1. बात अठन्नी की
सुदर्शन (बद्रीनाथ भट्ट 'सुदर्शन')
रचनाकार परिचय
ये आधुनिक काल के रचनाकार हैं। इनका जन्म वर्ष 1896 ई.
में सियालकोट (वर्तमान
पाकिस्तान) में
हुआ था। इन्होंने अपनी कहानियों द्वारा
समाज व
राष्ट्र को
स्वच्छ व
सुदृढ़ बनाने की कोशिश की है। कहानी सम्राट प्रेमचंद की
तरह ये
भी मूलत:
उर्दू में
ही लेखन
कार्य किया
करते थे।
ये उर्दू
से हिन्दी
में आये
थे। इनका
दृष्टिकोण सुधारवादी
था।
भाषा: सुदर्शन की भाषा सहज, स्वाभाविक, प्रभावी और मुहावरेदार थी।
रचनाएँ: हार की जीत, सच का सौदा, अठन्नी का चोर, साईकिल की सवारी, तीर्थ-यात्रा, पत्थरों का सौदागर,
पृथ्वी-वल्लभ आदि।
शब्दार्थ:
१. भार- ज़िम्मेदारी
२. पेशगी- पहले दिया जाने वाला धन,
३. रंग उड़ गया- घबरा जाना,
४. आँखों में खून उतर आना- बहुत क्रोधित होना,
५.ऋण- कर्ज,
६.अंधेरी कोठरी- जेल,
७. ठंडी साँस भरना- दुखी होना,
८.आँख न उठा पाना- शर्मिंदा होना।
२. पेशगी- पहले दिया जाने वाला धन,
३. रंग उड़ गया- घबरा जाना,
४. आँखों में खून उतर आना- बहुत क्रोधित होना,
५.ऋण- कर्ज,
६.अंधेरी कोठरी- जेल,
७. ठंडी साँस भरना- दुखी होना,
८.आँख न उठा पाना- शर्मिंदा होना।
वाक्य गठन:
१. भार- बच्चों के पालन-पोषण का भार माता-पिता पर है।
२. पेशगी- अपनी कन्या के विवाह के लिए गरीब रामू को बैंक से पेशगी लेनी पड़ी।
३. रंग उड़ गया- पुलीस को सामने देखते ही चोर का रंग उड़ गया।
प्रश्न:
१. शेख साहब न्यायप्रिय आदमी थे। उन्होंने रसीला को छह महीने की सजा सुना दी और रूमाल से मुँह
पोंछा।
प्रश्न क) किसे सज़ा सुनाई गई और क्यों ?
उत्तार - रसीला को अठन्नी की हेरा-फेरी के दोष में छह महीने की
सज़ा सुनाई गई।
प्रश्न ख) उसका अपराध या झूठ कैसे पकड़ा गया ?
उत्तर - रसीला इंजीनियर साहब के यहाँ नौकरी करता था। इंजीनियर
साहब ने रसीला को पाँच रुपए मिठाई लाने के
लिए दिए थे। रसीला साढ़े चार रुपए की मिठाई लाया। मिठाई कम देखकर उन्हें रसीला पर संदेह हुआ। एक-दो
बार प्यार से पूछने पर भी रसीला अपनी बात पर अडिग रहा कि वह पाँच रुपए की ही मिठाई लाया है। पर
इंजीनियर साहब द्वारा डाँटने और फटकारने पर उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया।
लिए दिए थे। रसीला साढ़े चार रुपए की मिठाई लाया। मिठाई कम देखकर उन्हें रसीला पर संदेह हुआ। एक-दो
बार प्यार से पूछने पर भी रसीला अपनी बात पर अडिग रहा कि वह पाँच रुपए की ही मिठाई लाया है। पर
इंजीनियर साहब द्वारा डाँटने और फटकारने पर उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया।
प्रश्न ग) कहानी में किस पर व्यंग्य किया गया है और असली अपराधी कौन है ?
उत्तर- कहानी में धनवान एवं रिश्वतखोर लोगों पर व्यंग्य किया गया है।
असली
अपराधी शेख साहब और जगत बाबू जैसे लोग हैं जो रिश्वत के पैसे से बड़ी-बड़ी कोठियाँ
बनाकर ऐश
करते हैं।
करते हैं।
प्रश्न घ) कहनी का उद्देश्य स्पष्ट करें।
उत्तर- कहानी का उद्देश्य समाज में व्याप्त रिश्वत खोरी की
प्रवृत्ति पर व्यंग्य करना है।लेखक ने इस कहानी के
माध्यम से बताया है कि समाज का अमीर वर्ग चाहें तो पाँच सौ या हज़ार की रिश्वत ले लें परंतु उसके प्रति
कोई कार्यवाही नहीं की जाती है लेकिन यदि एक गरीब व्यक्ति अपनी उधारी चुकाने के लिए अठन्नी की
हेरा-फेरी करता है तो वह गुनाहगार हो जाता है और उसे सज़ा सुना दी जाती है। कहानीकार हमें यह बताता
है कि रिश्वत समाज की एक बहुत बड़ी बीमारी है जिसके प्रति हमें एक ठोस कदम उठाने की जरुरत है।
समाज से असमानता की भावना को दूर करना भी कहानीकार का उद्देश्य रहा है।
माध्यम से बताया है कि समाज का अमीर वर्ग चाहें तो पाँच सौ या हज़ार की रिश्वत ले लें परंतु उसके प्रति
कोई कार्यवाही नहीं की जाती है लेकिन यदि एक गरीब व्यक्ति अपनी उधारी चुकाने के लिए अठन्नी की
हेरा-फेरी करता है तो वह गुनाहगार हो जाता है और उसे सज़ा सुना दी जाती है। कहानीकार हमें यह बताता
है कि रिश्वत समाज की एक बहुत बड़ी बीमारी है जिसके प्रति हमें एक ठोस कदम उठाने की जरुरत है।
समाज से असमानता की भावना को दूर करना भी कहानीकार का उद्देश्य रहा है।
2. फैसला सुनकर रमज़ान की आँखों में खून उतर आया। सोचने लगा," यह दुनिया न्याय नगरी नहीं,
अंधेर नगरी है।"
प्रश्न क) किसकी आँखों में खून उतर आया और क्यों ?
उत्तर- रमज़ान की आँखों में खून उतर आया जब उसने सुना कि शेख साहब
ने रसीला को उसके छोटे से अपराध
अठन्नी की हेरा-फेरी के लिए छह महीने की सज़ा सुनाई।
अठन्नी की हेरा-फेरी के लिए छह महीने की सज़ा सुनाई।
प्रश्न ख) रमज़ान की निगाहों में दुनिया क्या है और क्यों ?
उत्तर- रमज़ान की
निगाहों में दुनिया न्याय नगरी नहीं बल्कि अंधेर नगरी है क्योंकि जो बड़े- बड़े
अपराधी हैं, वे
स्वयं कानून-दान बने बैठे हैं। वे भला क्या सही न्याय करेंगे।
स्वयं कानून-दान बने बैठे हैं। वे भला क्या सही न्याय करेंगे।
प्रश्न ग) रमज़ान का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर- रमज़ान जगत सिंह
के पड़ोसी शेख सलामुद्दीन के यहाँ नौकर था। रमज़ान दयालु प्रवृत्ति का व्यक्ति
है। वह
एक सच्चा मित्र है। मित्र के दु:ख से वह भी दुखी होता है और उसके कष्टों को दूर करने की कोशिश करता है।
इसका उदाहरण हमें तब मिलता है जब वह रसीला को पाँच रुपए देकर उसकी आर्थिक सहायता करता है।
साथ ही अपनी बकाया रकम के बारे में कभी चर्चा भी नहीं करता है। जब उसके मित्र को जेल की सज़ा सुनाई
जाती है तो रमज़ान का मन भर आता है। उसके विचार में पाँच सौ और हज़ार रुपए की चोरी करने वाले तो
सभ्य बने बैठे हैं, उन्हें कोई नहीं पूछता जबकि एक गरीब को मात्र आठन्नी की चोरी के लिए दंड दिया जाता
है। इसी कारण वह दुनिया को न्याय नगरी नहीं बल्कि अँधेर नगरी कहता है। अंतत: हम कह सकते हैं कि
रमज़ान गरीब भले ही है लेकिन वह कठिन समय में अपने मित्र रसीला की मदद करके आदमी नहीं बल्कि
देवता की भूमिका निभाता है।
एक सच्चा मित्र है। मित्र के दु:ख से वह भी दुखी होता है और उसके कष्टों को दूर करने की कोशिश करता है।
इसका उदाहरण हमें तब मिलता है जब वह रसीला को पाँच रुपए देकर उसकी आर्थिक सहायता करता है।
साथ ही अपनी बकाया रकम के बारे में कभी चर्चा भी नहीं करता है। जब उसके मित्र को जेल की सज़ा सुनाई
जाती है तो रमज़ान का मन भर आता है। उसके विचार में पाँच सौ और हज़ार रुपए की चोरी करने वाले तो
सभ्य बने बैठे हैं, उन्हें कोई नहीं पूछता जबकि एक गरीब को मात्र आठन्नी की चोरी के लिए दंड दिया जाता
है। इसी कारण वह दुनिया को न्याय नगरी नहीं बल्कि अँधेर नगरी कहता है। अंतत: हम कह सकते हैं कि
रमज़ान गरीब भले ही है लेकिन वह कठिन समय में अपने मित्र रसीला की मदद करके आदमी नहीं बल्कि
देवता की भूमिका निभाता है।
प्रश्न घ) 'बात अठन्नी की’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध करें।
उत्तर- 'बात अठन्नी की’ कहानी का शीर्षक बिल्कुल सार्थक है। शीर्षक जहाँ संक्षिप्त,
आकर्षक और जिज्ञासावद्र्धक
है वहीं पूरी कहानी शुरु से लेकर अंत तक शीर्षक के चारो ओर घुमती है। यदि इस कहानी से इन शब्दों को
निकाल दें तो कहानी खोखली प्रतीत होगी। अठन्नी के माध्यम से कहानीकार ने समाज के उच्च वर्ग और
निम्न वर्ग की स्थिति को उभारने की कोशिश की है। जहाँ समाज का उच्च वर्ग बड़े-बड़े अपराध करके,रिश्वत
लेकर भी सभ्य इंसान कहलाने का दावा भरता है, वहीं समाज का निम्न वर्ग मज़बूरी वश अठन्नी की
हेरा-फेरी के लिए जेल की सज़ा काटता है।
है वहीं पूरी कहानी शुरु से लेकर अंत तक शीर्षक के चारो ओर घुमती है। यदि इस कहानी से इन शब्दों को
निकाल दें तो कहानी खोखली प्रतीत होगी। अठन्नी के माध्यम से कहानीकार ने समाज के उच्च वर्ग और
निम्न वर्ग की स्थिति को उभारने की कोशिश की है। जहाँ समाज का उच्च वर्ग बड़े-बड़े अपराध करके,रिश्वत
लेकर भी सभ्य इंसान कहलाने का दावा भरता है, वहीं समाज का निम्न वर्ग मज़बूरी वश अठन्नी की
हेरा-फेरी के लिए जेल की सज़ा काटता है।
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2. काकी
सियारामशरण गुप्त
रचनाकार परिचय: ये आधुनिक काल के रचनाकर हैं। ये राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के अग्रज थे। इनकी रचनाओं
में दरिद्रता, कुरीतियों के विरुद्ध आक्रोश आदि भाव दिखाई देते हैं।
रचनाएँ : अनाथ, आर्द्रा, मानुषी, नारी और गोद आदि।
भाषा: इन्होंने सरल, सहज तथा व्यावहारिक भाषा का प्रयोग किया है।
शब्दार्थ:
१. कुहराम- रोना, कलपना
२. शयन- सोना
३. आवरण- परदा
४. अबोध- अज्ञान
५. अगोचर- गायब
६. आर्द्रता- गीलापन
७. शोक- दु:ख
८. ओछी- छोटी
९. प्रफुल्ल- खुश
१०.तमाचा- थप्पड़।
वाक्य गठन:
१. आवरण- असत्य का आवरण एक न एक दिन हटता ही है।
२. अबोध- बालक अबोध होते हैं इसलिए उनकी गलती भी माफ होती है।
३. आर्द्रता- वर्षा के कारण अभी भी भूमि में आर्द्रता व्याप्त है।
४. शोक- अति वर्षा के कारण किसान शोक में डूब गए।
५. ओछी- हमें ओछी हरकतों से दूर ही रहना चाहिए।
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर:
१. वर्षा के अननंतर एक दो दिन में ही पृथ्वी के ऊपर का पानी तो अगोचर हो जाता है,परंतु
भीतर-ही-भीतर उसकी आर्द्रता जैसे बहुत दिन तक बनी रहती है, वैसे ही उसके अंतस्तल में वह
शोक जाकर बस गया था।
प्रश्न क) प्रस्तुत पंक्ति कहाँ से ली गई है तथा इसके रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति 'काकी’ पाठ से ली गई है तथा इसके रचनाकार सियारामशरण गुप्त
हैं।
प्रश्न ख) शोक से क्या तात्पर्य है ? कौन शोक से ग्रस्त था ?
उत्तर- 'शोक ’ से तात्पर्य दु:ख से है। विश्वेश्वर
का पुत्र श्यामू शोक से ग्रस्त था ।
प्रश्न ग) शोक-ग्रस्त होने का कारण क्या था ?
उत्तर- श्यामू के शोक-ग्रस्त होने का कारण यह था कि उसकी काकी
(माँ) उमा की मौत हो गई थी। लोग उसे उसकी
काकी (माँ) उमा को उससे दूर करके श्मशान ले जाकर उसका दाह संस्कार कर दिए थे। उसे अब अपनी माँ का
सामीप्य नहीं मिल पा रहा था। वह अपनी माँ के स्नेह से वंचित हो गया था।
काकी (माँ) उमा को उससे दूर करके श्मशान ले जाकर उसका दाह संस्कार कर दिए थे। उसे अब अपनी माँ का
सामीप्य नहीं मिल पा रहा था। वह अपनी माँ के स्नेह से वंचित हो गया था।
प्रश्न घ) प्रस्तुत पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति श्यामू के संदर्भ में कही गई है। जिस
तरह वर्षा के बाद एक-दो दिन में पृथ्वी के ऊपर का पानी
तो हट जाता है परंतु पृथ्वी के भीतर उसकी आर्द्रता बहुत दिनों तक बनी रहती है। ठीक इसी तरह काकी (माँ)
उमा की मृत्यु होने पर श्यामू बहुत दुखी होता है। वह रोता है। कुछ दिनों बाद उसका रोना तो बंद हो जाता है
परंतु उसके अंतस्तल में वह शोक जाकर बस गया था।
तो हट जाता है परंतु पृथ्वी के भीतर उसकी आर्द्रता बहुत दिनों तक बनी रहती है। ठीक इसी तरह काकी (माँ)
उमा की मृत्यु होने पर श्यामू बहुत दुखी होता है। वह रोता है। कुछ दिनों बाद उसका रोना तो बंद हो जाता है
परंतु उसके अंतस्तल में वह शोक जाकर बस गया था।
२. विश्वेश्वर हतबुद्धि होकर वहीं खड़े हो गए। उन्होंने फटी हुई पतंग उठाकर देखी। उस पर चिपके
हुए कागज़ पर लिखा हुआ था- काकी।
प्रश्न क) विश्वेश्वर कौन हैं ? पाठ के मुख्य पात्र के साथ उसका क्या संबंध था ?
उत्तर- विश्वेश्वर काकी
उमा के पति हैं। वह श्यामू का काका (पिता) हैं। इस प्रकार पाठ के मुख्य पात्र के
साथ उसका
संबंध पिता-पुत्र का था।
संबंध पिता-पुत्र का था।
प्रश्न ख) पतंग फटी हुई क्यों थी ?
उत्तर- पतंग फटी हुई थी क्योंकि विश्वेश्वर को लगा था कि श्यामू
ने पैसे चोरी करके पतंग लाया है। अत: क्रोध में
उन्होंने पतंग फाड़ दी।
उन्होंने पतंग फाड़ दी।
प्रश्न ग) विश्वेश्वर हतबुद्धि क्यों था ?
उत्तर- विश्वेश्वर हतबुद्धि
था क्योंकि उसने जिस वज़ह से श्यामू को थप्पड़ मारा था, वह वज़ह गलत थी। उन्होंने
समझा था कि श्यामू ने उनकी कोट से गलत उद्देश्य से पैसे चोरी किए जबकि श्यामू ने पैसे इसलिए
निकाले थे कि वह उन पैसों से एक पतंग और डोर मँगवाएगा और उस पर काकी का नाम लिखकर उसे राम
(भगवान) के पास भेजेगा जो मृत्यु उपरांत वहाँ चली गई हैं। जब काकी तक पतंग पहुँचेगी तो काकी उसकी
डोर पकड़ कर नीचे उसके पास पुन: आ जाएगी। इसी भेद के खुलने पर वह हतबुद्धि था।
समझा था कि श्यामू ने उनकी कोट से गलत उद्देश्य से पैसे चोरी किए जबकि श्यामू ने पैसे इसलिए
निकाले थे कि वह उन पैसों से एक पतंग और डोर मँगवाएगा और उस पर काकी का नाम लिखकर उसे राम
(भगवान) के पास भेजेगा जो मृत्यु उपरांत वहाँ चली गई हैं। जब काकी तक पतंग पहुँचेगी तो काकी उसकी
डोर पकड़ कर नीचे उसके पास पुन: आ जाएगी। इसी भेद के खुलने पर वह हतबुद्धि था।
प्रश्न घ) शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट करें।
उत्तर- 'काकी’ कहानी का शीर्षक सार्थक है। यह कहानी शीर्षक के सभी नियमों का पालन
करती है। शीर्षक जहाँ
संक्षिप्त, आकर्षक और जिज्ञासावर्द्धक है वहीं पूरी कहानी उसके चारो ओर घूमती है। यदि कहानी से 'काकी’
शब्द को निकाल दें तो कहानी खोखली प्रतीत होगी। अत: शीर्षक सार्थक है।
संक्षिप्त, आकर्षक और जिज्ञासावर्द्धक है वहीं पूरी कहानी उसके चारो ओर घूमती है। यदि कहानी से 'काकी’
शब्द को निकाल दें तो कहानी खोखली प्रतीत होगी। अत: शीर्षक सार्थक है।
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3. महायज्ञ का पुरस्कार
रचनाकार परिचय:
ये आधुनिक काल के रचनाकार हैं। इनका नाम आधुनिक हिन्दी साहित्य के कथाकारों में प्रमुख है। ये क्रांतिकारी एवं लेखक दोनों थे। हिन्दी के सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कथाकारों में प्रेमचंद के बाद इनका ही नाम लिया जाता है। अपने विद्यार्थी जीवन से ही यशपाल क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़े। इसके बाद इन्होंने साहित्य को अपना जीवन बनाया।
पुरस्कार
भाषा:यशपाल जी की भाषा व्यावहारिक और सहज है।
शब्दार्थ:
१. आद्योपांत – मैंने पूरे साल आद्योपांत पढ़ाई की इसलिए मेरे परिणाम इतने अच्छे हैं।
१.उन दिनों एक प्रथा प्रचलित थी। यज्ञों के फल का क्रय-विक्रय हुआ करता था। छोटा-बड़ा जैसा यज्ञ
होता, उनके अनुसार मूल्य मिल जाता। जब बहुत तंगी हुई तो एक दिन सेठानी ने कहा, “न हो तो
एक यज्ञ ही बेच डालो!”
प्रश्न क) - धनी सेठ का परिचय अपने शब्दों में दीजिए।
२. अब उसके शरीर में थोड़ी जान आती दिखाई दी। वह मुँह उठाकर सेठ की ओर देखने लगा। उसकी
आँखों में कृतज्ञता थी। सेठ ने सोचा कि एक रोटी इसे और खिला दूँ, तो फिर चलने फिरने योग्य हो
जाएगा।
प्रश्न क) किसका हृदय दया से भर गया और क्यों ? उसने क्या किया ?
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क) “यह संसार है यार !”- कथन में छिपे व्यंग्य को स्पष्ट करें।
- “यह संसार है यार !”- कथन में संसार की रीति पर व्यंग्य किया गया है। लोग संसार में पहले अपनी जरुरतों की पूर्ति करते हैं, तब दूसरों के बारे में सोचते हैं। कभी-कभी तो वे अपने स्वार्थ के अलावा कुछ भी नहीं सोचते। कहानीकार पाठ में अपने मित्र द्वारा संसार के स्वार्थ, लाचारी, निष्ठुरता और बेहयाई को प्रकट किया है।
ख) लेखक के मित्र का चरित्र-चित्रण करें।
- लेखक के मित्र एक भावुक और संवेदनशील व्यक्ति थे। वह परोपकारी स्वभाव के थे। इसलिए वह गरीब बच्चे की सहायता करना चाहते थे। वह दयालु प्रकृति के थे । तभी तो वह उस बालक को ‘वकील’ के पास ले जाते हैं और जब वह ‘वकील’ साहब सहायता करने से मना कर देते हैं तो वह असमंजस में पड़ जाते हैं। वह प्रकृति प्रेमी और घुमक्कड़ भी हैं तभी तो वह लेखक के साथ नैनीताल घूमने गए थे।
ग) दूसरे दिन मोटर पर सवार होते ही लेखक को क्या समाचार मिला ? लड़के की मौत के बारे में लेखक को
- दूसरे दिन मोटर पर सवार होते ही लेखक को यह समाचार मिला कि पिछली रात एक पहाड़ी बालक
घ) “आदमियों की दुनिया ने बस यही उपहार उसके पास छोड़ा था।”- इस कथन में “ आदमियों की दुनिया”
- आदमियों की दुनिया ने बस यही उपहार उसके पास छोड़ा था”- इस कथन में “ आदमियों की दुनिया” कहकर लेखक ने समाज पर व्यंग्य किया है। लेखक कहना चाहते हैं कि इस समाज में लोगों को एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति भी नहीं है। वह एक-दूसरे के तकलीफों को न जानता है और न ही समझता है।
२. “हाँ, साहब ने मारा, मर गया।”
क) किसने, किसके मारे जाने की बात, किसे बताई ? वह कैसे मारा गया ?
- लड़के ने, अपने साथी मित्र के मारे जाने की बात, लेखक को बताई। अपने उसी साथी के बारे में बताया
ख) वकील साहब का परिचय दें। उसने बच्चे को नौकर क्यों नहीं रखा ?
- वकील साहब कश्मीरी दोशाला ओढ़े थे। पैरों मे मोजा और चप्पल पहने हुए थे। स्वर में हल्की झुँझलाहट
ग) कहानी का उद्देश्य स्पष्ट करें।
- कहानी का उद्देश्य आज के युग में व्याप्त स्वार्थपरता, मनुष्यों की हृदयहीनता, संवेदनशून्यता तथा गरीबी का चित्रण करना है। वास्तव में आज के लोगों में दयालुता तथा परोपकार जैसे मूल्यों का अभाव हो गया है, जिसके कारण किसी मज़बूर तथा दयनीय स्थिति से जूझते व्यक्ति की सहायता करने के बजाय उसकी स्थिति को ‘अपना-अपना भाग्य’ बताकर हर कोई अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहता है। अमीर लोग अपनी संपत्ति के कारण मौज़ उड़ाते हैं। उन्हें दूसरों के दु:ख-दर्द से कोई सरोकार नहीं होता।
घ) लड़के की हालत का वर्णन करते हुए बताएँ कि वह कहाँ से आया था और क्यों ?
- लड़का पहाड़ी बालक था। उसकी उम्र दस वर्ष थी। उसकी हालत दयनीय थी। न सिर पर टोपी, न पैरों में जूते तथा न ही शरीर पर पूरे वस्त्र। इतनी ठिठुरती ठंड में भी वह इधर-उधर घूम रहा था। उसके पास न कोई काम –धंधा था, न सिर छिपाने के लिए स्थान। जहाँ वह काम करता था, वहाँ से वह हटा दिया गया था। वहाँ उसे एक रुपया और जूठा खाना मिलता था।
3. महायज्ञ का पुरस्कार
यशपाल
रचनाकार परिचय:
ये आधुनिक काल के रचनाकार हैं। इनका नाम आधुनिक हिन्दी साहित्य के कथाकारों में प्रमुख है। ये क्रांतिकारी एवं लेखक दोनों थे। हिन्दी के सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कथाकारों में प्रेमचंद के बाद इनका ही नाम लिया जाता है। अपने विद्यार्थी जीवन से ही यशपाल क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़े। इसके बाद इन्होंने साहित्य को अपना जीवन बनाया।
रचनाएँ
दिव्या, देशद्रोही, झूठा सच, दादा कामरेड, अमिता, मनुष्य के रूप, मेरी तेरी उसकी बात (उपन्यास), पिंजड़े की उड़ान, फूलों का कुर्ता, भस्मावृत चिंगारी, धर्मयुद्ध, सच बोलने की भूल (कहानी-संग्रह)
तथा चक्कर क्लब (व्यंग्य-संग्रह)।
पुरस्कार
'देव पुरस्कार' (1955), 'सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार' (1970), 'मंगला प्रसाद पारितोषिक' (1971) “पद्म भूषण', साहित्य अकादमी पुरस्कार।
भाषा:यशपाल जी की भाषा व्यावहारिक और सहज है।
शब्दार्थ:
१. पौ फटना- सूर्य का उदय होना
२. याचना- प्रार्थना
३. कृतज्ञता- उपकार मानना
४. आद्योपांत- शुरु से आखिर तक
५. कोस- लगभग दो मील के बराबर नाप
६. तहखाना- ज़मीन के नीचे बना
कमरा
७. प्रथा- रिवाज
८. धर्मपरायण- धर्म का पालन
करने वाला
९. विपदग्रस्त- मुसीबत में फँसे
१०. विस्मित- हैरान।
वाक्य गठन:
१. आद्योपांत – मैंने पूरे साल आद्योपांत पढ़ाई की इसलिए मेरे परिणाम इतने अच्छे हैं।
२. तहखाना- अकबर
का तहखाना खजाना से भरा हुआ है।
३. धर्मपरायण- राम धर्मपरायण इंसान थे इसलिए सभी उनकी
इज्जत करते थे।
४. विपदग्रस्त- हमें विपदग्रस्त लोगों की मदद करनी
चाहिए।
५. प्रथा- भारतीय अपनी प्रथा का पालन भली-भाँति करते
हैं।
प्रश्नोत्तर:
१.उन दिनों एक प्रथा प्रचलित थी। यज्ञों के फल का क्रय-विक्रय हुआ करता था। छोटा-बड़ा जैसा यज्ञ
होता, उनके अनुसार मूल्य मिल जाता। जब बहुत तंगी हुई तो एक दिन सेठानी ने कहा, “न हो तो
एक यज्ञ ही बेच डालो!”
प्रश्न क) - धनी सेठ का परिचय अपने शब्दों में दीजिए।
उत्तर- धनी सेठ अत्यंत विनम्र और उदार व्यक्ति थे।
वे धर्मपरायण इंसान थे। कोई भी साधु—संत उनके द्वार से
खाली हाथ न लौटता था। सभी को भरपेट भोजन मिलता था। उन्होंने अनेक यज्ञ किया था। दान में वे
दीन-दुखियों को बहुत-सा धन बाँटा करते थे।
खाली हाथ न लौटता था। सभी को भरपेट भोजन मिलता था। उन्होंने अनेक यज्ञ किया था। दान में वे
दीन-दुखियों को बहुत-सा धन बाँटा करते थे।
प्रश्न ख) कौन भूखों मरने लगा और क्यों
?
उत्तर- सेठ व सेठानी भूखों मरने लगे क्योंकि अकस्मात
उन्हें गरीबी का मुँह देखना पड़ा। उनके संगी-साथियों ने भी
उनसे मुँह फेर लिया। किसी ने उनकी मदद नहीं की। साथ ही यह तो हम सभी जानते ही हैं कि ‘सब दिन होत
न एक समान’।
उनसे मुँह फेर लिया। किसी ने उनकी मदद नहीं की। साथ ही यह तो हम सभी जानते ही हैं कि ‘सब दिन होत
न एक समान’।
प्रश्न ग) उन दिनों किस तरह की प्रथा
प्रचलित थी ? किसने, किसे क्या सलाह दी ?
उत्तर- उन
दिनों यज्ञों के फल को क्रय-विक्रय करने की प्रथा प्रचलित थी। छोटा-बड़ा जैसा यज्ञ
होता उनके अनुसार
मूल्य मिल जाता था। सेठानी ने, सेठ को एक यज्ञ बेचने की सलाह दी। अर्थात एक यज्ञ के पूण्य को बेचने की
सलाह दी।
मूल्य मिल जाता था। सेठानी ने, सेठ को एक यज्ञ बेचने की सलाह दी। अर्थात एक यज्ञ के पूण्य को बेचने की
सलाह दी।
प्रश्न घ) धन्ना सेठ कौन था ? वह कहाँ
रहता था ? उनकी पत्नी के बारे में क्या अफ़वाह थी ?
उत्तर- धन्ना सेठ एक धनी सेठ था। वह कुंदनपुर नामक
नगर में रहता था। उनकी पत्नी के बारे में यह अफ़वाह थी कि
सेठानी को कोई दैवी शक्ति प्राप्त है, जिससे वह तीनों लोकों की बात जान लेती हैं।
सेठानी को कोई दैवी शक्ति प्राप्त है, जिससे वह तीनों लोकों की बात जान लेती हैं।
२. अब उसके शरीर में थोड़ी जान आती दिखाई दी। वह मुँह उठाकर सेठ की ओर देखने लगा। उसकी
आँखों में कृतज्ञता थी। सेठ ने सोचा कि एक रोटी इसे और खिला दूँ, तो फिर चलने फिरने योग्य हो
जाएगा।
प्रश्न क) किसका हृदय दया से भर गया और क्यों ? उसने क्या किया ?
उत्तर- छटपटाते हुए कुत्ते को देखकर सेठ का हृदय
दया से भर गया। उसने उसे अपनी सारी रोटियाँ खिला दीं।
वस्तुत: जिस स्थान पर सेठ ने यह सोचा कि विश्राम करके भोजन कर लिया जाय वहीं निकट कोई हाथ भर
की दूरी पर एक कुत्ता छटपटा रहा था। उसका पेट कमर से लगा था। सेठ को रोटी खोलते देख वह बार-बार
गर्दन उठाता, पर दुर्बलता के कारण उसकी गर्दन गिर जाती थी। यह देख सेठ का हृदय दया से भर गया।
वस्तुत: जिस स्थान पर सेठ ने यह सोचा कि विश्राम करके भोजन कर लिया जाय वहीं निकट कोई हाथ भर
की दूरी पर एक कुत्ता छटपटा रहा था। उसका पेट कमर से लगा था। सेठ को रोटी खोलते देख वह बार-बार
गर्दन उठाता, पर दुर्बलता के कारण उसकी गर्दन गिर जाती थी। यह देख सेठ का हृदय दया से भर गया।
प्रश्न ख) सेठ के प्रति किसकी आँखों
में कृतज्ञता थी और क्यों ?
उत्तर- सेठ
के प्रति कुत्ते की आँखों में कृतज्ञता थी क्योंकि सेठ ने अपनी रोटी उसे खिलाकर
उसकी जान बचा ली थी।
प्रश्न ग) इस गद्यांश में सेठ की किस
विशेषता का पता चलता है ?
उत्तर- इस गद्यांश में सेठ की मानवता के गुणों का
पता चलता है। वह दया की भावना से भरपुर हैं। वह त्यागी हैं।
वह स्वयं भूखे रहकर दूसरों की जान बचाते हैं।
वह स्वयं भूखे रहकर दूसरों की जान बचाते हैं।
प्रश्न घ) कहानी का उद्देश्य स्पष्ट
करें।
उत्तर- कहानी का उद्देश्य वास्तव में महायज्ञ वह
नहीं होता जो सिर्फ इंसान दिखावे के तौर
पर हवन , पूजा पाठ
आदि करता है। वस्तुत: महायज्ञ वह होता है तो दुखियों के दु:ख को दूर करें, जो भूखों को भोजन कराए बिना
किसी स्वार्थ की भावना से। कहानीकार वास्तव में ये सारे गुण हम मानव में देखना चाहते हैं।
आदि करता है। वस्तुत: महायज्ञ वह होता है तो दुखियों के दु:ख को दूर करें, जो भूखों को भोजन कराए बिना
किसी स्वार्थ की भावना से। कहानीकार वास्तव में ये सारे गुण हम मानव में देखना चाहते हैं।
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4. नेताजी का चश्मा
स्वयं प्रकाश
रचनाकार परिचय : ये आधुनिक काल के रचनकार हैं।ये कहानीकार के साथ सशक्त
उपन्यास्कार भी हैं। इनकी कहानियों में वर्ग शोषण के विरुद्ध चेतना है।
रचनाएँ: सूरज कब
निकलेगा, आएँगे अच्छे दिन भी, आदमी जात का आदमी
आदि।
भाषा: इन्होंने
हिन्दी शब्दों के साथ ही अँग्रेजी शब्दों का भी प्रयोग किया
है।
शब्दार्थ
१.कस्बा- छोटा शहर
२.सराहनीय- प्रशंसनीय
३. कसर- कमी
४. कौतुक- उत्सुकता, हैरानी
५. दुर्दमनीय- जिसे दबाना कठिन हो
६.खुशमिज़ाज़- हँसमुख
७. थिरकी- हिली
८. गिराक- ग्राहक
९. दरकार- जरूरत
१०. होम- कुर्बान
वाक्य गठन:
१. १.कस्बा-
मेरे नानाजी का घर एक छोटे से कस्बे में है।
२. सराहनीय- प्रतियोगिता ईमानदारी पूर्वक जीत
कर मेरे भाई ने सराहनीय कार्य किया।
३. कसर- रोहन के काम में कोई कसर नहीं रहता
है।
४. कौतुक- मैं अपने परीक्षा का परिणाम जानने
के लिए बहुत ही कौतुक हूँ।
५. खुशमिज़ाज़- मेरे पड़ोसी खुशमिज़ाज़ इंसान हैं।
(१) हालदार
साहब
ने
ड्राइवर
को
पहले
चौराहे
पर
गाड़ी
रोकने
के
लिए
मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा-
(क) हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे?
उत्तर-
हालदार साहब को जब पता चला कि चश्मेवाले की मृत्यु हो गई है तो वे बहुत दुखी हो
गए। उन्हें लगा कि अब जब चश्मेवाला नहीं रहा तो नेताजी की मूर्ति को चश्मा पहनाने
वाला कोई नहीं रहा होगा। इसलिए हालदार साहब मायूस हो गए थे।
(ख) मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है?
उत्तर-
मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा होना यह उम्मीद जगाता है कि लोगों में अभी भी देशभक्ति
विद्यमान है। कैप्टन के मरने के बाद कोई न कोई उसकी जिम्मेदारी निभाने को तैयार
है। सरकंडे का चश्मा किसी गरीब बच्चे ने बनाया होगा और इससे यह पता चलता है कि
गरीब बच्चों में भी देशभक्ति की भावना है।
(ग) हालदार साहब इतनी-सी बात पर भावुक क्यों हो उठे?
उत्तर-
जब हालदार साहब ने यह देखा कि मूर्ति पर एक छोटा - सा सरकंडे का चश्मा लगा हुआ था
जो किसी बच्चे ने बनाया होगा, उसे देखकर वे भावुक हो उठे क्योंकि उससे यह पता चलता है कि
आगे आने वाली पीढ़ी में भी देशभक्ति विद्यमान है।
(घ) "वो लंगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में। पागल है
पागल।" कैप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।
उत्तर-
चश्मेवाले के प्रति पानवाले की यह टिप्पणी अनुचित थी। चश्मेवाला एक साधारण आदमी
होने के बावजूद एक सच्चा देशभक्त था। पानवाले को उसका मज़ाक नहीं बनाना चाहिए था।
(२.) "बार-बार सोचते क्या होगा उस कौम का जो
अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जीवन-ज़िंदगी सब कुछ होम देने वालों पर भी हँसती है
और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है।"
(क)
पानवाले का एक रेखाचित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
पानवाला एक मोटा,काला और मज़ाकिया आदमी था। वह हमेशा पान खाता
रहता था। जब भी वह हँसता तो उसकी तोंद हिलने लगती थी और उसके लाल-काले दाँत खिल
उठते।वह कैप्टन का मज़ाक बनाया करता था पर उसकी मृत्यु पर उसकी भी आँखें नम हो गई
थीं।
(ख)
कस्बे की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
कस्बा बहुत बड़ा नहीं था। वहाँ लड़के और लड़कियों का एक स्कूल था। सीमेंट का एक
छोटा-सा कारखाना था,छोटा-सा बाज़ार था और दो ओपन एयर सीनेमाघर तथा
एक नगरपालिका थी।
(ग) कैप्टन चश्मेवाला मूर्ति का चश्मा बार-बार क्यों बदल
देता था?
उत्तर-
कैप्टन पेशे से एक चश्मेवाला था और साथ में एक सच्चा देशभक्त भी था। वह नेताजी की
मूर्ति पर हमेशा एक चश्मा लगा देता था पर जब उसके किसी ग्राहक को मूर्ति वाले जैसे
चश्मे की जरूरत होती तो वह चश्मा उतारकर ग्राहक को दे देता और मूर्ति का चश्मा बदल
देता।
(घ) निम्नलिखित पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
जब हालदार साहब को कैप्टन की मृत्यु के बारे में पता चला तो वे बहुत दुखी हो गए और
सोचने लगे कि कुछ लोग साधारण होकर भी देश के लिए अपना सब कुछ छोड़ देते हैं और
दूसरे लोग इनका मज़ाक बनाते हैं। उन्हें लगा ऐसे लोगों का क्या होगा,क्या ऐसे लोग जो अपने स्वार्थ - पूर्ति के लिए
कुछ भी करते हैं,देश को सही दिशा में ले जा पाएँगे ?
संदेश
लेखक यह संदेश देना चाहता है कि हमें अपने स्वार्थ
को भुलाकर देश की चिंता भी करनी चाहिए। हमें अपने मन में देशभक्तों
के लिए आदर एवं सम्मान रखना चाहिए। और हमें देशभक्तों
का आदर करने वालों का उपहास भी नहीं करना चाहिए । चाहे वह आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से
किसी भी स्तर का हो।
प्रश्न-
(क) सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टन क्यों
कहते थे?
उत्तर-
चश्मेवाला कभी सेनानी न रहा। वह एक साधारण आदमी था,परंतु उसके मन में देशभक्ति की भावना थी। वह
नेताजी के बिना चश्मेवाले मूर्ति को देखकर बहुत दुखी हो जाता था। इसलिए वह अपनी
तरफ से उस मूर्ति पर हमेशा एक चश्मा लगा देता था। ये देखकर लोग उसे कैप्टन कहते
थे।
(ख)
हालदार
साहब
ने
ड्राइवर
को
पहले
चौराहे
पर
गाड़ी
रोकने
के
लिए
मना
किया
था
लेकिन
बाद
में
तुरंत
रोकने
को
कहा-
ग) आशय स्पष्ट
कीजिए-"बार-बार सोचते क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर
घर-गृहस्थी-जीवन-ज़िंदगी सब कुछ होम देने वालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने
के मौके ढूँढ़ती है।"
उत्तर-
जब हालदार साहब को कैप्टन की मृत्यु के बारे में पता चला तो वे बहुत दुखी हो गए और
सोचने लगे कि कुछ लोग साधारण होकर भी देश के लिए अपना सब कुछ छोड़ देते हैं और
दूसरे लोग इनका मज़ाक बनाते हैं। उन्हें लगा ऐसे लोगों का क्या होगा,क्या ऐसे लोग जो अपने स्वार्थ - पूर्ति के लिए
कुछ भी करते हैं,देश को सही दिशा में ले जा पाएँगे ?
(घ) पानवाले का एक रेखाचित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
पानवाला एक मोटा,काला और मज़ाकिया आदमी था। वह हमेशा पान खाता
रहता था। जब भी वह हँसता तो उसकी तोंद हिलने लगती थी और उसके लाल-काले दाँत खिल
उठते।वह कैप्टन का मज़ाक बनाया करता था पर उसकी मृत्यु पर उसकी भी आँखें नम हो गई
थीं।
(ड़) "वो लंगड़ा क्या जाएगा फ़ौज में। पागल है
पागल।" कैप्टन के प्रति पानवाले की इस टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।
Add caption |
उत्तर-
चश्मेवाले के प्रति पानवाले की यह टिप्पणी अनुचित थी। चश्मेवाला एक साधारण आदमी
होने के बावजूद एक सच्चा देशभक्त था। पानवाले को उसका मज़ाक नहीं बनाना चाहिए था।
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5.
अपना-अपना भाग्य
रचनाकार परिचय : ये आधुनिक काल के रचनाकार हैं। इन्हें मनोवैज्ञानिक
कहानीकार के रूप में जाना जाता है। इन्होंने कहानी को घटना के स्तर से ऊपर उठाकर ‘चरित्र’ और ‘मनोवैज्ञानिक’
सत्य पर केंद्रित किया है।
रचनाएँ : हत्या, अपना-अपना भाग्य, वातायन, पाज़ेब आदि।
शब्दार्थ:
१. अरुण- लाल रंग का
२. कौतुक- हैरानी
३. दुर्दमनीय- जिसे दबाना कठिन हो
४. होम- कुर्बान
५. सरकंडे- सरपत नाम का एक पौधा
६. मसहरी- मच्छरदानी
७. चुंगी- कर वसूल करने के लिए बनाई गई चौकी
८. दोशाला- लंबा शॉल
९.सनक- पागलपन
१०. रेशा- महीन सूत
वाक्य गठन:
१. होम- माँ घर का सारा काम करते-करते होम हो जाती हैं
लेकिन बच्चों पर
कोई फर्क ही
नहीं पड़ता।
२. मसहरी- गरीब मच्छरों से बचने के लिए मसहरी का प्रयोग
करते हैं।
३. दोशाला- ठंड से
बचने के लिए मैंने दोशाला ओढ़ लिया है।
१. “यह संसार है यार !” मैंने स्वार्थ की फिलासफी सुनाई-
“चलो, पहले बिस्तर में गरम होलो, फिर किसी
और की चिंता
करना।”
उदास
होकर मित्र ने कहा-“स्वार्थ ! जो कहो, लाचारी कहो, निठुराई कहो या बेहयाई।”
दूसरे
दिन नैनीताल स्वर्ग के किसी काले गुलाम पशु के दुलार का वह बेटा-वह बालक, निश्चित
समय पर हमारे ‘होटल डि पव’ में नहीं आया। हम अपनी नैनीताल-सैर खुशी-खुशी
कर चलने को हुए। उस लड़के की आस लगाए बैठे रहने की जरूरत हमने न समझी।
मोटर में
सवार होते ही यह समाचार मिला। पिछली रात, एक पहाड़ी बालक, सड़क के किनारे-पेड़ के
नीचे, ठिठुरकर मर गया।
मरने के
लिए उसे वही जगह, वही दस बरस की उम्र और
वही काले चिथड़ों की कमीज मिली। आदमियों की दुनिया ने बस यही उपहार उसके पास छोड़ा
था।
क) “यह संसार है यार !”- कथन में छिपे व्यंग्य को स्पष्ट करें।
- “यह संसार है यार !”- कथन में संसार की रीति पर व्यंग्य किया गया है। लोग संसार में पहले अपनी जरुरतों की पूर्ति करते हैं, तब दूसरों के बारे में सोचते हैं। कभी-कभी तो वे अपने स्वार्थ के अलावा कुछ भी नहीं सोचते। कहानीकार पाठ में अपने मित्र द्वारा संसार के स्वार्थ, लाचारी, निष्ठुरता और बेहयाई को प्रकट किया है।
ख) लेखक के मित्र का चरित्र-चित्रण करें।
- लेखक के मित्र एक भावुक और संवेदनशील व्यक्ति थे। वह परोपकारी स्वभाव के थे। इसलिए वह गरीब बच्चे की सहायता करना चाहते थे। वह दयालु प्रकृति के थे । तभी तो वह उस बालक को ‘वकील’ के पास ले जाते हैं और जब वह ‘वकील’ साहब सहायता करने से मना कर देते हैं तो वह असमंजस में पड़ जाते हैं। वह प्रकृति प्रेमी और घुमक्कड़ भी हैं तभी तो वह लेखक के साथ नैनीताल घूमने गए थे।
ग) दूसरे दिन मोटर पर सवार होते ही लेखक को क्या समाचार मिला ? लड़के की मौत के बारे में लेखक को
क्या जानकारी
मिली ?
- दूसरे दिन मोटर पर सवार होते ही लेखक को यह समाचार मिला कि पिछली रात एक पहाड़ी बालक
सड़क के किनारे पेड़
के नीचे ठिठुरता हुआ मर गया।
लड़के की
मौत के बारे में लेखक को जानकारी मिली कि उस गरीब बालक के मुँह, छाती, मुट्ठी और
पैरों पर बर्फ की हल्की चादर चिपक गई थी। ऐसा लगता था कि दुनिया की बेहयाई ढँकने
के लिए प्रकृति ने शव के लिए सफेद और ठंडे कफन का प्रबंध कर दिया था।
घ) “आदमियों की दुनिया ने बस यही उपहार उसके पास छोड़ा था।”- इस कथन में “ आदमियों की दुनिया”
और “उपहार” द्वारा
लेखक क्या कहना चाहते हैं ?
- आदमियों की दुनिया ने बस यही उपहार उसके पास छोड़ा था”- इस कथन में “ आदमियों की दुनिया” कहकर लेखक ने समाज पर व्यंग्य किया है। लेखक कहना चाहते हैं कि इस समाज में लोगों को एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति भी नहीं है। वह एक-दूसरे के तकलीफों को न जानता है और न ही समझता है।
यहाँ “उपहार” का प्रतीकात्मक अर्थ वह अभावपूर्ण
जीवन है जिसके कारण बालक की मृत्यु हुई।
२. “हाँ, साहब ने मारा, मर गया।”
“अच्छा, हमारे
साथ चल।”
वह साथ चल
दिया-लौटकर हम वकील दोस्त के होटल पहुँचे।
“वकील साहब !”
वकील साहब होटल
के कमरे से उतरकर आए। काश्मीरी दुशाला लपेटे थे, मोजे चढ़े पैरों में चप्पले थीं।
स्वर में हल्की
झुँझलाहट थी, कुछ लापरवाही थी।
“ओहो फिर आप ! कहिए।”
“आपको नौकर की जरूरत थी न, देखिए यह लड़का है।”
क) किसने, किसके मारे जाने की बात, किसे बताई ? वह कैसे मारा गया ?
- लड़के ने, अपने साथी मित्र के मारे जाने की बात, लेखक को बताई। अपने उसी साथी के बारे में बताया
जिसके साथ वह गाँव से नैनीताल आया था। उसका साथी उससे बड़ा
था।
लड़के ने अपने साथी
मित्र के मारे जाने के बारे में बताया कि उसके साथी के साहब ने उसे मारा और वह मर
गया।
ख) वकील साहब का परिचय दें। उसने बच्चे को नौकर क्यों नहीं रखा ?
- वकील साहब कश्मीरी दोशाला ओढ़े थे। पैरों मे मोजा और चप्पल पहने हुए थे। स्वर में हल्की झुँझलाहट
एवं लापरवाही
थी।
वकील
साहब ने बच्चे को नौकर इसलिए नहीं रखा क्योंकि उनका मानना था कि किसी भी अनजान
व्यक्ति को नौकर रखना ठीक नहीं है। उनका मानना था कि पहाड़ी लोग शैतान होते हैं।
बच्चे-बच्चे में अवगुण छिपे होते हैं। ये कुछ भी लेकर चम्पत हो सकते हैं।
ग) कहानी का उद्देश्य स्पष्ट करें।
- कहानी का उद्देश्य आज के युग में व्याप्त स्वार्थपरता, मनुष्यों की हृदयहीनता, संवेदनशून्यता तथा गरीबी का चित्रण करना है। वास्तव में आज के लोगों में दयालुता तथा परोपकार जैसे मूल्यों का अभाव हो गया है, जिसके कारण किसी मज़बूर तथा दयनीय स्थिति से जूझते व्यक्ति की सहायता करने के बजाय उसकी स्थिति को ‘अपना-अपना भाग्य’ बताकर हर कोई अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहता है। अमीर लोग अपनी संपत्ति के कारण मौज़ उड़ाते हैं। उन्हें दूसरों के दु:ख-दर्द से कोई सरोकार नहीं होता।
घ) लड़के की हालत का वर्णन करते हुए बताएँ कि वह कहाँ से आया था और क्यों ?
- लड़का पहाड़ी बालक था। उसकी उम्र दस वर्ष थी। उसकी हालत दयनीय थी। न सिर पर टोपी, न पैरों में जूते तथा न ही शरीर पर पूरे वस्त्र। इतनी ठिठुरती ठंड में भी वह इधर-उधर घूम रहा था। उसके पास न कोई काम –धंधा था, न सिर छिपाने के लिए स्थान। जहाँ वह काम करता था, वहाँ से वह हटा दिया गया था। वहाँ उसे एक रुपया और जूठा खाना मिलता था।
वह
नैनीताल से पंद्रह कोस दूर एक गाँव से भाग कर आया था। गरीबी के कारण परिवार में
झगड़े होते थे। उसके कई भाई-बहन थे। पिता भूखे रहते थे और उसे मारते थे। माँ भूखी
रहती थी और रोती रहती थी। इसलिए वह भाग आया था।
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रचनाकार परिचय: ये आधुनिक काल के कवि हैं। छायावाद के जन्मदाता थे।
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रचनाकार परिचय: ये आधुनिक काल के कवि हैं। छायावाद के जन्मदाता थे।
रचनाएँ: झरना, आँसू,
लहर, कामायनी ।
नाटक : चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, ध्रुवस्वामिन॥
उपन्यास: तितली, कंकाल, इरावती (अधूरा)।
कहानी: इंद्रजाल, आकाशदीप आदि।
भाषा : समर्थ, समृद्ध, कोमल, मधुर, कल्पनाओं से युक्त।
शब्दार्थ
१. संदेह –शक
२. वैधव्य – विधवापन
३. बजरा- नाव
४. विक्षिप्त – परेशान
५.उच्छवसित- कठिन सांस लेना
६. संखिया- विष
७. दुश्चरित्रा– बुरे चरित्र वाली स्त्री
८. मृग मरीचिका – ऐसी तृष्णा जो संभव न हो।
वाक्य गठन:
१. संदेह – हमें
मात्र संदेह के आधार पर किसी के बारे में कुछ नहीं कहना चाहिए।
२. वैधव्य – भारतीय महिला
के लिए वैधव्य का जीवन सबसे दुखदायी होता है।
३. बजरा- चाँदनी रात में बजरा पर सैर करना बहुत ही आनंददायक
होता है।
प्रश्नोत्तर
कभी-कभी मुझे ऐसा
मालूम होता कि यह दाँव बैठा कि मैं अपने-अपने पर विजयी हुआ और मैं सुखी होकर
संतुष्ट होकर चैन से संसार के एक कोने में बैठ जाऊँगा, किंतु यह मृग-मरीचिका थी।
क) वक्ता और श्रोता कौन हैं ?
- वक्ता रामनिहाल और श्रोता श्यामा है।
ख) मृग-मरीचिका से क्या तात्पर्य है ?
- मृग-मरीचिका से
तात्पर्य मनुष्य की ऐसी तृष्णा से है जो संभव न हो।
ग) वक्ता का संक्षिप्त परिचय दें।
- वक्ता रामनिहाल है। वह संवेदनशील प्राणी
है। वह अपने व्यवहार से दूसरों को अपना बना लेता है। तभी तो वह किराएदार होते हुए
भी वह घर के सदस्यों के समान है। वह संकोची भी है। तभी तो श्यामा के प्रति अपने
प्रेम भाव को व्यक्त कर पाने में असमर्थ है।
घ) कहानी का उद्देश्य लिखिए।
- कहानी का उद्देश्य समाज में स्त्री-पुरुष के संबंधों
में आ रहे संदेह के भाव को प्रस्तुत करना है। साथ ही ब्रजकिशोर के माध्यम से
बुरी प्रवृत्ति वाले लोगों के मनोदशा को भी उजागर करना है। साथ ही रामनिहाल तथा
श्यामा के माध्यम से प्रेम की सुंदर भावना को भी उजागर करना कहानीकार का उद्देश्य
रहा है।
2."तुम इस खेल को नहीं जानते। इसके चक्कर में पड़ना भी
मत। हाँ, एक दुखिया स्त्री तुमको अपनी सहायता के लिए बुला रही है। जाओ उसकी
सहायता करके लौट आओ। तुम्हारा सामान यहीं रहेगा। तुमको अभी यहीं रहना होगा। उठो,
नहा-धो लो। जो ट्रेन मिले, उससे पटना जाकर ब्रजकिशोर की चालाकियों से मनोरमा की
रक्षा करो और फिर मेरे यहाँ चले आना।"
क) कौन , किस खेल को नहीं जानता ?
- श्यामा के अनुसार रामनिहाल प्यार के खेल को नहीं जानता।
ख) किसकी, किससे सहायता करने की बात की जा रही है ?
- मनोरमा की ब्रजकिशोर से सहायता करने की बात की जा रही है।
ग) वक्ता का संक्षिप्त परिचय दें।
- वक्ता श्यामा है। वह अपनत्व के भाव से परिपूर्ण है। वह
किराएदार को भी अपने परिवार का सदस्य समझती है। साथ ही उसे अपने घर के सदस्यों
की तरह हिदायत भी देती है।
घ) कहानी के आधार पर बताएँ कि ब्रजकिशोर कौन है और उसकी
प्रवृत्ति कैसी है ?
- ब्रजकिशोर रामनिहाल के दफ्तर के प्रबंधक हैं। वह बुरी
प्रवृत्ति का स्वामी है। उसने मोहन बाबू जो दफ्तर के मालिक हैं, उनके मन में
अपने और उनकी पत्नी के संबंधों के प्रति ऐसा संदेह भर दिया है जिसकी ज्वाला में
जल कर मोहनबाबू पागल होता जा रहा है और ब्रजकिशोर का यही भाव है कि वह पागल हो जाए
और सारी संपत्ति पर उसका अधिकार हो जाए।
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9. भेड़ें और भेड़िए
हरिशंकर परसाई
रचनाकार
परिचय: ये आधुनिक काल
के हास्य व्यंग्य रचनाकार हैं। इनका व्यंग्य सीधे मस्तिष्क पर चोट करता है
जिससे मानव सोचने के लिए बाध्य हो जाता है। इनकी रचनाओं का विषय शिक्षा, राजनीति,
धर्म आदि से जुड़े शोषण, आडंबरों व पाखंडों से संबद्ध है।
रचनाएँ: भोलाराम का जीव, भूत के पाँव पीछे, विकलांग श्रद्धा का दौर (साहित्य अकादमी
पुरस्कार), सदाचार का ताबीज आदि।
भाषा: इन्होंने व्यंग्यात्मक भाषा का प्रयोग किया है।
शब्दार्थ:
२. गद्गद्- आनंद
३.अजायब- संग्रहालय
४.मुखारविंद- सुंदर मुख
५. कोरस- समूह गान
६. सहस्त्रों- हज़ारों
७. भावातिरेक- भावों की अधिकता
८. सर्वत्र- सब जगह
९. प्रतिनिधि- नुमाइंदा
१०. क्षुद्र- छोटा
वाक्य गठन:
१. गद्गद्- जैसे ही मेरे माता-पिता ने मेरे परीक्षा का
परिणाम देखा वे गद्गद् हो उठे।
२. कोरस- विद्यालय में आजादी के उपलक्ष में विद्यार्थियों
ने कोरास में गीत गाया।
३. भावातिरेक- गुरुजनों से मेरी प्रशंसा सुनकर मेरे
माता-पिता खुशी से भावातिरेक हो गए।
४. सर्वत्र- आज सर्वत्र भ्रष्टाचार व्याप्त है।
५. क्षुद्र- हमें क्षुद्र आचरण वाले लोगों से दूर ही रहना
चाहिए।
१. "मगर इनकी बात मानेगा कौन ? ये तो वैसे ही छल-कपट के लिए बदनाम हैं।"
क) प्रस्तुत पंक्ति के रचनाकार का नाम लिखते हुए बताएँ कि
इसके वक्ता और श्रोता कौन हैं ?
- प्रस्तुत पंक्ति
के रचनाकार का नाम हरिशंकर परसाई है तथा वक्ता भेड़िया और श्रोता सियार है।
ख) कहानी में भेड़िया किसका प्रतीक है ? स्पष्ट करें।
- कहानी में
भेड़िया ऐसे राजनीतिज्ञों का प्रतीक है, जो विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपनाकर अपने
चापलूसों के माध्यम से सामान्य वर्ग को प्रभावित करने में सफल हो जाते हैं और
अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। ये भेड़िए रूपी राजनीतिज्ञ जनता को प्रभावित करने
के लिए अपने चापलूसों द्वारा अपना प्रचार करवाते हैं। इन राजनीतिज्ञों के चापलूस
आम जनता की नस पहचानते हैं, इसलिए वे ऐसा प्रचार करते हैं, जो जनता को आकर्षित कर
सके।
ग) बूढ़ा और रँगा सियार किसका प्रतीनिधित्व करते हैं ?
- बूढ़ा और रँगा
सियार उन चापलूसों तथा मौकापरस्त लोगों का प्रतीनिधित्व करते हैं, जो
राजनीतिज्ञों के आगे-पीछे घूमकर, उसकी हाँ में हाँ मिलाकर, अपना स्वार्थ सिद्ध
करने में सफल हो जाते हैं। बूढ़ा सियार बहुत अनुभवी चापलूस है इसलिए वह भेड़िए को
जितवाने के लिए रँगे सियारों का सहारा लेता है। वह भेड़िए का भी हुलिया बदलकर भेड़ों
को धोखा देने में कामयाब हो जाता है। भेड़िए को जितवाने में बूढ़े सियार का अपना स्वार्थ है।
रँगे
सियार ऐसे व्यक्तियों का प्रतीक हैं, जो चुनावों के समय कुछ ले-देकर अपने स्वामी
का प्रचार करते हैं।
घ) कहानी का उद्देश्य स्पष्ट करें।
- प्रस्तुत कहानी
का उद्देश्य प्रजातंत्र में धोखेबाजी, झूठे, ढोंगी तथा चालाक राजनेताओं की पोल
खोलना है। भेड़ें सीधे-सादे व्यक्तियों का प्रतीक हैं जो चालाक, स्वार्थी और
धोखेबाज राजनेताओं के बहकावे में आकर उनको चुनते हैं तथा चुने जाने पर भेड़िए रूपी
ये राजनेता अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं तथा भोली-भाली जनता का शोषण करते हैं।
इस कहानी द्वारा कहानीकार ऐसे राजनेताओं का पोल खोलते हैं।
२. उनका 'हृदय परिवर्तन’ हो गया है।
क) 'भेड़ें और भेड़िए’ किस तरह की कहानी है ? 'उनका'
शब्द से किसकी ओर संकेत किया गया है ?
- 'भेड़ें और भेड़िए’ प्रतीकात्मक कहानी
है। 'उनका' शब्द से भेड़िए रूपी
राजनेताओं की ओर संकेत किया गया है।
ख) 'हृदय परिवर्तन’ से क्या तात्पर्य है ? यहाँ कौन, किससे, किसके 'हृदय परिवर्तन’ की बात कर रहा है ?
- 'हृदय परिवर्तन’ से तात्पर्य आदत अथवा व्यवहार
में परिवर्तन से है। यहाँ बूढ़ा सियार रूपी चापलूस, भेड़े रूपी सामान्य जनता से,
भेड़िया रूपी धोखेबाज राजनेता के 'हृदय परिवर्तन’ की बात कर
रहा है।
ग) भेड़ें किसका
प्रतिनिधित्व करती हैं ?
- भेड़ें सामान्य जनता का प्रतिनिधित्व करती हैं जो फरेबी
नेताओं के धोखे में आ जाती हैं तथा चुनावों के दौरान उन्हीं को वोट देकर चुनकर भेजती हैं जिससे कि
वे ऐसे कानून बनाएँगे जो उनके हित में होंगे। पर बाद में उन्हें निराशा ही हाथ
लगती है, क्योंकि जिस प्रकार के कानून बनाए जाते हैं, उनसे यह भली-भाँति स्पष्ट
हो जाता है कि वे सामान्य जनता के लिए हितकारी नहीं हैं।
घ) आज के संदर्भ में यह कहानी कहाँ तक प्रासंगिक है ?
- आज के संदर्भ में यह कहानी पूरी तरह से प्रासंगिक है। आज
भी हमारे राजनेता अपने मुख पर मुखौटा धारण कर अपने चापलूसों के द्वारा चुनाव के
दौरान अपना झूठा प्रचार करवाते हैं और हम सामान्य जनता उसके बहकावे में आकर उन्हें
अपना बहुमत देकर सत्ता में यह सोचकर पहुँचाते हैं कि ये हमारे हित में कानून
बनाएँगे। पर अंत में हमें निराशा ही हाथ लगती है क्योंकि ये स्वार्थ सिद्धि
राजनेता वहाँ पहुँचकर ऐसे कानून बनाते हैं जिससे हम सामान्य जनता का ही शोषण होता
है। अत: यह कहानी प्रासंगिक है।
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१०.दो कलाकार
( मन्नू भंडारी)
रचनाकार परिचय: ये आधुनिक काल की रचनाकार हैं। ये नारी जीवन
तथा नारी मन की कुशल चित्रकार है।
रचनाएँ: मैं हार गई, तीन निगाहों की एक तस्वीर, यही सच है
आदि।
भाषा: इनकी रचनाओं की भाषा सहज, एवं सरल है।
शब्दार्थ:
१. खिझलाहट- खीझ, चिड़चिड़ापन
२. प्रतीक – प्रतिरूप
३. खस्ता- खराब
४. तूलिका- कूँची
५. आवेश- जोश
६. फरमाइश- माँग
७.विराट- बहुत बड़ा
वाक्य गठन:
१. तूलिका- बच्चे कागज़ पर तूलिका से रंग भरते हैं।
२. आवेश- आवेश में उठाया गया कोई भी कदम गलत होता है।
३. फरमाइश- मेरी माता मेरी हर जायज फरमाइश की पूर्ति करती
है।
प्रश्नोत्तर:
१.अरे यह क्या ? इसमें तो सड़क, आदमी, ट्राम, बस, मोटर,
मकान सब एक दूसरे पर चढ़ रहे हैं। मानो
सबकी खिचड़ी पकाकर रख दी हो।
क) पाठ और रचनाकार का नाम लिखिए।
- पाठ का नाम ‘दो
कलाकार’ तथा रचनाकार का नाम ‘मन्नू भंडारी’ है।
ख) वक्ता और श्रोता कौन है ? दोनों का क्या संबंध है ?
- वक्ता अरुणा
और श्रोता चित्रा है। दोनों मित्र हैं।
ग) चित्र को चारो ओर घुमाते हुए वक्ता ने क्या कहा ?
- चित्र को चारो ओर
घुमाते हुए वक्ता ने कहा कि यह चित्र वह किधर से देखे ? उसने उससे कहा कि वह जो
भी चित्र बनाए उसमें उसका नाम लिख दिया करे, जिससे कोई गलत फहमी न हो। फिर उसने
चित्र पर आँख गड़ाते हुए कहा कि वह समझ नहीं पा रही है कि चौरासी लाख योनियों मे से
यह किस जीव की तस्वीर है।
घ) कहानी का उद्देश्य स्पष्ट करें।
- कहानी का उद्देश्य
यथार्थ और आदर्श भाव को प्रस्तुत करना है। रचनाकार ने दो पात्रों के माध्यम से यह
स्पष्ट करना चाहा है कि कलाकार की सच्ची पहचान क्या होती है। चित्रा के अनुसार
अच्छे चित्र बनाना ही सच्चे कलाकार की पहचान है जबकि अरुणा के अनुसार जीवित
प्राणियों का कुछ भला किया जाय।
2. “ गर्ग स्टोर के सामने पेड़ के नीचे
अकसर एक भिखारिन बैठी रहा करती थी ना, लौटी तो देखा कि वह वहीं मरी पड़ी है और उसके
दोनों बच्चे उसके सूखे शरीर से चिपककर बुरी तरह से रो रहे हैं। जाने क्या था उस
सारे दृश्य में कि मैं अपने को रोक नहीं सकी। एक रफ-सा स्केच बना ही डाला।“
क) चित्रा ने किसका चित्र बनाया था ? उसे देखकर अरुणा के मन
में क्या भाव आया ?
- चित्रा ने बाढ़ से मृत भिखारिन और उससे चिपक कर
रोते उसके दो बच्चों का चित्र बनाया था। उसे देखकर अरुणा के मन में यह भाव आया कि
वहाँ लोगों को जीने के लाले पड़ रहे हैं और चित्रा को ऐसे वातावरण में भी चित्रों
को बनाने की बात सूझती है।
ख) भिखारिन की मृत्यु कहाँ पर हुई ? उस समय क्या दृश्य
उभरा था ?
- भिखारिन की मृत्यु गर्ग स्टोर के सामने पेड़ के नीचे हुई।
उस समय उसके दो
छोटे-छोटे बच्चे उसके सूखे शरीर से चिपक कर रो रहे थे। मृत भिखारिन के आस-पास
लोगों की भीड़ जमा हो गई थी।
ग) अरुणा किस प्रकार के कार्यक्रमों में व्यस्त रहती थी ?
- अरुणा समाज कल्याण के कार्यक्रमों में व्यस्त रहती थी ।
वह बस्ती के चौकीदारों, नौकरों और चपरासियों के बच्चों को पढ़ाने का काम करती थी।
घ) चित्रा और अरुणा दोनों में से आप किसे महान कलाकार मानते
हैं और क्यों ?
- चित्रा और अरुणा
दोनों में से मैं अरुणा को महान कलाकार मानता/ मानती हूँ। चित्रा ने जहाँ मरी हुई
भिखारिन की पेंटिंग बनाई जिसमें उसके दो बच्चे उसके मृत शरीर के साथ चिपक कर रो
रहे थे। उस पेंटिंग से चित्रा को विश्व ख्याति भी प्राप्त हुई, वहीं अरुणा ने उन
दोनों बच्चो को अपनाकर अपनी महानता का परिचय दिया। हम कह सकते हैं कि चित्रा कागज़
के पन्नों पर रंग भरती है जबकि अरुणा जीवन में रंग भरती है।
Please make questions with by bold
ReplyDeleteAmazing answers helped me a lot.....!!
ReplyDeleteThank you so much for the help.....!!!
plz add bade ghar ki beti
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