,
७.श्रृंखला- कड़ी,
८. उद्दण्डता- अभद्र व्यवहार,
९.सिंहनाद- युद्ध की ललकार,
१०. दुंदुभि- नगाड़े।
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर:
१. “आपके विवेक पर सबको विश्वास है। मैं आपसे निवेदन करने आई हूँ कि यद्यपि समय के फेर से
आप हाड़ा शक्ति और साधनों में मेवाड़ के उन्नत राज्यों से छोटे हैं, फिर भी वे वीर हैं।” pg: 32
प्रश्न क) उपर्युक्त गद्यांश में वक्ता कौन है और उसका क्या काम है ?
उत्तर- उपर्युक्त गद्यांश में वक्ता चारणी (चारण की स्त्री) है और उसका क्या काम है राजा की
प्रशंसा में उनकी स्तुति करना अथवा उनकी प्रशंसा में गीत गाना। इसे ‘विरुदावली’ भी कहा
जाता है।
प्रश्न ख) श्रोता कौन है और उनकी चिंता का कारण क्या है ?
उत्तर- ‘श्रोता’ मेवाड़ के शासक महाराणा लाखा हैं।
उनकी चिंता का कारण यह है कि अभी कुछ दिन पहले नीमरा के मैदान में मुट्ठी भर हाड़ाओं
ने मेवाड़ के सैनिकों को बुरी तरह पराजित कर दिया था। यहाँ तक कि महाराणा लाखा को
रणक्षेत्र से अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। उन्हें लग रहा था कि ऐसा करके उन्होंने मेवाड़
के गौरव तथा अपने पूर्वजों के सम्मान को कलंकित कर दिया है।
प्रश्न ग) वक्ता का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर- वक्ता एक सामान्य युवती है पर उसके विचार उच्च हैं। वह एक समझदार, दूरदर्शी, विवेकी,
स्नेही तथा विदुषी युवती है। वह जिस प्रकार महाराणा लाखा को युद्ध न करने के लिए
समझाने का प्रयास करती है उससे यह पता चलता है कि वह एक सच्ची देशभक्त भी है। वह
राजपूत वीरों के मन में अपने गीतों द्वारा एकता, अखण्डता, देशभक्ति तथा भाईचारे की
भावना का संचार करती है।
प्रश्न घ) प्रस्तुत एकांकी का उद्देश्य लिखें।
उत्तर- ‘मातृभूमि का मान’ एक ऐतिहासिक एकांकी है। इसका एकांकी का उद्देश्य मातृभूमि के प्रति
उत्कट प्रेम को प्रदर्शित करना है। राजपूतों की अद्भूत वीरता, शौर्य, पराक्रम के साथ-साथ
उनकी आन-बान और शान का प्रस्तुतीकरण भी प्रस्तुत एकांकी का उद्देश्य है। देश की
आखण्डता, एकता तथा स्वतंत्रता के खातिर यदि प्राणों का उत्सर्ग भी करना पड़े तो पीछे
नहीं हटना चाहिए। यह संदेश देना भी एकांकी का उद्देश्य रहा है।
२. “नकली बूँदी भी प्राणों से अधिक प्रिय है। जिस जगह एक भी हाड़ा है, वहाँ बूँदी का अपमान
आसानी से नहीं किया जा सकता।”Pg: 34
प्रश्न क) ‘बूँदी का अपमान’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- ‘बूँदी का अपमान’ से तात्पर्य बूँदी राज्य के दूर्ग तथा वीरों का अपमान से है।
प्रश्न-ख) वक्ता कौन है ? उसके कथन का उसके साथियों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर- वक्ता मेवाड़ का एक सैनिक वीरसिंह है।
वीरसिंह का जोशीला वक्तव्य सुनकर सभी सैनिक बूँदी के उस नकली दुर्ग की सुरक्षा के लिए
जान की बाज़ी लगाने को तैयार हो जाते हैं।
प्रश्न- ग) वक्ता का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर- वक्ता अपने नाम वीरसिंह के अनुरूप ही वीर, पराक्रमी, साहसी तथा ओजस्वी है। वह एक
महान देशभक्त है। वह अपनी मातृभूमि का अपमान होने पर अपने प्राणों की बाजी लगा
देता है जो कि देश के प्रति उत्कट प्रेम का एक अनूठा उदाहरण है।
प्रश्न घ) प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध करें।
उत्तर- प्रस्तुत एकांकी शीर्षक के सभी नियमों का पालन करती है। शीर्षक जहाँ संक्षिप्त, आकर्षक और
जिज्ञासावद्र्धक है वहीं पूरी एकांकी शीर्षक के चारों ओर घूमती है। इस प्रकार हम कह सकते
हैं कि ‘मातृभूमि का मान’ सर्वथा उपयुक्त शीर्षक है। पूरे एकांकी में मातृभूमि के मान को ही
विशेष महत्त्व दिया गया है तथा अंत में मातृभूमि का मान रखने के लिए ही स्वयं महाराणा
का प्रमुख सिपाही वीरसिंह, जो कि एक हाड़ा है, शहीद हो जाता है। अत: शीर्षक सार्थक है।
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4. सूखी डाली (उपेंद्र नाथ ‘अश्क’)
रचनाकार परिचय:
ये आधुनिक काल के रचनाकार हैं। ये मुख्यत: कथाकार हैं। इनकी रचनाएँ आदर्शोन्मुख, कल्पनाप्रधान है।
रचनाएँ:
पहेली, गर्म राख, पत्थर अलपत्थर, अलग-अलग रास्ते, अंकुर, पिंजरा, नासुर, सितारों के खेल आदि।
भाषा: इनकी रचनाओं की भाषा सरल है।
शब्दार्थ:
१. काव्यमय- कवितायुक्त
२. असंगठित- छिन्न-भिन्न
३. दंभ- घमंड
४. ससैन्य- सेना के साथ
५. दुंदुभि- नगाड़ा
६. कलंक- दोष
७. धमनियाँ- नसें
८. विख्यात- मशहूर
वाक्य गठन:
१. असंगठित- असंगठित होकर कोई भी परिवार खुश नहीं रह सकता।
२. दंभ- दंभ मानव का शत्रु है।
३.विख्यात- आगरा का ताजमहल विश्व विख्यात है।
प्रश्नोत्तर:
1. यही मेरी आकांक्षा है कि सब डालियाँ साथ-साथ फलें-फूलें, जीवन की सुखद, शीतल वायु के स्पर्श से
झूमें और सरसाएँ। विटप से अलग होने वाली डाली की कल्पना ही मुझे सिहरा देती है। पृ०सं० ५६
प्रश्न क) उपर्युक्त कथन कौन, किससे, किस संदर्भ में कह रहा है ? [2]
-उत्तर -उपर्युक्त कथन दादा मूलराज, इन्दु से कह रहे हैं।
प्रस्तुत कथन बेला का परिवार से अलग होने की इच्छा के संदर्भ में कही जा रही है।
दादाजी को जब परेश से यह पता चलता है कि बेला परिवार से अलग होना चाहती है तब
वे पूरे परिवार को बेला का सम्मान करने तथा उससे प्रेम करने की बात समझाते हुए इन्दु
से यह बात कहते हैं।
प्रश्न ख) सब डालियाँ साथ-साथ फलने-फूलने से क्या आशय है ? ‘डालियाँ’ शब्द किसके लिए
प्रयुक्त हुआ है ? [2]
उत्तर - सब डालियाँ साथ-साथ फलने-फूलने से आशय है कि परिवार के सभी सदस्य मिलजुलकर
साथ-साथ रहें। ‘डालियाँ’ शब्द परिवार के सदस्यों के लिए प्रयुक्त हुआ है।
प्रश्न ग) किसकी आकाँक्षा है कि सब खुशहाल रहें और क्यों ? इस एकांकी से आपको क्या शिक्षा
मिलती है ? [3]
उत्तर- दादा मूलराज जो परिवार के मुखिया हैं, उनकी आकाँक्षा है कि सब खुशहाल रहें। वे चाहते
हैं कि परिवार के सभी सदस्य एक साथ रहें। परंतु बेला, जो परिवार की छोटी बहु है वह
परिवार से पृथक होना चाहती है जो उन्हें पसंद नहीं है।
इस एकांकी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि वही परिवार सुखी रह सकता है जिसमें
परेशानी आते ही खत्म कर दी जाए, अन्यथा बात बढ़ने पर निदान सरल नहीं होता।
परेशानी से घबराना नहीं चाहिए बल्कि उसका सामना करते हुए उचित समय पर उसका
समाधान निकालना चाहिए।
प्रश्न - घ) प्रस्तुत कथन से वक्ता की किस चारित्रिक विशेषता का पता चलता है ? [3]
उत्तर - वक्ता अर्थात दादा मूलराज अपने परिवार को एक सूत्र में बाँधे रखना चाहते हैं। इस
कथन से दादा मूलराज की अनुभवशीलता तथा संयुक्त परिवार पर अटूट विश्वास
मुखरित होता है जिसे वह कभी भी अलग होने देना नहीं चाहते। अत: वह सभी को
एकसूत्र में जोड़कर रखना चाहते हैं। परिवार की छोटी बहू बेला जब परिवार से अलग
होना चाहती है तब दादा अपनी सूझ-बूझ से समस्या का समाधान करते हैं।
२. मेरे मायके में यह होता है, मेरे मायके में यह नहीं होता (हाथ मटकाकर) अपने और अपने मायके के सामने तो वह किसी को कुछ गिनती ही नहीं। हम तो उसके लिए मूर्ख, गँवार और असभ्य हैं। पृ० सं० 42
प्रश्न - क) प्रस्तुत पंक्ति का वक्ता और श्रोता कौन है तथा यहाँ किसके संदर्भ में बात हो रही है ?
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति का वक्ता इन्दु और श्रोता बड़ी बहू है तथा यहाँ बेला के संदर्भ में बात हो
रही है।
प्रश्न - ख) ‘सूखी डाली’ किसका प्रतीक है। डाली के द्वारा एकांकीकार क्या कहना चाहते हैं ?
उत्तर - ‘सूखी डाली’ एक ऐसे परिवार के सदस्य का प्रतीक है जो परिवार से अलग होकर
निराश या दुखी हो जाता है। जैसे एक पेड़ का तना, शाखा, जड़, फल, फूल सब एक
दूसरे से जुड़े रहते हैं तभी उस पेड़ का महत्त्व होता है। पेड़ से अलग डाली का कोई
महत्त्व नहीं होता है। अत: डाली के द्वारा ही परिवार और व्यक्ति के महत्त्व को
बताया गया है।
प्रश्न - ग) बेला का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर - बेला एक प्रतिष्ठित और संपन्न कुल की सुशिक्षित लड़की है। वह तुनकमिज़ाज तथा घमण्डी
है। हमेशा ससुराल और मायके की तुलना कर्ती है। वह हाजिरजवाब है । मन में जो भी
होता है तुरंत बोल देती है। सामाजिक स्वतंत्रता की इच्छुक है। ससुराल में उचित सम्मान
न मिल पाने पर वह अलग होना चाहती है। वह विवेकशील तथा भावुक स्त्री भी है।
गलती का एहसास होने पर वह स्वीकारती भी है। अंत में दादाजी की भावनाओं का
सम्मान करते हुए परिवार में मिल्जुल कर रहना स्वीकारती है।
प्रश्न -घ) एकांकी का उद्देश्य लिखें।
उत्तर - ‘सूखी डाली’ एकांकी का उद्देश्य संयुक्त परिवार के महत्त्व को दर्शाना है। एकांकी में
भिन्न-भिन्न विचारधाराओं के व्यक्तियों के बीच भी एकता की एक ऐसी डोर रहती है,
जिसके सहारे पूरे परिवार को चलाया जाता है। जो परिवार एक सूत्र में बंधा होता है उस
परिवार को कोई भी व्यक्ति या परिस्थिति तोड़ नहीं सकती। पुरानी और नई पीढ़ी के
संघर्ष के माध्यम से पारिवारिक मूल्यों को दर्शाना ही इस एकांकी का मुख्य उद्देश्य है।
रचनाकार परिचय:
ये आधुनिक काल के रचनाकार हैं। ये मुख्यत: कथाकार हैं। इनकी रचनाएँ आदर्शोन्मुख, कल्पनाप्रधान है।
रचनाएँ:
पहेली, गर्म राख, पत्थर अलपत्थर, अलग-अलग रास्ते, अंकुर, पिंजरा, नासुर, सितारों के खेल आदि।
भाषा: इनकी रचनाओं की भाषा सरल है।
शब्दार्थ:
१. काव्यमय- कवितायुक्त
२. असंगठित- छिन्न-भिन्न
३. दंभ- घमंड
४. ससैन्य- सेना के साथ
५. दुंदुभि- नगाड़ा
६. कलंक- दोष
७. धमनियाँ- नसें
८. विख्यात- मशहूर
वाक्य गठन:
१. असंगठित- असंगठित होकर कोई भी परिवार खुश नहीं रह सकता।
२. दंभ- दंभ मानव का शत्रु है।
३.विख्यात- आगरा का ताजमहल विश्व विख्यात है।
प्रश्नोत्तर:
1. यही मेरी आकांक्षा है कि सब डालियाँ साथ-साथ फलें-फूलें, जीवन की सुखद, शीतल वायु के स्पर्श से
झूमें और सरसाएँ। विटप से अलग होने वाली डाली की कल्पना ही मुझे सिहरा देती है। पृ०सं० ५६
प्रश्न क) उपर्युक्त कथन कौन, किससे, किस संदर्भ में कह रहा है ? [2]
-उत्तर -उपर्युक्त कथन दादा मूलराज, इन्दु से कह रहे हैं।
प्रस्तुत कथन बेला का परिवार से अलग होने की इच्छा के संदर्भ में कही जा रही है।
दादाजी को जब परेश से यह पता चलता है कि बेला परिवार से अलग होना चाहती है तब
वे पूरे परिवार को बेला का सम्मान करने तथा उससे प्रेम करने की बात समझाते हुए इन्दु
से यह बात कहते हैं।
प्रश्न ख) सब डालियाँ साथ-साथ फलने-फूलने से क्या आशय है ? ‘डालियाँ’ शब्द किसके लिए
प्रयुक्त हुआ है ? [2]
उत्तर - सब डालियाँ साथ-साथ फलने-फूलने से आशय है कि परिवार के सभी सदस्य मिलजुलकर
साथ-साथ रहें। ‘डालियाँ’ शब्द परिवार के सदस्यों के लिए प्रयुक्त हुआ है।
प्रश्न ग) किसकी आकाँक्षा है कि सब खुशहाल रहें और क्यों ? इस एकांकी से आपको क्या शिक्षा
मिलती है ? [3]
उत्तर- दादा मूलराज जो परिवार के मुखिया हैं, उनकी आकाँक्षा है कि सब खुशहाल रहें। वे चाहते
हैं कि परिवार के सभी सदस्य एक साथ रहें। परंतु बेला, जो परिवार की छोटी बहु है वह
परिवार से पृथक होना चाहती है जो उन्हें पसंद नहीं है।
इस एकांकी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि वही परिवार सुखी रह सकता है जिसमें
परेशानी आते ही खत्म कर दी जाए, अन्यथा बात बढ़ने पर निदान सरल नहीं होता।
परेशानी से घबराना नहीं चाहिए बल्कि उसका सामना करते हुए उचित समय पर उसका
समाधान निकालना चाहिए।
प्रश्न - घ) प्रस्तुत कथन से वक्ता की किस चारित्रिक विशेषता का पता चलता है ? [3]
उत्तर - वक्ता अर्थात दादा मूलराज अपने परिवार को एक सूत्र में बाँधे रखना चाहते हैं। इस
कथन से दादा मूलराज की अनुभवशीलता तथा संयुक्त परिवार पर अटूट विश्वास
मुखरित होता है जिसे वह कभी भी अलग होने देना नहीं चाहते। अत: वह सभी को
एकसूत्र में जोड़कर रखना चाहते हैं। परिवार की छोटी बहू बेला जब परिवार से अलग
होना चाहती है तब दादा अपनी सूझ-बूझ से समस्या का समाधान करते हैं।
२. मेरे मायके में यह होता है, मेरे मायके में यह नहीं होता (हाथ मटकाकर) अपने और अपने मायके के सामने तो वह किसी को कुछ गिनती ही नहीं। हम तो उसके लिए मूर्ख, गँवार और असभ्य हैं। पृ० सं० 42
प्रश्न - क) प्रस्तुत पंक्ति का वक्ता और श्रोता कौन है तथा यहाँ किसके संदर्भ में बात हो रही है ?
उत्तर - प्रस्तुत पंक्ति का वक्ता इन्दु और श्रोता बड़ी बहू है तथा यहाँ बेला के संदर्भ में बात हो
रही है।
प्रश्न - ख) ‘सूखी डाली’ किसका प्रतीक है। डाली के द्वारा एकांकीकार क्या कहना चाहते हैं ?
उत्तर - ‘सूखी डाली’ एक ऐसे परिवार के सदस्य का प्रतीक है जो परिवार से अलग होकर
निराश या दुखी हो जाता है। जैसे एक पेड़ का तना, शाखा, जड़, फल, फूल सब एक
दूसरे से जुड़े रहते हैं तभी उस पेड़ का महत्त्व होता है। पेड़ से अलग डाली का कोई
महत्त्व नहीं होता है। अत: डाली के द्वारा ही परिवार और व्यक्ति के महत्त्व को
बताया गया है।
प्रश्न - ग) बेला का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर - बेला एक प्रतिष्ठित और संपन्न कुल की सुशिक्षित लड़की है। वह तुनकमिज़ाज तथा घमण्डी
है। हमेशा ससुराल और मायके की तुलना कर्ती है। वह हाजिरजवाब है । मन में जो भी
होता है तुरंत बोल देती है। सामाजिक स्वतंत्रता की इच्छुक है। ससुराल में उचित सम्मान
न मिल पाने पर वह अलग होना चाहती है। वह विवेकशील तथा भावुक स्त्री भी है।
गलती का एहसास होने पर वह स्वीकारती भी है। अंत में दादाजी की भावनाओं का
सम्मान करते हुए परिवार में मिल्जुल कर रहना स्वीकारती है।
प्रश्न -घ) एकांकी का उद्देश्य लिखें।
उत्तर - ‘सूखी डाली’ एकांकी का उद्देश्य संयुक्त परिवार के महत्त्व को दर्शाना है। एकांकी में
भिन्न-भिन्न विचारधाराओं के व्यक्तियों के बीच भी एकता की एक ऐसी डोर रहती है,
जिसके सहारे पूरे परिवार को चलाया जाता है। जो परिवार एक सूत्र में बंधा होता है उस
परिवार को कोई भी व्यक्ति या परिस्थिति तोड़ नहीं सकती। पुरानी और नई पीढ़ी के
संघर्ष के माध्यम से पारिवारिक मूल्यों को दर्शाना ही इस एकांकी का मुख्य उद्देश्य है।
________________________________________________________________________________
5. महाभारत की एक साँझ ( भारत भूषण अग्रवाल)
रचनाकार परिचय:
भारत भूषण अग्रवाल जी आधुनिक काल के रचनाकार हैं। ये विषय-वस्तु को अनूठे तथा सर्वथा नवीन ढंग से प्रस्तुत करने में सिद्ध हस्त थे। ये मुख्य रूप से रेडियो एकांकीकार थे।
रचनाएँ :
पलायन, युग-युग, पाँच मिनत, अग्निलीक, आधे-आधे जिस्म, लौटती लहरों की बाँसुरी आदि।
भाषा : इनकी रचनाओं की भाषा सरस तहा प्रभावशाली है।
शब्दार्थ:
१. कालाग्नि- मृत्यु की ज्वाला
२. आत्मप्रवंचना- अपने आप को धोखा देना
३. अहेरी- शिकारी
४. पामर- दुष्ट
५. बधिक- हत्यारा
६. शोणित- रक्त
७. चक्रांत- षड्यंत्र
८. अभिषेक- जल छिड़कना
९. निहत्था- बिना हठियार के
१०. बधिक- जल्लाद।
प्रश्नोत्तर:
१. “अंतर्यामी जानते हैं कि मैंने कोई बुरा आचरण नहीं करना चाहा। मैंने एकमात्र अपनी
रक्षा की।” पृ०सं० 80
प्रश्न- क) प्रस्तुत कथन के वक्ता और श्रोता का परिचय दें।
उत्तर - प्रस्तुत कथन के वक्ता धृतराष्ट्र के बड़े पुत्र दुर्योधन और श्रोता पांडवों के सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर
हैं।
प्रश्न- ख) वक्ता ने अपने कथन के समर्थन में श्रोता को क्या तर्क दिए ?
उत्तर- वक्ता ने अपने कथन के समर्थन में श्रोता को तर्क दिया कि जब तक युधिष्ठिर ने आक्रमण नहीं
किया था तब तक तो वह चुप रहा लेकिन जब उसने देखा कि युद्ध अनिवार्य है, तो फिर विवश
होकर वीरोचित कर्त्तव्य के लिए उसे अभिमन्यु का वध करना पड़ा।
प्रश्न- ग) ‘अभिमन्यु-वध’ क्या वीरोचित था’ ? श्रोता के इस प्रश्न पर वक्ता ने क्या उत्तर दिया ?
उत्तर- ‘अभिमन्यु-वध क्या वीरोचित था’ श्रोता के इस प्रश्न पर वक्ता ने उत्तर दिया कि जब भीष्ण,
द्रोण और कर्ण का वध वीरोचित हो सकता है, तो फिर अभिमन्यु का वध भी वीरोचित है। फिर
वह श्रोता से प्रश्न करता है कि जिस तरह से भीमसेन ने उसे पराजित किया, क्या वह वीरोचित
था ? फिर वह कहता है कि वास्तव में इस नर संहार का मूल कारण स्वयं उसकी अर्थात युधिष्ठिर
की महत्वाकांक्षा ही है।
प्रश्न- घ) इस समय वक्ता किस स्थिति में है ? वक्ता के चरित्र की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर - इस समय वक्ता मरणोन्मुख है। भीम के साथ युद्ध में वह पराजित हुआ है तथा घायलावस्था में
है। वक्ता अर्थात दुर्योधन सच्चा मित्र है। एक सूत्पुत्र होते हुए भी कर्ण को उसने अंग देश का राजा
बनाया। उसे सम्मान दिया॥ वह महत्वाकांक्षी था। वह हस्तिनापुर का राजा बनना चाहता था।
उसमें नेतृत्व की क्षमता भी बहुत अच्छी थी।
२. इस प्रकार महाराज ! पांडवों ने विरक्त सुयोधन को युद्ध के लिए विवश किया। पांडवोम
की ओर से भीम गदा लेकर रण में उतरे। दोनों वीरों में घमासान युद्ध होने लगा।
सुयोधन का पराक्रम सबको चकित कर देता था। ऐसा लगता था मानो विजय श्री अंत में
उन्हीं को वरण करेगी, पर तभी श्री कृष्ण के संकेत पर भीम ने सुयोधन की जंघा पर गदा
का भीषण प्रहार किया। कुरुराज आहत होकर चीत्कार करते हुए गिर पड़े।
पृ०सं० 73-74
प्रश्न- क) इस गद्यांश का वक्ता कौन है ? वह अपनी बातें किसे सुना रहा है और क्यों ?
उत्तर- इस गद्यांश का वक्ता धृतराष्ट्र का अत्यंत निकटस्थ व्यक्ति संजय है। वह अपनी दिव्य दृष्टि से
महाभारत के युद्ध और दुर्योधन के साथ घटने वाली हर घटना की जानकारी उन्हें दिया करता
था। धृतराष्ट्र जन्मांध थे। वे कुछ भी देखने में असमर्थ थे। हस्तिनापुर की उथल-पुथल भरी
परिस्थितियों से संजय ही उन्हें अवगत कराया करता था।
प्रश्न- ख) गदा युद्ध में दुर्योधन विजय श्री का वरण क्यों नहीं कर सका ?
उततर- युधिष्ठिर द्वारा युद्ध के लिए अस्त्र चुनने का विकल्प दिए जाने पर दुर्योधन ने गदा को अस्त्र
के रूप में चुना और गदा युद्ध करने का निश्चय किया। पांडवों की ओर से भीम ने गदा
उठाकर उसका मुकाबला किया। दोनों योद्धा पराक्रम से लड़ रहे थे। गदा युद्ध में कभी भीम
पड़ रहे थे, तो कभी दुर्योधन। दुर्योधन का पराक्रम देखकर लगने लगा था कि जीत उसी की
होगी पर श्रीकृष्ण का संकेत पाकर भीम ने उसकी जाँघ पर प्रहार किया और वह गिर पड़ा।
इस प्रकार गदा युद्ध में दुर्योधन विजयश्री प्राप्त नहीं कर सका।
प्रश्न- ग) ‘महाभारत की साँझ’ एकांकी का उद्देश्य स्पष्ट करें।
उत्तर - ‘महाभारत की साँझ’ एकांकी का उद्देश्य दुर्योधन के चरित्र को नए तरीके से चित्रित करना
है। इस एकांकी में युगों-युगों से उपेख्शित दुर्योधन न केवल पाठकों की सहानुभूति प्राप्त करता
है बल्कि अपना पक्ष भी सिद्ध करने में सफल हुआ है। वह पांडवों को स्वार्थी कहता है। दुर्योधन
के अनुसार जो राज्य पांडवों का था ही नहीं उसके लिए पांडवों का युद्ध करना अन्याय था।
लेखक का उद्देश्य दुर्योधन के चरित्र को निर्दोष साबित करना है। दुर्योधन के हृदय की पीड़ा
को भी दिखाना कि उसके पिता अंधे न होते तो महाभारत न होता। इसी तथ्य को दिखाना
एकांकीकार का मुख्य उद्देश्य रहा है।
प्रश्न- घ) ‘महाभारत की साँझ’ एकांकी के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध करें।
उत्तर- ‘महाभारत की साँझ’ एकांकी शीर्षक के सभी नियमों का पालन करती है। जिस तरह
महाभारत का आरंभ राजगद्दी पाने तथा अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए होता
है, ठीक इसी तरह लेखक ने दुर्योधन के अंत द्वारा महाभारत के युद्ध के अंत की बात की है।
जैसे एक दिन का अंत सांझ से होता है वैसे ही दुर्योधन की मृत्यु के साथ महाभारत का अंत
होता है अर्थात सूर्यास्त होता है। जैसे सूर्योदय के बाद सूर्यास्त होता है उसी प्रकार दुर्योधन
बहुत बड़ा कूटनीतिज्ञ, क्रूर, महान योद्धा था लेकिन उसका अंत भी हुआ। अत: ‘महाभारत की
साँझ’ एक उपयुक्त शीर्षक है।
3. “ जानता हूँ, युधिष्ठिर ! भली भाँति जानता हूँ। किंतु सोच लो, मैं थककर चूर हो गया हूँ, मेरी
सभी सेना तितर-बितर हो गई है, मेरा कवच फट गया है, मेरे शस्त्रास्त्र चुक गए हैं। मुझे
समय दो युधिष्ठिर ! क्या भूल गए मैंने तुम्हें तेरह वर्ष का समय दिया था ? ”
[ महाभारत की एक साँझ - भारत भूषण अग्रवाल ]
[ Mahabharat ki ek saanjh – Bharat Bhushan Agarwal ]
प्रश्न- क) वक्ता कौन है ? वह क्या जानता था ? [2]
उत्तर - वक्ता दुर्योधन है।
वह यह जानता है कि महाभारत के युद्ध के लिए पाण्डव उसे अर्थात दुर्योधन को ही ज़िम्मेदार
मानते हैं। वह यह भी जानता है कि पाण्डव अब उसकी जान लेकर छोड़ेंगे।
प्रश्न- ख) वक्ता इस समय असहाय क्यों हो गया था ? [2]
उत्तर - वक्ता इस समय असहाय हो गया था क्योंकि उसका साहस, मनोबल सब टूट चुका था। वह स्वयं
को अकेला महसूस कर रहा था। महाभारत के युद्ध में कौरवों की सारी सेना नष्ट हो चुकी थी।
सभी रथी-महारथी मारे जा चुके थे। बचे खुचे सैनिक जान बचाकर भाग गए थे। दुर्योधन स्वयं भी
घायल होकर बुरी तरह थक चुका था। उसके अस्त्र-शस्त्र भी खत्म हो गए थे। उसका कवच भी टूट
चुका था।
प्रश्न- घ) श्रोता को तेरह वर्ष का समय क्यों दिया गया था ? [3]
उत्तर - श्रोता युधिष्ठिर है। श्रोता को तेरह वर्ष का समय दिया गया था क्योंकि कौरवों ने षड्यंत्र करके
पाण्डवों को जुए में हराकर उनका सब कुछ उनसे छीन लिया था। जुए में उन्होंने यह शर्त रखी थी
कि जो पक्ष भी हारेगा उसे बारह वर्ष का वनवास तथा एक वर्ष का अज्ञातवास बिताना होगा। इस
एक वर्ष की अवधि में यदि वे पहचान लिए गए तो उन्हें फिर से तेरह वर्ष वन में ही बिताने होंगे।
प्रश्न- श्रोता को जो समय दिया गया था , उसके पीछे वक्ता का क्या उद्देश्य था ? क्या वह अपने उद्देश्य
में सफल हो सका ? [3]
उत्तर- श्रोता को जो समय दिया गया था, उसके पीछे वक्ता का उद्देश्य पाण्डवों के मनोबल को तोड़ना तथा
उन्हें राज्य और समाज से दूर करना था। वक्ता का उद्देश्य यह था कि पाण्डव वैभव, सत्ता और राज-
काज से दूर रहे और इन तेरह वर्षों में वे पूरी तरह कमज़ोर और शक्तिहीन हो जाए, जिससे कि वक्ता
इन वर्षों में स्वयं अपने मित्रों की संख्या तथा अपनी सैन्य-शक्ति बढ़ा सके और पूरे राज्य को अपने
अधिकार में कर ले।
नहीं वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सका
रचनाकार परिचय:
भारत भूषण अग्रवाल जी आधुनिक काल के रचनाकार हैं। ये विषय-वस्तु को अनूठे तथा सर्वथा नवीन ढंग से प्रस्तुत करने में सिद्ध हस्त थे। ये मुख्य रूप से रेडियो एकांकीकार थे।
रचनाएँ :
पलायन, युग-युग, पाँच मिनत, अग्निलीक, आधे-आधे जिस्म, लौटती लहरों की बाँसुरी आदि।
भाषा : इनकी रचनाओं की भाषा सरस तहा प्रभावशाली है।
शब्दार्थ:
१. कालाग्नि- मृत्यु की ज्वाला
२. आत्मप्रवंचना- अपने आप को धोखा देना
३. अहेरी- शिकारी
४. पामर- दुष्ट
५. बधिक- हत्यारा
६. शोणित- रक्त
७. चक्रांत- षड्यंत्र
८. अभिषेक- जल छिड़कना
९. निहत्था- बिना हठियार के
१०. बधिक- जल्लाद।
प्रश्नोत्तर:
१. “अंतर्यामी जानते हैं कि मैंने कोई बुरा आचरण नहीं करना चाहा। मैंने एकमात्र अपनी
रक्षा की।” पृ०सं० 80
प्रश्न- क) प्रस्तुत कथन के वक्ता और श्रोता का परिचय दें।
उत्तर - प्रस्तुत कथन के वक्ता धृतराष्ट्र के बड़े पुत्र दुर्योधन और श्रोता पांडवों के सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर
हैं।
प्रश्न- ख) वक्ता ने अपने कथन के समर्थन में श्रोता को क्या तर्क दिए ?
उत्तर- वक्ता ने अपने कथन के समर्थन में श्रोता को तर्क दिया कि जब तक युधिष्ठिर ने आक्रमण नहीं
किया था तब तक तो वह चुप रहा लेकिन जब उसने देखा कि युद्ध अनिवार्य है, तो फिर विवश
होकर वीरोचित कर्त्तव्य के लिए उसे अभिमन्यु का वध करना पड़ा।
प्रश्न- ग) ‘अभिमन्यु-वध’ क्या वीरोचित था’ ? श्रोता के इस प्रश्न पर वक्ता ने क्या उत्तर दिया ?
उत्तर- ‘अभिमन्यु-वध क्या वीरोचित था’ श्रोता के इस प्रश्न पर वक्ता ने उत्तर दिया कि जब भीष्ण,
द्रोण और कर्ण का वध वीरोचित हो सकता है, तो फिर अभिमन्यु का वध भी वीरोचित है। फिर
वह श्रोता से प्रश्न करता है कि जिस तरह से भीमसेन ने उसे पराजित किया, क्या वह वीरोचित
था ? फिर वह कहता है कि वास्तव में इस नर संहार का मूल कारण स्वयं उसकी अर्थात युधिष्ठिर
की महत्वाकांक्षा ही है।
प्रश्न- घ) इस समय वक्ता किस स्थिति में है ? वक्ता के चरित्र की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर - इस समय वक्ता मरणोन्मुख है। भीम के साथ युद्ध में वह पराजित हुआ है तथा घायलावस्था में
है। वक्ता अर्थात दुर्योधन सच्चा मित्र है। एक सूत्पुत्र होते हुए भी कर्ण को उसने अंग देश का राजा
बनाया। उसे सम्मान दिया॥ वह महत्वाकांक्षी था। वह हस्तिनापुर का राजा बनना चाहता था।
उसमें नेतृत्व की क्षमता भी बहुत अच्छी थी।
२. इस प्रकार महाराज ! पांडवों ने विरक्त सुयोधन को युद्ध के लिए विवश किया। पांडवोम
की ओर से भीम गदा लेकर रण में उतरे। दोनों वीरों में घमासान युद्ध होने लगा।
सुयोधन का पराक्रम सबको चकित कर देता था। ऐसा लगता था मानो विजय श्री अंत में
उन्हीं को वरण करेगी, पर तभी श्री कृष्ण के संकेत पर भीम ने सुयोधन की जंघा पर गदा
का भीषण प्रहार किया। कुरुराज आहत होकर चीत्कार करते हुए गिर पड़े।
पृ०सं० 73-74
प्रश्न- क) इस गद्यांश का वक्ता कौन है ? वह अपनी बातें किसे सुना रहा है और क्यों ?
उत्तर- इस गद्यांश का वक्ता धृतराष्ट्र का अत्यंत निकटस्थ व्यक्ति संजय है। वह अपनी दिव्य दृष्टि से
महाभारत के युद्ध और दुर्योधन के साथ घटने वाली हर घटना की जानकारी उन्हें दिया करता
था। धृतराष्ट्र जन्मांध थे। वे कुछ भी देखने में असमर्थ थे। हस्तिनापुर की उथल-पुथल भरी
परिस्थितियों से संजय ही उन्हें अवगत कराया करता था।
प्रश्न- ख) गदा युद्ध में दुर्योधन विजय श्री का वरण क्यों नहीं कर सका ?
उततर- युधिष्ठिर द्वारा युद्ध के लिए अस्त्र चुनने का विकल्प दिए जाने पर दुर्योधन ने गदा को अस्त्र
के रूप में चुना और गदा युद्ध करने का निश्चय किया। पांडवों की ओर से भीम ने गदा
उठाकर उसका मुकाबला किया। दोनों योद्धा पराक्रम से लड़ रहे थे। गदा युद्ध में कभी भीम
पड़ रहे थे, तो कभी दुर्योधन। दुर्योधन का पराक्रम देखकर लगने लगा था कि जीत उसी की
होगी पर श्रीकृष्ण का संकेत पाकर भीम ने उसकी जाँघ पर प्रहार किया और वह गिर पड़ा।
इस प्रकार गदा युद्ध में दुर्योधन विजयश्री प्राप्त नहीं कर सका।
प्रश्न- ग) ‘महाभारत की साँझ’ एकांकी का उद्देश्य स्पष्ट करें।
उत्तर - ‘महाभारत की साँझ’ एकांकी का उद्देश्य दुर्योधन के चरित्र को नए तरीके से चित्रित करना
है। इस एकांकी में युगों-युगों से उपेख्शित दुर्योधन न केवल पाठकों की सहानुभूति प्राप्त करता
है बल्कि अपना पक्ष भी सिद्ध करने में सफल हुआ है। वह पांडवों को स्वार्थी कहता है। दुर्योधन
के अनुसार जो राज्य पांडवों का था ही नहीं उसके लिए पांडवों का युद्ध करना अन्याय था।
लेखक का उद्देश्य दुर्योधन के चरित्र को निर्दोष साबित करना है। दुर्योधन के हृदय की पीड़ा
को भी दिखाना कि उसके पिता अंधे न होते तो महाभारत न होता। इसी तथ्य को दिखाना
एकांकीकार का मुख्य उद्देश्य रहा है।
प्रश्न- घ) ‘महाभारत की साँझ’ एकांकी के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध करें।
उत्तर- ‘महाभारत की साँझ’ एकांकी शीर्षक के सभी नियमों का पालन करती है। जिस तरह
महाभारत का आरंभ राजगद्दी पाने तथा अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए होता
है, ठीक इसी तरह लेखक ने दुर्योधन के अंत द्वारा महाभारत के युद्ध के अंत की बात की है।
जैसे एक दिन का अंत सांझ से होता है वैसे ही दुर्योधन की मृत्यु के साथ महाभारत का अंत
होता है अर्थात सूर्यास्त होता है। जैसे सूर्योदय के बाद सूर्यास्त होता है उसी प्रकार दुर्योधन
बहुत बड़ा कूटनीतिज्ञ, क्रूर, महान योद्धा था लेकिन उसका अंत भी हुआ। अत: ‘महाभारत की
साँझ’ एक उपयुक्त शीर्षक है।
3. “ जानता हूँ, युधिष्ठिर ! भली भाँति जानता हूँ। किंतु सोच लो, मैं थककर चूर हो गया हूँ, मेरी
सभी सेना तितर-बितर हो गई है, मेरा कवच फट गया है, मेरे शस्त्रास्त्र चुक गए हैं। मुझे
समय दो युधिष्ठिर ! क्या भूल गए मैंने तुम्हें तेरह वर्ष का समय दिया था ? ”
[ महाभारत की एक साँझ - भारत भूषण अग्रवाल ]
[ Mahabharat ki ek saanjh – Bharat Bhushan Agarwal ]
प्रश्न- क) वक्ता कौन है ? वह क्या जानता था ? [2]
उत्तर - वक्ता दुर्योधन है।
वह यह जानता है कि महाभारत के युद्ध के लिए पाण्डव उसे अर्थात दुर्योधन को ही ज़िम्मेदार
मानते हैं। वह यह भी जानता है कि पाण्डव अब उसकी जान लेकर छोड़ेंगे।
प्रश्न- ख) वक्ता इस समय असहाय क्यों हो गया था ? [2]
उत्तर - वक्ता इस समय असहाय हो गया था क्योंकि उसका साहस, मनोबल सब टूट चुका था। वह स्वयं
को अकेला महसूस कर रहा था। महाभारत के युद्ध में कौरवों की सारी सेना नष्ट हो चुकी थी।
सभी रथी-महारथी मारे जा चुके थे। बचे खुचे सैनिक जान बचाकर भाग गए थे। दुर्योधन स्वयं भी
घायल होकर बुरी तरह थक चुका था। उसके अस्त्र-शस्त्र भी खत्म हो गए थे। उसका कवच भी टूट
चुका था।
प्रश्न- घ) श्रोता को तेरह वर्ष का समय क्यों दिया गया था ? [3]
उत्तर - श्रोता युधिष्ठिर है। श्रोता को तेरह वर्ष का समय दिया गया था क्योंकि कौरवों ने षड्यंत्र करके
पाण्डवों को जुए में हराकर उनका सब कुछ उनसे छीन लिया था। जुए में उन्होंने यह शर्त रखी थी
कि जो पक्ष भी हारेगा उसे बारह वर्ष का वनवास तथा एक वर्ष का अज्ञातवास बिताना होगा। इस
एक वर्ष की अवधि में यदि वे पहचान लिए गए तो उन्हें फिर से तेरह वर्ष वन में ही बिताने होंगे।
प्रश्न- श्रोता को जो समय दिया गया था , उसके पीछे वक्ता का क्या उद्देश्य था ? क्या वह अपने उद्देश्य
में सफल हो सका ? [3]
उत्तर- श्रोता को जो समय दिया गया था, उसके पीछे वक्ता का उद्देश्य पाण्डवों के मनोबल को तोड़ना तथा
उन्हें राज्य और समाज से दूर करना था। वक्ता का उद्देश्य यह था कि पाण्डव वैभव, सत्ता और राज-
काज से दूर रहे और इन तेरह वर्षों में वे पूरी तरह कमज़ोर और शक्तिहीन हो जाए, जिससे कि वक्ता
इन वर्षों में स्वयं अपने मित्रों की संख्या तथा अपनी सैन्य-शक्ति बढ़ा सके और पूरे राज्य को अपने
अधिकार में कर ले।
नहीं वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सका
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6. दीपदान (डॉ रामकुमार वर्मा)
रचनाकार परिचय :
ये आधुनिक काल के रचनाकार हैं। इन्हें हिंदी नाटकों का जनक कहा जाता है। इनके अधिकांश नाटक ऐतिहासिक तथा सामाजिक समस्याओं से जुड़े रहते हैं।
रचनाएँ :
पृथ्वीराज की आँखें, रेशमी टाई, चित्र रेखा, जूही के फूल, जौहर आदि।
शब्दार्थ :
१. अंत:पुर- रनिवास (महल के अंदर का भाग जहाँ स्त्रियाँ रहती हैं।)
२. परिचारिका- सेविका
३. नेपथ्य- परदे के पीछे
४. मल्ल-क्रीड़ा – कुश्ती
५. ब्यालू – शाम / रात्री का भोजन
६. बाटड़ली – रास्ता
७. नराधम – अत्याचारी
८. मेड़याँ – भवन
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर :
१. रूठ गए, कुँवर ! रूठने से राजवंश नहीं चलते। जाओ, विश्राम करो। देखो, तुम्हारे कपड़ों पर धूल छा रही
है। दिन भर तुम तलवार का खेल खेलते रहे, थक गए होगे। जाओ, शैया पर सो जाओ।
प्रश्न क) ‘ कुँवर ’ कौन हैं ? उनका संक्षिप्त परिचय दें। 2
उत्तर - ‘ कुँवर ’ चित्तौड़ के स्वर्गीय महाराणा साँगा के छोटे पुत्र उदय सिंह है। वह राज्य का भावी
उत्तराधिकारी है। उसकी आयु चौदह (14) वर्ष है।
प्रश्न ख) वक्ता ने ऐसा क्यों कहा कि ‘ रूठने से राजवंश नहीं चलते। ’ 2
उत्तर - वक्ता पन्ना धाय माँ उदय सिंह को चित्तौड़ का भावी सम्राट मानती है। अत: राजा-महाराजाओं को
रूठने-मनाने जैसी छोटी-छोटी बातें शोभा नहीं देतीं। वे अगर सामान्य बातों पर रूठने लगेंगे तो
इतना बड़ा राजवंश कैसे चलाएँगे। धाय माँ उदय सिंह को दिन में चित्तौड़ का सूरज और रात में
राजवंश का दीपक मानती है। अत: ऐसा करना उनके पद के अनुरूप नहीं है।
प्रश्न ग) वक्ता का परिचय देते हुए उसका चरित्र-चित्रण करें। 3
उत्तर - वक्ता ‘ पन्ना ’ है। वह ‘ खीचो ’ जाति की राजपूतानी महिला है। वह लगभग तीस वर्ष की है। वह
उदयसिंह की संरक्षिका है। सभी उसे प्यार से धाय माँ कहते हैं। वह एक ममतामयी, स्नेही, ज़िम्मेदार
तथा स्वामीभक्त महिला है जिसने अपने पुत्र की बलि चढ़ाकर राजवंश के उत्तराधिकारी कुँवर उदय
सिंह के जीवन की रक्षा की। अपने इकलौते पुत्र चन्दन का बलिदान करके उसने देशप्रेम और स्वामी -
भक्ति की जो मिसाल कायम की वह इतिहास में सबसे अनूठी है।
हम कह सकते हैं कि पन्ना एक आदार्श भारतीय नारी का आदर्श उदाहरण है।
प्रश्न घ) एकांकी के आधार पर बताएँ कि दीपदान उत्सव का आयोजन किसने किया था और क्यों ? 3
उत्तर- दीपदान उत्सव का आयोजन बनवीर ने किया था। यह आयोजन चित्तौड़ सिंहासन के उत्तराधिकारी
कुँवर उदय सिंह की हत्या के लिए किया गया षड्यंत्र था। बनवीर उदय सिंह को मारकर स्वयं राजा
बनने का मार्ग साफ़ करना चाहता था।
२. हाय ! सर्वनाश हो रहा है। क्या मेवाड़ को ऐसे ही दिन देखने थे ? क्या चित्तौड़ के साके का यही फल
होना था ? हाय ! क्या हो रहा है ? तुलजा भवानी। पृ० सं० 93
प्रश्न क) ‘ चित्तौड़ के साके ’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर - ‘ चित्तौड़ के साके ’ से तात्पर्य चित्तौड़ की कीर्ति से है। चित्तौड़ की भूमि ने बड़े-बड़े वीरों को जन्म
दिया है।
प्रश्न ख) ‘ तुलजा भवानी ’ कौन है ? उनके विषय में लोगों का क्या मानना है ?
उत्तर - ‘ तुलजा भवानी ’ चित्तौड़ की इष्ट देवी हैं। वह माँ दुर्गा का अवतार हैं। उनके एक हाथ में त्रिशुल
विराजमान है। उनके भक्त मानते हैं कि इसी त्रिशुल से तुलजा भवानी दुष्टों का संहार किया करती
हैं ताकि उनके भक्त निर्भय होकर रह सकें।
प्रश्न ग) वक्ता कौन है ? उसका परिचय दें।
उत्तर - वक्ता अन्त:पुर की परिचारिका सामली है। सामली एक स्वामिभक्त, कर्त्तव्यनिष्ठ एवं कृतज्ञ दासी है
जो निष्ठा एवं लगन से अपना कर्त्तव्य निभाती चली आ रही है। वह चित्तौड़ के स्वर्गीय महाराणा साँगा
तथा महाराणा विक्रमादित्य की कृतज्ञ रही है। अब वह चित्तौड़ के भावी शासक एवं उत्तराधिकारी
कुँवर उदय सिंह के प्रति चिंतित है।
प्रश्न घ) ‘ दीपदान ’ एकांकी का उद्देश्य स्पष्ट करें।
उत्तर - ‘ दीपदान ’ एकांकी का उद्देश्य त्याग की भावना से परिपूर्ण है। एकांकीकार ने पन्ना धाय के अपूर्व
त्याग एवं बलिदान की भावना तथा स्वामिभक्ति को इस एकांकी के द्वारा अभिव्यक्त किया है। पन्ना
धाय ने अपने कलेजे के टुकड़े अपने पुत्र चंदन का बलिदान करके अपने स्वामी राणा साँगा की धरोहर
उदय सिंह की रक्षा करके जो अपूर्व आदर्श प्रस्तुत किया है उसी को दर्शाना लेखक का उद्देश्य रहा है।
इस एकांकी द्वारा एकांकीकार पन्ना के माध्यम से यह संदेश देता है कि राष्ट्र प्रेम पुत्र प्रेम से बड़ा
और महान है।
रचनाकार परिचय :
ये आधुनिक काल के रचनाकार हैं। इन्हें हिंदी नाटकों का जनक कहा जाता है। इनके अधिकांश नाटक ऐतिहासिक तथा सामाजिक समस्याओं से जुड़े रहते हैं।
रचनाएँ :
पृथ्वीराज की आँखें, रेशमी टाई, चित्र रेखा, जूही के फूल, जौहर आदि।
शब्दार्थ :
१. अंत:पुर- रनिवास (महल के अंदर का भाग जहाँ स्त्रियाँ रहती हैं।)
२. परिचारिका- सेविका
३. नेपथ्य- परदे के पीछे
४. मल्ल-क्रीड़ा – कुश्ती
५. ब्यालू – शाम / रात्री का भोजन
६. बाटड़ली – रास्ता
७. नराधम – अत्याचारी
८. मेड़याँ – भवन
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर :
१. रूठ गए, कुँवर ! रूठने से राजवंश नहीं चलते। जाओ, विश्राम करो। देखो, तुम्हारे कपड़ों पर धूल छा रही
है। दिन भर तुम तलवार का खेल खेलते रहे, थक गए होगे। जाओ, शैया पर सो जाओ।
प्रश्न क) ‘ कुँवर ’ कौन हैं ? उनका संक्षिप्त परिचय दें। 2
उत्तर - ‘ कुँवर ’ चित्तौड़ के स्वर्गीय महाराणा साँगा के छोटे पुत्र उदय सिंह है। वह राज्य का भावी
उत्तराधिकारी है। उसकी आयु चौदह (14) वर्ष है।
प्रश्न ख) वक्ता ने ऐसा क्यों कहा कि ‘ रूठने से राजवंश नहीं चलते। ’ 2
उत्तर - वक्ता पन्ना धाय माँ उदय सिंह को चित्तौड़ का भावी सम्राट मानती है। अत: राजा-महाराजाओं को
रूठने-मनाने जैसी छोटी-छोटी बातें शोभा नहीं देतीं। वे अगर सामान्य बातों पर रूठने लगेंगे तो
इतना बड़ा राजवंश कैसे चलाएँगे। धाय माँ उदय सिंह को दिन में चित्तौड़ का सूरज और रात में
राजवंश का दीपक मानती है। अत: ऐसा करना उनके पद के अनुरूप नहीं है।
प्रश्न ग) वक्ता का परिचय देते हुए उसका चरित्र-चित्रण करें। 3
उत्तर - वक्ता ‘ पन्ना ’ है। वह ‘ खीचो ’ जाति की राजपूतानी महिला है। वह लगभग तीस वर्ष की है। वह
उदयसिंह की संरक्षिका है। सभी उसे प्यार से धाय माँ कहते हैं। वह एक ममतामयी, स्नेही, ज़िम्मेदार
तथा स्वामीभक्त महिला है जिसने अपने पुत्र की बलि चढ़ाकर राजवंश के उत्तराधिकारी कुँवर उदय
सिंह के जीवन की रक्षा की। अपने इकलौते पुत्र चन्दन का बलिदान करके उसने देशप्रेम और स्वामी -
भक्ति की जो मिसाल कायम की वह इतिहास में सबसे अनूठी है।
हम कह सकते हैं कि पन्ना एक आदार्श भारतीय नारी का आदर्श उदाहरण है।
प्रश्न घ) एकांकी के आधार पर बताएँ कि दीपदान उत्सव का आयोजन किसने किया था और क्यों ? 3
उत्तर- दीपदान उत्सव का आयोजन बनवीर ने किया था। यह आयोजन चित्तौड़ सिंहासन के उत्तराधिकारी
कुँवर उदय सिंह की हत्या के लिए किया गया षड्यंत्र था। बनवीर उदय सिंह को मारकर स्वयं राजा
बनने का मार्ग साफ़ करना चाहता था।
२. हाय ! सर्वनाश हो रहा है। क्या मेवाड़ को ऐसे ही दिन देखने थे ? क्या चित्तौड़ के साके का यही फल
होना था ? हाय ! क्या हो रहा है ? तुलजा भवानी। पृ० सं० 93
प्रश्न क) ‘ चित्तौड़ के साके ’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर - ‘ चित्तौड़ के साके ’ से तात्पर्य चित्तौड़ की कीर्ति से है। चित्तौड़ की भूमि ने बड़े-बड़े वीरों को जन्म
दिया है।
प्रश्न ख) ‘ तुलजा भवानी ’ कौन है ? उनके विषय में लोगों का क्या मानना है ?
उत्तर - ‘ तुलजा भवानी ’ चित्तौड़ की इष्ट देवी हैं। वह माँ दुर्गा का अवतार हैं। उनके एक हाथ में त्रिशुल
विराजमान है। उनके भक्त मानते हैं कि इसी त्रिशुल से तुलजा भवानी दुष्टों का संहार किया करती
हैं ताकि उनके भक्त निर्भय होकर रह सकें।
प्रश्न ग) वक्ता कौन है ? उसका परिचय दें।
उत्तर - वक्ता अन्त:पुर की परिचारिका सामली है। सामली एक स्वामिभक्त, कर्त्तव्यनिष्ठ एवं कृतज्ञ दासी है
जो निष्ठा एवं लगन से अपना कर्त्तव्य निभाती चली आ रही है। वह चित्तौड़ के स्वर्गीय महाराणा साँगा
तथा महाराणा विक्रमादित्य की कृतज्ञ रही है। अब वह चित्तौड़ के भावी शासक एवं उत्तराधिकारी
कुँवर उदय सिंह के प्रति चिंतित है।
प्रश्न घ) ‘ दीपदान ’ एकांकी का उद्देश्य स्पष्ट करें।
उत्तर - ‘ दीपदान ’ एकांकी का उद्देश्य त्याग की भावना से परिपूर्ण है। एकांकीकार ने पन्ना धाय के अपूर्व
त्याग एवं बलिदान की भावना तथा स्वामिभक्ति को इस एकांकी के द्वारा अभिव्यक्त किया है। पन्ना
धाय ने अपने कलेजे के टुकड़े अपने पुत्र चंदन का बलिदान करके अपने स्वामी राणा साँगा की धरोहर
उदय सिंह की रक्षा करके जो अपूर्व आदर्श प्रस्तुत किया है उसी को दर्शाना लेखक का उद्देश्य रहा है।
इस एकांकी द्वारा एकांकीकार पन्ना के माध्यम से यह संदेश देता है कि राष्ट्र प्रेम पुत्र प्रेम से बड़ा
और महान है।
Thanks, now I can complete my notes on time :D
ReplyDeleteThis Is very Helpful For Revision
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