१. साखी
कबीरदास
कवि परिचय:
ये भक्ति काल के निर्गुण भक्ति शाखा के ज्ञानाश्रयी शाखा
के प्रमुख कवि हैं। इनके पदों में
समाज-सुधार की भावना है।
रचना: बीजक। बीजक के तीन भाग हैं: १.साखी, २.सबद, ३. रमैनी।
समाज-सुधार की भावना है।
रचना: बीजक। बीजक के तीन भाग हैं: १.साखी, २.सबद, ३. रमैनी।
भाषा : इनकी भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ या ‘पंचमेल खिचड़ी’ भाषा कहा जाता है।
शब्दार्थ
१.गोबिंद- भगवान
२.काके-किसके
३.पायँ- पैर
४. बलिहारी- कुर्बान जाना
५.मैं- अहंकार
६.साँकरी- तंग,पतली
७..समाहि- समाना
8.पत्थर, पाहन- पाथर
९.बाँग- बुलाना
१०.खुदाय- ईश्वर
११.चाकी- चक्की
१२.समंद-समुद्र
१३.मसि-स्याही
१४.लेखनि- कलम
१५.कागद- कागज़
प्रश्नोत्तर:
१.गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पायँ
बलिहारी गुरु
आपनो, जिन गोविंद दियौ बताय ॥
क) - प्रस्तुत पंक्तियाँ कहाँ से ली गई है तथा उस शब्द का अर्थ क्या है ?
- प्रस्तुत पंक्तियाँ 'साखी’ से ली गई है तथा 'साखी’शब्द का
अर्थ साक्षी, प्रमाण या
गवाह है।
ख)- कौन किन्हें लेकर असमंजस या दुविधा में हैं ?
- कवि कबीरदास, गुरु और गोविंद को लेकर असमंजस या दुविधा
में हैं।
ग)- उनके असमंजस का कारण क्या है ?
- उनके असमंजस का कारण यह है कि गुरु और गोविंद में से अधिक
बड़े या महान
कौन हैं ? वे समझ नहीं पा रहे हैं कि यदि ये दोनों खड़े हों तो वे पहले किनके चरण
स्पर्श करें।
कौन हैं ? वे समझ नहीं पा रहे हैं कि यदि ये दोनों खड़े हों तो वे पहले किनके चरण
स्पर्श करें।
घ) अंत में कवि किस निर्णय पर पहुँचे और क्यों ?
- अंत में कवि ने गुरु और गोविंद में से गुरु को ज्यादा
महान माना। कवि का मानना है
कि गोविंद तक पहुँचने का मार्ग गुरु ने ही बताया है। अत: गुरु और गोविंद दोनों खड़े
हों तो पहले गुरु के चरण स्पर्श करना चाहिए।
कि गोविंद तक पहुँचने का मार्ग गुरु ने ही बताया है। अत: गुरु और गोविंद दोनों खड़े
हों तो पहले गुरु के चरण स्पर्श करना चाहिए।
२.जब 'मैं’ था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहि।
प्रेम गली अति
साँकरी, तामे दो न समाहि॥
क)- किनका एक साथ रहना असंभव है ?
- मैं अर्थात
अहंकार और ईश्वर का एक साथ रहना असंभव है।
ख)- प्रेम गली से क्या तात्पर्य है ?
- प्रेम गली से
तात्पर्य ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग से है।
ग)- रेखांकित पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
- रेखांकित पंक्ति द्वारा कवि यह कहना चाहते हैं कि मानव
ईश्वर को तभी प्राप्त कर सकता है जब वह अपने अहंकार को त्याग दें। अहंकार और ईश्वर
का निवास एक साथ असंभव है।
घ)- साखी द्वारा हमें क्या सीख मिली ?
- 'साखी’ में कवि कबीरदास जी ने जीवन के सत्य को उजागर किया है। जहाँ उन्होंने
गुरु के महत्त्व को दर्शाया है वहीं उन्होंने अहंकार, अंधविश्वास आदि को दूर
करने की बात की है।
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२. कुंडलियाँ
गिरिधर कविराय
कवि परिचय: ये रीति काल
के कवि हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी के अनुसार- नाम से गिरिधर कविराय भाट
जान पड़ते हैं। इन्होंने नीति, वैराग्य और अध्यात्म को ही
अपनी
कविता का विषय बनाया है। जीवन के व्यावहारिक पक्ष का इनके काव्य में
प्रभावशाली वर्णन मिलता है।
रचनाएँ: गिरिधर कविराय ग्रंथावली में इनकी पाँच सौ से अधिक कुंडलियाँ संकलित हैं।
भाषा: इनकी कुंडलियाँ अवधी और पंजाबी भाषा में हैं। ये अधिकतर नीति विषयक हैं।
शब्दार्थ
१. छाँडि - छोड़कर
२. नारी - नाली
३. कमरी - काला कंबल
४. बकुचा - छोटी गठरी
५. मोट - गठरी
६. दमरी - दाम, मूल्य
७. सहस - हजार
८. काग - कौवा
९. पतरो - पतला
१०.बेगरजी - नि:स्वार्थ
११.विरला - बहुत कम मिलनेवाला
१२. बयारि - हवा
१३. घाम - धूप
१४. पाती - पत्ति
१५. जर - जड़
१६. दाम - रुपया - पैसा
१७. तऊ - फिर भी
१८. बानी - आदत
१९. पानी - सम्मान
१६. दाम - रुपया - पैसा
१७. तऊ - फिर भी
१८. बानी - आदत
१९. पानी - सम्मान
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर
१. साँई सब संसार में,
मतलब का व्यवहार।
जब
लग पैसा गाँठ में, तब लग ताको यार॥
तब
लग ताको यार, यार संग ही संग डोले।
पैसा
रहे न पास, यार मुख से नहिं बोले॥
कह
गिरिधर कविराय जगत यहि लेखा भाई।
करत
बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई॥
(i) कवि के अनुसार इस संसार में किस प्रकार का व्यवहार प्रचलित है ?
- कवि के अनुसार इस संसार में स्वार्थपूर्ण व्यवहार
प्रचलित है। कवि का मानना है कि यह संसार मोह-माया से परिपूर्ण है जिसमें धन-दौलत
की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इस संसार में रुपए-पैसे की पूजा
होती है और इनसान उसके पीछे भागता फिरता है। इस संसार में सभी का व्यवहार मतलब से भरा
है और बिना स्वार्थ के कोई किसी से मित्रता नहीं करता है।
(ii) व्यक्ति के पास रुपया-पैसा न रहने पर मित्रों के व्यवहार में क्या परिवर्तन आ जाता है ?
अथवा
संसार
की रीति क्या है ?
- व्यक्ति के पास रुपया-पैसा न रहने पर मित्रों
के व्यवहार में बहुत परिवर्तन आ जाता है। जो मित्र हमारे आगे-पीछे घूमते थे वही
पैसा न रहने पर हमें पहचानते भी नहीं हैं। अंतत: हम कह सकते हैं कि इस संसार में
धन-दौलत ही सब कुछ है। उसके बगैर किसी भी इनसान की कोई कीमत नहीं है। जब तक हमारे पास रुपया- पैसा
है तब तक सभी हमारे शुभचिंतक बने रहते हैं लेकिन जब हमारे
पास धन-दौलत समाप्त हो जाता है तब मुसीबत पड़ने पर कोई भी हमारा साथ नहीं देता है। यही
इस संसार की रीति है।
(iii) "करत बेगरजी प्रीति, यार बिरला कोई साँई" - पंक्ति द्वारा कवि क्या स्पष्ट करना चाहते हैं ?
- प्रस्तुत पंक्ति द्वारा कवि कहना चाहते हैं
कि इस संसार में नि:स्वार्थ प्रेम करने वाले बहुत कम लोग होते हैं। कवि का कहना है
कि जब तक व्यक्ति के पास धन-दौलत है तब तक सब उसके आस-पास
घूमते हैं। जैसे ही धन समाप्त हो जाता है सब उससे मुँह मोड़ लेते
हैं। संकट के समय भी उसका साथ नहीं देते हैं। कवि का कहना है
कि बिना स्वार्थ के कोई किसी का सगा-संबंधी नहीं होता। संसार से नि:स्वार्थ प्रेम की भावना खत्म होती जा रही है
और लोगों में एक-दूसरे के प्रति अपनत्व का भाव भी समाप्त होता जा रहा है।
(iv) निम्नलिखित शब्दों के अर्थ लिखिए -
गाँठ, बेगरजी, विरला, यार, प्रीति, जगत।
- गाँठ - जेब
बेगरजी - जिसमें किसी प्रकार का स्वार्थ न हो
विरला - बहुत कम मिलनेवाला
यार - मित्र,
दोस्त
प्रीति - प्रेम, प्यार
जगत - संसार
2- पानी बाढ़ै नाव में, घर में बाढ़े दाम।
दोऊ हाथ उलीचिए, यही सयानो काम॥
यही सयानो काम, राम को सुमिरन कीजै।
पर-स्वारथ के काज, शीश आगे धर दीजै॥
कह गिरिधर कविराय, बड़ेन की याही बानी।
चलिए चाल सुचाल, राखिए अपना पानी॥
प्रश्न-
(i) कवि के अनुसार नाव में पानी तथा घर में दाम
बढ़ने पर क्या करना चाहिए ?
- कवि के अनुसार नाव में पानी बढ़ने पर हमें दोनों हाथों से पानी बाहर निकालने का प्रयास
करना चाहिए। नहीं तो नाव के डूब जाने का खतरा बन जाता है। ठीक इसी प्रकार घर में दाम बढ़ने पर अर्थात ज्यादा धन-दौलत होने पर हमें उसे परोपकार में
लगाना चाहिए। नहीं तो अहंकार वश मानव कुपथगामी हो सकता है।
(ii) "शीश आगे धर दीजै" - कवि ने ऐसा किस संदर्भ में कहा है ?
- "शीश आगे धर दीजै" - कवि ने ऐसा परहित अर्थात
बहुजन हिताय के संदर्भ में कहा है। कवि कहते हैं कि यदि हमारे पास अपार धन-दौलत है
तो हमें उसे दीन-दुखियों की सेवा में लगाना चाहिए।
जिससे मानव जाति का कल्याण हो सके।जन-कल्याण के लिए यदि हमें स्वयं को भी उत्सर्ग
करना पड़े तो हमें सहर्ष तैयार रहना चाहिए। उदाहरण स्वरूप ऋषि दधीचि।
(iii) कवि ने बड़ों की किस वाणी का उल्लेख किया है ?
- कवि
ने बड़ों की नि:स्वार्थ भाव से परोपकार करने की वाणी का उल्लेख किया है। कवि के अनुसार
जो महान व्यक्ति होते हैं वे अपने संचित धन
का उपयोग दीन-दुखियों की भलाई और कल्याण के लिए
करते हैं। वे दया और परोपकार के उच्च मार्ग पर अग्रसर होते हुए समाज में
अपना मान-सम्मान भी बढ़ाते रहते हैं।
(iv) क्या गिरिधर कविराय की कुंडलियाँ आज भी प्रासंगिक हैं ?
-
गिरिधर कविराय की कुंडलियाँ
दैनिक जीवन की बातों से संबद्ध हैं और
सीधी-सरल भाषा में कही गई हैं। वे प्राय: नीतिपरक
हैं जिनमें परंपरा के अतिरिक्त अनुभव का पुट
भी है। गिरिधर कवि ने नीति, वैराग्य और अध्यात्म को ही अपनी कविता का विषय
बनाया है। जीवन के व्यावहारिक पक्ष का इनके काव्य में प्रभावशाली
वर्णन मिलता है। वही काव्य दीर्घजीवी हो सकता है जिसकी पैठ जनमानस में होती है। इस
आधार पर नि:संदेह गिरिधर कविराय की कुंडलियाँ आज भी प्रसंगिक है
क्योंकि उनमें लाठी और कंबल जैसे दैनिक जीवन में आने वाली वस्तुओं की महत्ता का वर्णन
है, कोयल के समान
अनुभवशील व्यक्ति की समाज में आवश्यकता पर जोर
है, नि:स्वार्थ भाव से अपना
कर्म करने की सीख है और सामाजिक जीवन में उचित
आचरण करने की जरूरत भी है।_
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3. स्वर्ग बना सकते हैं
रामधारी सिंह ‘दिनकर’
कवि परिचय: ये आधुनिक काल के रचनाकार हैं। इनकी रचनाओं में राष्ट्रीयता की गुँज है।
रचनाएँ: उर्वशी (भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार) कुरुक्षेत्र, हुँकार, रसवंती, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा आदि।
भाषा- इन्होंने खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग किया है।
शब्दार्थ
१.धर्मराज- युधिष्ठिर
२.क्रीत– खरीदी हुई
३. समीरण- वायु,
४.आशंका- संदेह
५. विघ्न- बाधा
६. पथ- रास्ता
७.मानवता- इंसानियत
८. सुलभ- आसानी से प्राप्त
९. भव- संसार
१०. मनुज- मानव
११. सम- समान
१२. शमित- समाधान
१३. कोलाहल- शोर
१४. भय- डर
१५. .संचय- इकट्ठा
१६. विकीर्ण- फैला हुआ
१७. जगत- संसार
१८. तुष्ट- तृप्त
प्रश्नोत्तर
१.लेकिन विघ्न अनेक अभी
इस पथ पर अड़े हुए हैं
मानवता की राह रोककर
पर्वत अड़े हुए हैं।
क) प्रस्तुत पंक्तियाँ कहाँ से ली गई है तथा इसके रचनाकार कौन हैं ?
- प्रस्तुत
पंक्तियाँ 'स्वर्ग बना सकते हैं’ कविता से ली गई है तथा
इसके रचनाकार रामधारी सिंह 'दिनकर’ हैं।
ख) प्रस्तुत पंक्तियों में किस विघ्न की बात कवि कर रहे हैं ?
- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि मानवता के मार्ग में आने
वाले विघ्न की बात कर रहे हैं । ये विघ्न अन्याय, असमानता, द्वेष आदि भाव हैं।
ग) इस प्रकार के विघ्न के हटने पर क्या होगा ?
- इस प्रकार का विघ्न जब हट जाएगा तब पृथ्वी स्वर्ग बन
जाएगा। तब मानव सुख-शांति का जीवन यापन करेगा। मानव स्वयं उन्नति करता हुआ
दूसरों को भी उन्नति के शिखर पर ले जाएगा। इस प्रकार घर, समाज तथा पूरे राष्ट्र
की भलाई होगी।
घ) आप एक विद्यार्थी हैं और विद्यार्थी जीवन में पृथ्वी को स्वर्ग बनाने के लिए आप क्या करते हैं ?
- मैं एक विद्यार्थी हूँ और विद्यार्थी जीवन में पृथ्वी
को स्वर्ग बनाने के लिए मैं सबसे पहले मन
लगाकर अध्ययन करते हुए ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करता / करती हूँ क्योंकि
बिना ज्ञान के मैं सही और गलत का फैसला नहीं कर पाऊँगा / पाऊँगी। इसके बाद मैं इसी
जीवन में आपसी प्रेम, सद्व्यवहार, समानता आदि गुणों को सीखते हुए उसे अपने
व्यावहारिक जीवन में अपनाता / अपनाती हूँ ।तदुपरांत परिवार, समाज में भी इसका
प्रचार-प्रसार करता / करती हूँ।
२. सब हो सकते तुष्ट एक सा
सब सुख पा सकते
हैं
चाहे तो पल में
धरती को
स्वर्ग बना सकते
हैं।
क) 'तुष्ट’ शब्द से क्या तात्पर्य है ?
- 'तुष्ट’ शब्द से तात्पर्य शांति
से है, मन की तृप्ति से है ।
ख) रेखांकित पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
- रेखांकित पंक्ति द्वारा कवि कहना चाहते हैं कि यदि हम
भेदभाव छोड़कर मिलकर काम करें तो पृथ्वी के सभी प्राणी को शांति मिलेगी। सब प्राणी
सुखमय जीवन यापन करेंगे।
ग) शब्दार्थ लिखिए:-
- तुष्ट, एक सा, पल, धरती ।
- तृप्त, एक समान, क्षण, पृथ्वी।
घ) स्वर्ग से क्या तात्पर्य है ?
- स्वर्ग से तात्पर्य ऐसे स्थान से है जहाँ हर तरह की सुख
-सुविधाएँ उपलब्ध हो। जहाँ किसी प्रकार का भेदभाव न होकर सब मिलकर आगे बढ़े। जहाँ
जियो और जीने दो की बात लागू होती हो। जहाँ हर प्राणी आपसी प्रेम, सद्व्यवहार के
साथ मिलकर आगे बढ़े।
३. जब तक मनुज-मनुज का यह
सुख भाग नहीं सम
होगा
शमित न होगा
कोलाहल
संघर्ष नहीं कम
होगा।
क) 'कोलाहल’ शब्द का अर्थ बताते हुए बताएँ कि यह अंश कवि की किस रचना से उद्धृत है ?
- 'कोलाहल’ शब्द का अर्थ 'शोर’ से है। आपसी कलह से है। प्रस्तुत
अंश कवि की 'कुरुक्षेत्र’ रचना से ली गई है।
ख) प्रस्तुत पंक्तियाँ कौन किससे कहता है ?
- प्रस्तुत पंक्तियाँ भीष्म पितामह धर्मराज
युधिष्ठिर से कहते हैं।
ग) संघर्ष कब कम नहीं होगा ? सपष्ट करें।
- संघर्ष तब तक कम
नहीं होगा जब तक सभी मनुष्यों को समान दृष्टि से नहीं देखा जाएगा। सभी मनुष्यों
को जब तक न्यायोचित सुख सुलभ नहीं होगा। जब तक जाति, धर्म, धन आदि का भेदभाव समाप्त
नहीं होगा तब तक संघर्ष कम नहीं होगा।
घ) कविता का मूल भाव अपने शब्दों में लिखे।
- कविता का मूल भाव प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तुओं तथा
नि:शुल्क उपहारों का उपभोग हमें मिल बाँटकर करना चाहिए। साथ ही कवि का यह भी कहना
है कि हमें प्रकृति द्वारा यह सीख लेनी चाहिए कि हमें सभी को समान दृष्टि से
देखना चाहिए तथा नि:स्वार्थ भाव से सबकी मदद करनी चाहिए। यदि हम ऐसा करते हैं तो
पृथ्वी स्वर्ग बन जाएगा।
EXTRA
आपके अनुसार पृथ्वी कब स्वर्ग बन सकता है ?
१. प्रस्तुत अंश कवि की किस रचना से ली गई है ?
- प्रस्तुत अंश कवि की 'कुरुक्षेत्र’ रचना से ली गई
है।
२. रामधारी सिंह 'दिनकर’ जी की किन्हीं चार रचनाओं के नाम बताएँ।
- रामधारी सिंह 'दिनकर’ जी की किन्हीं चार रचनाओं के नाम हैं -कुरुक्षेत्र,
रेणुका, रसवंती, रश्मिरथी आदि।
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४. वह जन्मभूमि मेरी
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४. वह जन्मभूमि मेरी
सोहनलाल द्विवेदी
कवि परिचय: सोहनलाल द्विवेदी
आधुनिक काल के कवि हैं। ये राष्ट्र कवि के नाम से भी जाने जाते हैं। इन्होंने
आजीवन निष्काम भाव से साहित्य सर्जना की। द्विवेदी जी गाँधीवादी विचारधारा के
प्रतिनिधि कवि हैं। ये अपनी राष्ट्रीय तथा पौराणिक रचनाओं के लिए सम्मानित हुए। ये
'पद्मश्री अलंकरण से सम्मानित हुए।
रचनाएँ - 'भैरवी, 'वासवदत्ता, 'पूजागीत, 'विषपान और 'जय गाँधी आदि। इनके कई बाल काव्य संग्रह भी प्रकाशित हुए।
भाषा: इन्होंने खड़ी बोली का
प्रयोग किया है।
शब्दार्थ:
१.सिंधु-समुद्र
२. अमराइयाँ-
आम के पेड़ों का बाग
३. रघुपति- भगवान
राम
४. चरण- पैर
५.
पुनित-पवित्र।
बुद्ध के उपदेशों का सार इस प्रकार है -
- सम्यक ज्ञान
बुद्ध के अनुसार धम्म है: -
|
बुद्ध के अनुसार अ-धम्म है: -
|
1. जो धम्म प्रज्ञा की वृद्धि करे--
|
2. जो धम्म मैत्री की वृद्धि करे--
|
3. जब वह सभी प्रकार के सामाजिक भेदभावों को मिटा दे
|
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर:
१. जन्मे जहाँ थे रघुपति, जन्मी जहाँ थी सीता,/ श्रीकृष्ण ने सुनाई, वंशी पुनीत गीता।/ गौतम ने जन्म लेकर, जिसका सुयश बढ़ाया,/ जग को दया दिखाई, जग को दिया दिखाया।
क) गौतम बुद्ध का संक्षिप्त परिचय दें।
- गौतम बुद्ध महामाया और कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन के पुत्र थे। इनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था। ये
बौद्ध धर्म के प्रवर्तक थे।[
ख) भगवान बुद्ध ने लोगों को किस मार्ग का उपदेश दिया ? स्पष्ट करें।
- भगवान बुद्ध ने लोगों
को मध्यम मार्ग का उपदेश दिया। उन्होंने दुःख, उसके कारण और निवारण
के लिए अष्टांगिक मार्ग सुझाया। उन्होंने अहिंसा पर बहुत जोर दिया है। उन्होंने यज्ञ और पशु-बलि की निंदा की।
ग)- रघुपति अर्थात श्रीराम किस नाम से जाने जाते हैं और
क्यों ?
- रघुपति अर्थात श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से
जाने जाते हैं क्योंकि जो उपदेश वह देना चाहते हैं उसे स्वयं के ऊपर प्रयोग करके सच्चे
पुरूष का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। यही कारण है कि राम मर्यादा
पुरूषोत्तम कहलाते हैं।
घ)- 'गीता’ क्या है ? स्पष्ट करें।
- गीता को हिन्दु धर्म में
बहुत खास स्थान दिया गया है। गीता अपने अंदर भगवान
कृष्ण के उपदेशो को समेटे हुए है। गीता को वेदों और उपनिषदों का सार माना जाता । गीता न सिर्फ जीवन का सही अर्थ समझाती है बल्कि परमात्मा के अनंत रुप से हमें रुबरु कराती है। इस सांसारिक दुनिया
में दुख, क्रोध, अहंकार ईर्ष्या आदि
से पिड़ित आत्माओं को,
गीता सत्य और आध्यात्म का मार्ग दिखाकर मोक्ष की प्राप्ति करवाती है।
गीता में लिखे उपदेश किसी एक मनुष्य विशेष या किसी खास धर्म
के लिए नहीं
है,
इसके उपदेश तो पूरे जग के लिए है। जिसमें आध्यात्म और ईश्वर
के बीच जो
गहरा संबंध है उसके बारे में विस्तार से लिखा गया है। गीता
में धीरज, संतोष, शांति, मोक्ष और सिद्धि को प्राप्त करने के बारे में उपदेश दिया गया है।
२. ऊँचा खड़ा
हिमालय, आकाश चूमता है,/ नीचे चरण तले पड़, नित सिंधु झूमता है।/गंगा, यमुना,
त्रिवेणी, नदियाँ लहर रही हैं,/ जगमग छटा निराली, पग-पग पर छहर रही हैं।
क) प्रस्तुत पंक्तियों
के कवि का नाम बताते हुए यह भी बताइए कि वे किस उपनाम से जाने जाते हैं ?
- प्रस्तुत पंक्तियों के
कवि का नाम 'सोहनलाल द्विवेदी’ है तथा वे 'राष्ट्रकवि’ उपनाम से जाने जाते हैं।
ख) कवि ने भारत-भूमि को किन महापुरुषों की भूमि कहा है और क्यों ?
- कवि के अनुसार भारत-भूमि ऐसी पुण्यभूमि है जहाँ अनेक युग
पुरुषों ने जन्म लिया एवं अपने उपदेशों एवं ज्ञान के माध्यम से जनता का
मार्गदर्शन किया। इसी भारत की भूमि पर श्रीराम ने जन्म लिया तो सीता माता का जन्म
भी यहीं हुआ। इसी भूमि पर श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी की धुन सुनाई और गीता का
उपदेश भी दिया। यहीं गौतम बुद्ध का जन्म भी हुआ और भारत देश के यश, ख्याति में
वृद्धि की इसीलिए यह भूमि महापुरुषों की भूमि है। जिन्होंने जग पर दया की एवं प्रकाश
रूपी दिया दिखाकर लोगों का मार्गदर्शन किया।
ग) 'वह जन्मभूमि मेरी’ कविता के प्राकृतिक
सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
- 'वह जन्मभूमि मेरी’ कविता में कवि ने भारत के
प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया है। कवि का कहना है कि भारत एक ऐसा देश है जिसके
उत्तर में ऊँचा हिमालय सुशोभित है तो उस हिमालय के चरणों में समुद्र बहता है।
यहाँ वनों में, पहाड़ों में अनेक झरने बहते हैं और चिड़ियाँ अपनी सुरीली आवाज से
प्राकृतिक वातावरण को सुखद बनाती है। आम के पेड़ों से कोयल की मधुर आवाज सुनाई देती
है तो मलय पर्वत की सुगंधित हवा भी वातावरण को मनमोहक बनाती है।
घ) कविता का मूल-भाव अपने शब्दों में लिखिए।
- कविता का मूल-भाव विद्यार्थियों में देश प्रेम, राष्ट्र
प्रेम की भावना को चित्रित करना है। कवि ने भारत देश को अपनी जन्मभूमि, मातृभूमि
कह कर संबोधित किया है तथा अपने श्रद्धा भाव को व्यक्त किया है। यह देश अनेक
महापुरुषों की जन्मभूमि होने के कारण कर्मभूमि,धर्मभूमि भी है। इस प्रकार कविता का
मूल भाव हम पाठक गण के मन में अपने देश के प्रति प्रेम भाव को व्यक्त करना रहा
है।
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सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
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5. मेघ आए
कवि परिचय : ये आधुनिक काल के कवि हैं।
रचनाएँ: काठ की घंटियाँ, बाँस का पुल, गर्म
हवाएँ आदि।
पुरस्कार: कविता संग्रह खूँटियों पर टँगे लोग के लिए इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से विभूषित किया गया।
भाषा: इन्होंने सरल भाषा का प्रयोग किया है।
शब्दार्थ
१.मेघ- बादल
२. बयार- हवा
३. पाहुन- अतिथि
४. बाँकी - तिरछी
५. चितवन – दृष्टि, नज़र
६. जुहार - अभिवादन
७. अकुलाई– व्याकुल
८. ओट- छिपकर
९. अटारी – कोठा, दुछत्ति
१०. दामिनि– बिजली
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर:
मेघ
आये बड़े बन-ठन के, सँवर
के।
आगे-आगे
नाचती-गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली
पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के।
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली
पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के।
मेघ
आये बड़े बन-ठन के, सँवर
के।
क)
मेघों के आने की तुलना किससे की गई है ?
-
मेघों के आने की तुलना सजकर आए प्रवासी अतिथी (दामाद) से की गई है। जिस तरह
ग्रामीण संस्कृति में मेघ के आने पर उल्लास का वातावरण छा जाता है ठीक इसी
प्रकार आकाश में मेघ के छा जाने पर खुशियों का माहौल छा गया है।
ख)
मेघों के आने पर हवा की क्या प्रतिक्रिया हुई?
-
मेघों के आने पर हवा तेज़ गति से बहने लगी। ऐसा प्रतीत होता है कि मेघों के स्वागत
के लिए हवा भी खुशी से नाच झूम उठी है।
ग)
हवा की समानता किससे की गई है और किस
प्रकार ?
-
हवा की समानता गाँव के लड़के-लड़कियों से की गई है जिस तरह मेहमान के आने पर गाँव के
लड़के-लड़कियाँ भागकर सबको उसकी सूचना देते हैं ठीक इसी प्रकार मेघ के आने की सूचना
देने के लिए हवा तेज़ गति से बह रही है।
घ)
रेखांकित पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए ?
-
रेखांकित पंक्ति द्वारा कवि कहना चाहते
हैं कि जिस तरह गाँव में मेहमानों को देखने के लिए लोग खिड़की दरवाजे से झाँकते हैं
ठीक इसी प्रकार लोग मेघों को देखने के लिए अपने खिड़की दरवाजे से उत्सुकतापूर्वक आकाश की ओर निहार रहे हैं।
२.
बूढ़े़ पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
मेघ आये बड़े बन-ठन के,
सँवर
के।
क)
मेघों के आगमन पर किसने क्या किया?
-
मेघों के आगमन पर बूढ़े़ पीपल ने खुशी से उसका स्वागत किया ।
ख)
किसके लिए बूढ़े़ शब्द का प्रयोग किया गया है और क्यों?
-
गाँव के मुखिया तथा वृद्ध लोगों के लिए
बूढ़े़ शब्द का प्रयोग किया गया है क्योंकि जिस
प्रकार गाँव में दामाद का स्वागत करने के लिए गाँव के मुखिया तथा वृद्ध आगे आते हैं ठीक इसी
प्रकार बूढ़ा पीपल का पेड़ भी बादलों के
स्वागत के लिए खुशी से झूम रहा है।
ग)
लता की समानता किससे दिखाई गई है और उसने किससे क्या शिकायत की ?
-
लता की समानता वर्षों से अपने पति की राह ताक रही व्याकुल पत्नी से दिखाई है और
उसने अपने पति से किवाड़ की ओट में छिपकर यह
मधुर उलाहना दिया कि अब आपको हमारी याद आई है ।
घ)
रेखांकित पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
-
रेखांकित पंक्ति द्वारा कवि ने ग्रामीण संस्कृति का वर्णन किया है। कवि का कहना
है कि जिस तरह घर में यदि कोई मेहमान आता है तो उस घर का कोई सदस्य आतिथ्य
सत्कार हेतु एक लोटा पानी से सर्वप्रथम उसका खुशी के साथ स्वागत करता है ठीक इसी
प्रकार आसमान में मेघों के छाने पर सुखे तालाब में भी हलचल मच गई है अर्थात वह भी
मेघों का आतिथ्य सत्कार प्रसन्नता पूर्वक कर रहा है।
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9. सूर
के पद
कवि परिचय: सूरदास भक्ति काल के कवि थे। ये जन्मांध थे। कृष्ण की
बाललीला का अनुपम वर्णन करते थे। कहा जाता है कि इन्हें माता यशोदा का हृदय
प्राप्त था। सूरदास सगुण भक्ति के उपासक
थे ।
रचनाएँ : सूरसागर, सूरसारावली,
साहित्य लहरी आदि।
भाषा : इन्होंने साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया
है।
शब्दार्थ
१.पालना- झूला
२.हलरावै- हाथ में लेकर
हिलाती है
३.मल्हावै- पुचकारती है
४. बेगहिं- जल्दि
५. अधर- होंठ
६. सैन- इशारा
७. अकुलाइ- बेचैन
८. खीझत- रूठना
९. अरुन- लाल
१०.अलक- बाल
प्रश्नोत्तर :
१. जसोदा हरि पालने
झुलावै।
हलरावै, दुलराई मल्हावै, जोइ-सोइ कछु
गावै॥
मेरे लाल को आउ निंदरिया, काहै न आनि
सुवावै।
तू काहे नहिं बेगहिं आवै, तोकों कान्ह
बुलावै॥
कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर
फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन
बतावै॥
इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरै
गावै।
जो सुख ‘सूर’ अमर मुनि दुरलभ, सो नँद-भामिनि पावै॥१॥
क) कौन, किसे, किस प्रकार
सुला रहा है ?स्पष्ट करें।
- यशोदा, अपने पुत्र श्री कृष्ण को,
लोरी गाकर सुला रही है। वह कभी उसे पालने में झुलाती है, कभी अपनी बाँहों में,
कभी दुलारती है, कभी पुचकारती है, तो कभी
मुँह में जो भी आता है, उसे ही गुनगुनाकर सुलाने की कोशिश करती है,
तो कभी अपने पुत्र को सुलाने के लिए
निंदिया को भी शीघ्र आने के लिए कहती है।
ख) यशोदा यह क्यों मान
लेती है कि श्री कृष्ण सो गए हैं ? उसे सोता हुआ जान कर वह क्या करती है ?
-
यशोदा यह मान लेती है कि श्री कृष्ण सो गए हैं क्योंकि श्री कृष्ण लीला
भाव में कभी अपनी पलकों को बंद कर लेते
हैं, तो कभी जिस तरह नींद में अन्य बच्चे
दूध पीने का स्मरण कर अपने होंठ फड़फड़ाते हैं ठीक इसी तरह श्री कृष्ण
भी अपने होंठ फड़फड़ाने लगते हैं। श्री
कृष्ण को सोता हुआ जानकर यशोदा मौन हो जाती है साथ ही वह दूसरी
गोपियों को भी संकेत करके समझाती हैं कि यह सो रहा है, अत: वे सब भी चुप हो जाए।
ग) ‘नँद-भामिनि’ से क्या तात्पर्य है तथा पद्यांश
के अंतीम पंक्ति द्वारा कवि क्या कहना चाहते हैं ?
- ‘नँद-भामिनि’ से तात्पर्य नंद की पत्नी यशोदा से है। पद्यांश के अंतीम पंक्ति
द्वारा कवि यह कहना चाहते हैं कि जो
सुख देवताओं तथा मुनियों के लिये भी
दुर्लभ है, वही श्याम को बालरूप में पाकर, उसका
लालन-पालन कर तथा उसे
प्यार करने का सुख श्रीनन्द पत्नी
प्राप्त कर रही हैं।
घ) कविता के आधार पर स्पष्ट
करें कि सूरदास ने श्री कृष्ण के किस रूप का वर्णन किया है ?
- सूरदास ने श्री कृष्ण के बाल रूप का
वर्णन किया है। श्री कृष्ण के बाल रूप का वर्णन करते हुए सूरदासजी ने जहाँ उनके
सोने के समय का विभिन्न क्रियाकलापों का
वर्णन किया है वहीं उन्होंने जम्हाई लेते हुए आँखें लाल एवं घुटनों के बल
चलते हुए श्री कृष्ण के बाल रूप का भी
वर्णन किया है साथ ही चाँद रूपी खिलौना के लिए तरह-तरह का हठ करने के
दृश्य का भी वर्णन किया है।
२. मैया मेरी,चंद्र खिलौना
लैहौं॥
धौरी कौ पय पान करिहौं, बेनी सिर न गुथैहौं।
मोतिन माल न धरिहौं उर पर, झुंगली कंठ न
लैहौं॥
जैहों
लोट अबहिं धरनी पर, तेरी गोद न ऐहौं॥
लाल
कहैहौं नंद बाबा कौ, तेरौ सुत न कहैहौं॥
कान लाय कछु कहत
जसोदा,दाउहिं नाहिं सुनैहौं।
चंदा
हूँ ते अति सुंदर तोहिं, नवल दुलहिया ब्यैहौं॥
तेरी
सौं मेरी सुन मैया, अबहीं ब्याहन जैहौं।
‘सूरदास’ सब सखा बराती,नूतन मंगल गैहौं॥
क) प्रस्तुत पंक्तियों
में श्री कृष्ण अपनी माँ से किस बात की हठ करते हैं ? अपनी हठ की पूर्ति के लिए
वे क्या कहते हैं ?
- प्रस्तुत पंक्तियों में श्री कृष्ण
अपनी माँ से चाँद रूपी खिलौना लेने के लिए की हठ करते हैं। अपनी हठ की पूर्ति के लिए
वे कहते हैं कि जब तक उन्हें वह खिलौना नहीं मिलेगा
तब तक वह गाय का दूध नहीं पिएँगें, न चोटी गुथवाएँगे, न
माला पहनेंगे। साथ ही वह यह भी कहते हैं
कि वे ज़मीन पर लेट जाएँगें और माता की गोद में नहीं आएँगें साथ ही
उनका पुत्र न कहलाकर नंद बाबा का सुत
कहलाएँगे।
ख) अपने सुत को मनाने के
लिए माँ यशोदा क्या कहती है ? उसे सुनकर श्री कृष्ण की क्या प्रतिक्रिया होती है
?
-
अपने सुत को मनाने के लिए माँ यशोदा कहती है कि वह उसके लिए चाँद से भी अति
सुंदर दुल्हन लाएगी अर्थात
उसका ब्याह कराएगी। साथ ही वह यह बात
बलराम से भी बताने को मना करती है।
उसे सुनकर श्री
कृष्ण खुश हो जाते हैं और अपनी माँ को सौगंध देते हुए कहते हैं कि वह तत्काल
ब्याहने जाएँगें, जिसमें सभी सखा बाराती बनकर मंगल गीत गाएँगें।
ग) ‘सुर वात्सल्य है एवं वात्सल्य
सुर’ ऐसा क्यों कहा जाता है ?
- वात्सल्य का अर्थ होता है माता-पुत्र
के प्रेम का चित्रण करना। सूरदास ने अपने काव्य में श्री कृष्ण एवं माता यशोदा के
प्रेम के रूप का जो चित्रण किया है, वह
अत्यधिक सुंदर है। माता के हृदय की भावनाओं का मर्मस्पर्शी वर्णन सूरदास के
काव्य में मिलता है। यही कारण है कि उनके
बारे में यह कहा जाता है कि उन्हें माता यशोदा का हृदय प्राप्त है क्योंकि
एक माता के मन में अपने बच्चे के प्रति
जो भी भाव होते हैं उनसब का सुंदर वर्णन सूरदास जी ने किया है। इसलिए यह
कहा जाता है कि ‘सुर वात्सल्य है एवं वात्सल्य
सुर’।
घ) कवि का परिचय देते हुए
बताइए कि कवि सूरदास कौन –सी भक्ति के
उपासक थे ?
[3]
-सूरदास भक्ति काल के कवि
थे। ये जन्मांध थे। कृष्ण की बाललीला का अनुपम वर्णन करते थे। कहा जाता है कि इन्हें
माता यशोदा का हृदय प्राप्त था।
रचनाएँ : सूरसागर, सूरसारावली,
साहित्य लहरी आदि।
भाषा : इन्होंने साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया
है।
सूरदास सगुण भक्ति के
उपासक थे ।
EXTRA
क)
प्रथम पद में सूरदास ने श्री कृष्ण के बाल रूप का किस प्रकार वर्णन किया है ?
स्पष्ट करें।
- प्रथम पद में सूरदास ने श्री कृष्ण के बाल रूप
का वर्णन करते हुए कहा है कि कभी यशोदा, अपने पुत्र श्री कृष्ण को लोरी गाकर सुलाती है। वह कभी
उसे पालने में झुलाती है, कभी अपनी बाँहों में। कभी दुलारती है, कभी पुचकारती है,
तो कभी मुँह में जो भी आता है, उसे ही गुनगुनाकर सुलाने की कोशिश करती है, तो कभी
अपने पुत्र को सुलाने के लिए निंदिया को भी शीघ्र आने के लिए कहती है। कवि कहते
हैं कि श्री कृष्ण कभी सोने के लिए आँखें बंद कर लेते हैं तो कभी नींद में अपने
होंठ फड़काने लगते हैं। श्री कृष्ण को सोता हुआ जानकर यशोदा मौन हो जाती है साथ ही
वह दूसरी गोपियों को भी संकेत करके समझाती हैं कि यह सो रहा है, अत: वे सब भी चुप हो जाए। तभी अचानक श्री
कृष्ण व्याकुल होकर जाग जाते हैं तो माँ पुन: गाकर उसे सुलाने की कोशिश करती है।
ख)
दूसरे पद में सूरदास ने श्री कृष्ण के बाल रूप का किस प्रकार वर्णन किया है ?
स्पष्ट करें।
- दूसरे
पद में सूरदास ने श्री कृष्ण के बाल रूप का वर्णन करते हुए कहा है कि कभी श्री
कृष्ण माखन खाते-खाते रूठ जाते
हैं और रूठते भी ऐसे हैं कि रोते-रोते अपने नेत्र लाल कर लेते हैं, अपनी भौंहें
वक्र कर लेते हैं और बार-बार जम्हाई लेने लगते हैं। कभी वह घुटनों के बल चलते हैं
जिससे उनके पैरों में पड़ी पैंजनिया में से रुनझुन स्वर निकलते हैं, घुटनों के बल
चलकर ही वे अपने सारे शरीर को धूल-धूसरित कर लेते हैं, कभी वे अपने ही बालों को खींचते
हैं और नैनों में आँसू भर लाते हैं, कभी तोतली बोली बोलते हैं तो कभी तात की रट
लगाते हैं।
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7. विनय के पद
कवि परिचय: ये भक्तिकाल के
सगुण भक्ति धारा के राम भक्ति शाखा के प्रमुख कवि हैं। ये राम के अनन्य भक्त
थे। इनके राम में शक्ति, शील और सौन्दर्य तीनों गुणों का अपूर्व सामंजस्य है।
इनकी भक्ति दास्य-भाव की थी। इनके द्वारा रचित रामचरितमानस बड़ा ही लोकप्रिय
ग्रंथ है।
रचनाएँ: रामचरितमानस,
दोहावली, कवितावली, श्रीराम गीतावली, श्री कृष्ण
गीतावली, विनय पत्रिका, जानकीमंगल,
पार्वतीमंगल आदि।
भाषा: इनका
'अवधी' और 'व्रज' दोनों भाषा पर
पूर्ण अधिकार
था।
शब्दार्थ:
१. उदार- बड़ा दिल वाला
२. द्रवै-
करुणा करते हैं
३. सरिस- समान
४. विराग-
वैराग्य
५.अरप-
अर्पण
६. वैदेही-
सीता
७. कंत- पति
८.
बनितन्हि- स्त्रियों के द्वारा ।
प्रश्नोत्तर:
1. ऐसो को उदार जग माहीं।
बिनु
सेव जो द्रवै दीन पर राम सरिस कौ नाहीं॥
जो
गति जोग विराग जतन करि नहिं पावन मुनि ज्ञानी।
सो
गति देत गीध सबरी कहूँ प्रभु न बहुत जिय जानी॥
जो
सम्पत्ति दस सीस अरप करि रावण सिव पहँ लीन्ही।
सो
सम्पदा-विभीषण कहँ अति सकुच सहित प्रभु दीन्ही॥
तुलसीदास
सब भाँति सकल सुख जो चाहसि मन मेरो।
तौ
भजु राम, काम सब पूरन कर कृपानिधि तेरो॥
क) कौन उदार हैं तथा उन्हें उदार क्यों कहा जाता है ? अथवा
- प्रस्तुत पद में किसकी बात की जा रही है ? वह कैसे उदार
हैं ?
- कवि तुलसीदास के आराध्य देव भगवान राम उदार हैं।
भगवान राम बिना सेवा के ही दीनों पर दया करते हैं। दीनों की
दशा देखकर उनका हृदय पसीज पसीज जाता है और वे उनके दु:ख दूर तुरंत कर देते हैं।
यही कारण है कि उन्हें उदार कहा जाता है। कवि का मानना है कि उनके समान उदार
स्वभाव का और कोई नहीं है।
ख) गीध और सबरी को किसने, कौन-सा स्थान दिया ? समझाकर
लिखिए।
- गीध अर्थात
जटायु के आत्मत्याग और सबरी (शबरी) की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान राम ने
उन्हें परम पद का स्थान अर्थात मोक्ष प्रदान किया।
गीध: गीध
अर्थात गिद्ध से कवि का तात्पर्य जटायु से है। जब रावण सीता का हरण करके आकाश
मार्ग से लंका की ओर जा रहा था तो सीता की दुख भरी वाणी सुनकर जटायु ने उन्हें
पहचान लिया और उन्हें छुड़ाने के लिए रावण से युद्ध करते हुए गंभीर रूप से घायल
हो गया। सीता को खोजते हुए राम जब वहाँ पहुँचे तो उसने उन्हें रावण के विषय में
सूचना देकर राम के चरणों में ही प्राण त्याग दिए। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि
जटायु ने सीता की रक्षा करने में अपने प्राणों की परवाह नहीं की थी।
सबरी: सबरी
अर्थात शबरी एक वनवासी शबर जाति की स्त्री थी जिसको पूर्वाभास हो गया था कि राम
उसी वन के रास्ते से जाएँगे जहाँ वह रहती थी। उनके स्वागत के लिए उसने चख-चख कर
मीठे बेर जमा किए थे। राम ने उसका आतिथ्य स्वीकार किया और उसे परम गति प्रदान
की। शबरी का
वास्तविक नाम श्रमणा था । श्रमणा भील समुदाय की "शबरी " जाति से सम्बंधित
थी । संभवतः इसी कारण श्रमणा को शबरी नाम दिया गया था ।
पौराणिक संदर्भों
के अनुसार श्रमणा एक कुलीन हृदय की प्रभु राम की एक अनन्य भक्त थी
लेकिन उसका विवाह एक दुराचारी और अत्याचारी व्यक्ति से हुआ था ।
प्रारम्भ में
श्रमणा ने अपने पति के आचार-विचार बदलने की बहुत चेष्टा की , लेकिन उसके
पति के पशु संस्कार इतने प्रबल थे की श्रमणा को उसमें सफलता नहीं मिली ।
कालांतर में अपने पति के कुसंस्कारों और अत्याचारों से तंग आकर श्रमणा ने
ऋषि मातंग के आश्रम में शरण ली । आश्रम में श्रमणा श्रीराम का भजन और ऋषियों
की सेवा-सुश्रुषा करती हुई अपना समय व्यतीत करने लगी ।
इस प्रकार हम कह
सकते हैं कि शबरी ने बड़े भोलेपन से प्रेमपूर्वक राम को अपने चखे हुए मीठे बेर
खिलाए थे। उसके इसी प्रेमपूर्वक व्यवहार से राम प्रसन्न होकर उसे परम गति
प्रदान किया।
|
ग) यहाँ किस सम्पत्ति की बात की जा रही है ? उसे लंकापति
रावण ने, किस प्रकार प्राप्त किया ? भगवान राम ने वह सम्पत्ति किसे दे दी और
क्यों ?
- यहाँ लंका की
सम्पत्ति की बात की जा रही है। उसे लंकाधिराज रावण ने भगवान शिव की कठिन तपस्या
करके अर्थात अपना दस मुख अर्पित कर प्राप्त की थी।
भगवान राम ने वह
सम्पत्ति रावण का वध करके विभीषण को दे दी। विभीषण रावण का
छोटा भाई था। वह राम भक्त था। उसने रावण को राम से क्षमा माँगकर उनकी शरण में
जाने के लिए समझाने की चेष्टा की, किन्तु रावण ने उसका तिरस्कार किया। इसलिए वह
लंका छोड़कर राम की शरण में आ गया। युद्ध में रावण को पराजित करने के बाद राम ने
लंका का राज्य विभीषण को दे दिया।
घ)
तुलसीदास किसका भजन करने के लिए कह रहे हैं और क्यों ? ‘सकल
सुख’ का
प्रयोग कवि ने क्या बताने के लिए किया है ?
पद के आधार पर समझाइए।
-
तुलसीदास भगवान राम का भजन करने के लिए कह रहे हैं क्योंकि राम ही सबसे उदार हैं
जिसकी आराधना से कैवल्य अर्थात मोक्ष की प्राप्ति होती है।
‘सकल सुख’ का प्रयोग कवि ने यह बताने के लिए किया है कि श्री राम की आराधना
से कोई भी प्राणी जो कुछ भी चाहता है, वह सब सुख उसे प्राप्त हो सकता है। इसका
उदाहरण गीद्ध पक्षी जटायु और शबरी है जिसे भगवान राम ने परमपद (मोक्ष) और विभीषण
को लंका का राज्य प्रदान किया। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि रामभक्त आधिभौतिक अथवा
भौतिक, जो सुख भी चाहे प्राप्त कर सकता है।
2. जाके
प्रिय न राम वैदेही |
तजिए ताहि कोटि
वैरी सम जद्पि परम सनेही ।|
तज्यो पिता प्रह्लाद, विभीषण बन्धु, भरत महतारी |
बलि गुरु तज्यो, कंत ब्रज बनितन्हि,भए-मुद मंगलकारी ||
नाते नेह राम के मनियत, सुहुद सुसैब्य जहाँ लौं |
अंजन कहा आंख जेहि फूटै, बहु तक कहौ कहाँ लौं ||
तुलसी सो सब भांति परमहित पूज्य प्राण ते प्यारो |
जासों होय सनेह राम-पद, एतो मतो हमारो ||(विनयपत्रिका -१७४ )
तज्यो पिता प्रह्लाद, विभीषण बन्धु, भरत महतारी |
बलि गुरु तज्यो, कंत ब्रज बनितन्हि,भए-मुद मंगलकारी ||
नाते नेह राम के मनियत, सुहुद सुसैब्य जहाँ लौं |
अंजन कहा आंख जेहि फूटै, बहु तक कहौ कहाँ लौं ||
तुलसी सो सब भांति परमहित पूज्य प्राण ते प्यारो |
जासों होय सनेह राम-पद, एतो मतो हमारो ||(विनयपत्रिका -१७४ )
क)
कवि किनके उपासक थे अथवा उनके आराध्य कौन थे तथा वे किस प्रकार की
भक्ति को महत्त्व देते थे ? प्रस्तुत पद
में कवि ने किन्हें त्यागने की बात की है
और क्यों
?
- कवि श्री राम के उपासक थे अथवा उनके आराध्य
श्री राम थे तथा वे दास्य भक्ति
को महत्त्व देते थे।
प्रस्तुत
पद में कवि ने उन्हें त्यागने की बात की है जिन्हें सीता पति श्री राम प्रिय नहीं
हैं। कवि के अनुसार ऐसे लोग भले ही हमारे परम प्रिय हों लेकिन ऐसे लोग करोड़ों दुश्मन
के समान होते हैं।
ख) ‘मुद मंगलकारी’ किन्हें कहा गया है ? राजा बलि के गुरु
कौन थे उन्होंने अपने
गुरु का परित्याग कब और क्यों किया ?
- ‘मुद मंगलकारी’ प्रह्लाद, विभीषण, भरत,
बलि, ब्रज की स्त्रियों को कहा गया है जिन्होंने अपने आराध्य श्री कृष्ण के लिए अपने नाते-रिश्ते को
भी त्याग दिया।
उन्होंने अपने गुरु का परित्याग तब किया जब उनके गुरु शुक्राचार्य
जी ने बलि को सचेत किया कि उनके द्वार पर दान माँगने स्वयं
विष्णु भगवान पधारे हैं जो छल से उनसे कुछ भी माँग सकते हैं। अत: वे उन्हें
दान न दे बैठे। परन्तु राजा बलि उनकी बात नहीं मानते हुए उनका परित्याग
करते हैं।
राजा बलि दैत्य होते हुए भी विष्णु भक्त था। जब उन्हें अपने गुरु द्वारा यह पता चला
कि उनके द्वार पर स्वयं विष्णु भगवान भिक्षा माँगने आए हैं तो उसने इसे अपना सौभाग्य समझा और अपने गुरु का परित्याग करते हुए
तीन पग भूमि दान स्वरूप दे दी।
बलि: बलि नामक दैत्य गुरु भक्त प्रतापी और वीर राजा था। देवता
उसे नष्ट करने में असमर्थ थे। वह विष्णु भक्त था। एक बार राजा बलि ने देवताओं
पर चढ़ाई करके इन्द्रलोक पर अधिकार कर लिया। उसके दान के चर्चे सर्वत्र होने
लगे। तब
विष्णु वामन अंगुल का वेश धारण करके राजा बलि से दान माँगने जा पहुँचे।
दैत्यों के गुरु
शुक्राचार्य ने बलि को सचेत किया कि तेरे द्वार पर दान माँगने स्वयं
विष्णु भगवान
पधारे हैं। उन्हें दान मत दे बैठना, परन्तु राजा बलि उनकी बात नहीं माना।
उसने इसे अपना सौभाग्य समझा कि भगवान उसके द्वार पर
भिक्षा माँगने आए हैं। तब विष्णु
ने बलि से तीन पग भूमि माँगी। राजा बलि ने संकल्प करके भूमि दान
कर दी। विष्णु ने अपना विराट रूप धारण करके दो पगों में
तीनों लोक नाप लिया और तीसरा पग
राजा बलि के सिर पर रखकर उसे पाताल भेज दिया।
|
ग) प्रह्लाद कौन था ? उसका संक्षिप्त परिचय दें।
- प्रह्लाद: प्रह्लाद
हिरण्यकशिपु नामक दैत्य का पुत्र था। प्रह्लाद विष्णु भक्त था जबकि उसका पिता
विष्णु विरोधी। प्रह्लाद को उसके पिता ने विष्णु की भक्ति छुड़ाने के लिए अनेक
प्रकार की यातनाएँ दीं परंतु प्रह्लाद ने अपने पिता की बात नहीं मानी। होलिका
हिरण्यकशिपु की बहन थी जिसे न जलने का वरदान प्राप्त था। वह हिरण्यकशिपु के कहने
पर प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ गई। कहा जाता है कि होलिका जल गई
लेकिन प्रह्लाद जीवित रहा। अंत में भगवान ने नृसिंह का रूप धारण कर हिरण्यकशिपु
का वध कर दिया।
घ)
भरत से संबंधित कथा का वर्णन अपने शब्दों में करें।
- भरत: भरत अयोध्या के राजा दशरथ के
पुत्र थे उनकी माता का नाम कैकेई था। उन्होंने अपने पति दशरथ के वचन के अनुसार
उनसे दो वरदान माँगे। पहला अपने पुत्र भरत के लिए राजगद्दी। दूसरा राम के लिए
चौदह वर्ष का वनवास। राम के प्रति ऐसी भावना रखने के कारण भरत ने माँ का त्याग कर
दिया। उन्होंने राजगद्दी का भी बहिष्कार कर दिया।
अन्तर्कथाएँ:
गीध: गीध अर्थात गिद्ध से कवि का तात्पर्य जटायु से है। जब
रावण सीता का हरण करके आकाश मार्ग से लंका की ओर जा रहा था तो सीता की दुख भरी
वाणी सुनकर जटायु ने उन्हें पहचान लिया और उन्हें छुड़ाने के लिए रावण से युद्ध
करते हुए गंभीर रूप से घायल हो गया। सीता को खोजते हुए राम जब वहाँ पहुँचे तो उसने
उन्हें रावण के विषय में सूचना देकर राम के चरणों में ही प्राण त्याग दिए।
सबरी: सबरी
अर्थात शबरी एक वनवासी शबर जाति की स्त्री थी जिसको पूर्वाभास हो गया था कि राम
उसी वन के रास्ते से जाएँगे जहाँ वह रहती थी। उनके स्वागत के लिए उसने चख-चख कर
मीठे बेर जमा किए थे। राम ने उसका आतिथ्य स्वीकार किया और उसे परम गति प्रदान की। शबरी का वास्तविक नाम श्रमणा था । श्रमणा भील समुदाय की
"शबरी " जाति से सम्बंधित थी ।
संभवतः इसी कारण श्रमणा को शबरी नाम दिया गया था ।
पौराणिक संदर्भों के अनुसार श्रमणा एक
कुलीन हृदय की प्रभु राम की एक अनन्य भक्त थी लेकिन उसका विवाह एक दुराचारी और
अत्याचारी व्यक्ति से हुआ था ।
प्रारम्भ में श्रमणा ने अपने पति के
आचार-विचार बदलने की बहुत चेष्टा की , लेकिन उसके पति के पशु संस्कार इतने प्रबल थे की श्रमणा को
उसमें सफलता नहीं मिली ।
कालांतर में अपने पति के कुसंस्कारों और अत्याचारों से तंग आकर श्रमणा ने ऋषि मातंग के
आश्रम में शरण ली । आश्रम में श्रमणा श्रीराम का भजन और ऋषियों की
सेवा-सुश्रुषा करती हुई अपना समय व्यतीत करने लगी ।
विभीषण: विभीषण रावण का
छोटा भाई था। वह राम भक्त था। उसने रावण को राम से क्षमा माँगकर उनकी शरण में
जाने के लिए समझाने की चेष्टा की, किन्तु रावण ने उसका तिरस्कार किया। इसलिए वह
लंका छोड़कर राम की शरण में आ गया। युद्ध में रावण को पराजित करने के बाद राम ने
लंका का राज्य विभीषण को दे दिया।
प्रह्लाद: प्रह्लाद
हिरण्यकशिपु नामक दैत्य का पुत्र था। प्रह्लाद विष्णु भक्त था जबकि उसका पिता
विष्णु विरोधी। प्रह्लाद को उसके पिता ने विष्णु की भक्ति छुड़ाने के लिए अनेक
प्रकार की यातनाएँ दीं परंतु प्रह्लाद ने अपने पिता की बात नहीं मानी। होलिका
हिरण्यकशिपु की बहन थी जिसे न जलने का वरदान प्राप्त था। वह हिरण्यकशिपु के कहने
पर प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ गई। कहा जाता है कि होलिका जल गई
लेकिन प्रह्लाद जीवित रहा। अंत में भगवान ने नृसिंह का रूप धारण कर हिरण्यकशिपु
का वध कर दिया।
भरत: भरत की माता का नाम कैकेई था।
उन्होंने अपने पति दशरथ के वचन के अनुसार उनसे दो वरदान माँगे। पहला अपने पुत्र
भरत के लिए राजगद्दी। दूसरा राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास। राम के प्रति ऐसी
भावना रखने के कारण भरत ने माँ का त्याग कर दिया। उन्होंने राजगद्दी का भी बहिष्कार
कर दिया।
बलि: बलि
नामक दैत्य गुरु भक्त प्रतापी और वीर राजा था। देवता उसे नष्ट करने में असमर्थ
थे। वह विष्णु भक्त था। एक बार राजा बलि ने देवताओं पर चढ़ाई करके इन्द्रलोक पर
अधिकार कर लिया। उसके दान के चर्चे सर्वत्र होने लगे। तब विष्णु वामन अंगुल का वेश धारण करके राजा बलि से दान माँगने जा पहुँचे। दैत्यों के
गुरु
शुक्राचार्य ने बलि को सचेत किया कि तेरे द्वार पर दान माँगने स्वयं विष्णु भगवान पधारे हैं। उन्हें दान मत दे बैठना, परन्तु राजा बलि उनकी बात नहीं माना। उसने इसे अपना सौभाग्य समझा कि भगवान उसके द्वार पर भिक्षा
माँगने आए हैं।
तब विष्णु ने बलि से तीन पग भूमि माँगी। राजा बलि ने संकल्प
करके भूमि दान
कर दी। विष्णु ने अपना विराट रूप धारण करके दो पगों में
तीनों लोक नाप लिया और तीसरा पग
राजा बलि के सिर पर रखकर उसे पाताल भेज दिया।
गोपियाँ: ब्रज की गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम में रँगी
हुई थीं। वे रात-दिन उनका नाम रटती थीं तथा उनकी रास लीला में सम्मिलित होने के
लिए वे
अपने पतियों को भी छोड़ आईं थीं।
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8. भिक्षुक
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला’
कवि परिचय: सूर्यकांत
त्रिपाठी 'निराला' हिन्दी कविता के आधुनिक काल के छायावादी युग के चार
प्रमुख स्तंभों में
से एक माने जाते हैं। अपने समकालीन अन्य कवियों से अलग
उन्होंने कविता में कल्पना का सहारा बहुत कम लिया है और
यथार्थ को प्रमुखता से चित्रित किया है।
रचनाएँ: ‘अनामिका’, ‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘द्वितीय अनामिका’, ‘तुलसीदास’, ‘कुकुरमुत्ता’, ‘अणिमा’, ‘बेला’, ‘नए पत्ते’, ‘अर्चना’, ‘आराधना’, ‘गीत कुंज’, ‘सांध्य काकली’ और ‘अपरा’ आपके काव्य-संग्रह हैं। ‘अप्सरा’, ‘अल्का’, ‘प्रभावती’, ‘निरुपमा’, ‘कुल्ली भाट’ और ‘बिल्लेसुर बकरिहा’ आपके उपन्यास हैं ‘लिली’, ‘चतुरी चमार’ आदि।
भाषा: जहाँ
हिन्दी भाषा पर इनका अधिकार था वहीं
अंग्रेजी, बंग्ला, संस्कृत आदि भाषाओं के भी ये ज्ञाता थे।
शब्दार्थ:
१.टूक- टुकड़ा
२.लकुटिया-
लाठी
३.दाता- देने
वाला
४.अड़े- डटे
१. वह आता /
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।/ पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,/ चल रहा
लकुटिया टेक,/ मुट६ठी भर दाने को-भूख मिताने को/मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता-/
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
क) किस भावना
से प्रेरित होकर कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों की रचना की है ?
- कवि निराला
जी ने दुखियों के प्रति सहानुभूति एवं संवेदना की भावना से प्रेरित होकर प्रस्तुत
पंक्तियों की रचना 'भिक्षुक’ कविता के अंतर्गत की है।
ख) किसके पेट
पीठ एक हो गए हैं और क्यों ?
- भिक्षुक के
पेट पीठ एक हो गए हैं क्योंकि चिरकाल से पूरा भोजन न मिल सकने के कारण उसके पेट और
पीठ एक हो चुके हैं। अर्थात उनमें पृथकता नहीं दिखाई देती। उसका शरीर बहुत दुर्बल
हो चुका है।इसलिए उसे सहारे की जरुरत है।
ग) अपनी
क्षुधा शांत करने के लिए वह क्या प्रयत्न करता है ?
- अपनी क्षुधा
शांत करने के लिए वह अपनी फटी-पुरानी झोली का मुँह फैलाए हुए भीख माँगने का प्रयत्न
करता है। मुट्ठी दो मुट्ठी अनाज की भीख माँगता है, जिससे कि वह अपनी भूख शांत कर
सके।
घ) प्रस्तुत
पंक्तियों के आधार पर भिक्षुक की दीन दशा का वर्णन कीजिए।
- प्रस्तुत
पंक्तियों के आधार पर हम कह सकते हैं कि भिक्षुक को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे एक
क्षण के लिए हृदय के दो टुकड़े हो गए हो। काफी समय से भोजन न मिलने के कारण उसके
पेट-पीठ एक जैसे हो चुके हैं। वह अपनी उम्र से ज्यादा बूढ़ा लग रहा है। दुर्बलता के
कारण वह लाठी के सहारे चलता है।
२. साथ दो बच्चे भी
हैं सदा हाथ फैलाये,
बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाये।
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?--
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए!
बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाये।
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?--
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए!
क) भिखारी के
साथ और कौन है और वे क्या कर रहे हैं?
- भिखारी के
साथ उनके दो बच्चे हैं और वे जूठी पत्तले चाट रहे हैं ।
ख) कौन आँसुओं
के घूँट पीकर रह जाते हैं और क्यों ?
- भीखारी के
भूखे बच्चे आँसुओं के घूँट पीकर रह जाते हैं क्योंकि जब वे भूख से छटपटाते हुए
किसी दाता के पास बड़ी आशा से हाथ फैलाते हैं और प्रतिउत्तर में जब उन्हें कुछ
नहीं मिलता उल्टा कभी-कभी तो उन्हें झिड़क भी दिया जाता है तो वे आँसुओं के घूँट
पीकर रह जाते हैं।
ग) भिक्षुक
कविता द्वारा कवि ने समाज की किस स्थिति पर व्यंग्य किया है ?
- भिक्षुक
कविता द्वारा कवि ने समाज की निम्न वर्ग की स्थिति पर व्यंग्य किया है। कवि का
कहना है कि समाज में असमानता व्याप्त है। एक वर्ग ऐसा है कि अत्यधिक संपत्ति
होने के कारण उसका महत्त्व नहीं जानता और उसकी बरबादी करता है दूसरा वर्ग ऐसा है
जो दाने-दाने के लिए मोहताज है। कवि का कहना है कि निम्न वर्ग के प्रति क्या समाज
का कोई दायित्व नहीं है।साथ ही कवि यह भी कहते हैं कि इस वर्ग को समाज की स्थिति
सुधारने की कोशिश करनी चाहिए।
घ) भिक्षुक
कविता आपको किस तरह प्रभावित करती है ?
- भिक्षुक
कविता हमें अत्यधिक प्रभावित करती है। समाज की दयनीय स्थिति की तरफ हमारा ध्यान
खींचती है कि किस प्रकार यह वर्ग गरीबी की मार को झेल रहा है और निरंतर गरीबी की
दलदल में धंस रहा है उस वर्ग के पास अपना पेट भरने तक के लिए खाना नहीं है। जब ये
जूठी पत्तलों द्वारा अपनी भूख मिटाने की कोशिश करते हैं तब कुत्ते उनसे वह भी
छीन लेने के लिए खड़े हो जाते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि उनकी यह स्थिति
हमें सोचने के लिए विवश कर देती है।
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9. चलना हमारा काम है
शिवमंगल
सिंह ‘सुमन’
रचनाकार परिचय: ये आधुनिक काल के
रचनाकार हैं। ये प्रगतिवादी काव्यधारा से जुड़े थे। इनके गीतों में प्रेम तथा
श्रृंगार का वर्णन है।
रचनाएँ: हिल्लोल, मिट्टी की बारात, प्रलय सृजन, आदि।
भाषा: इनकी रचनाओं की भाषा सहज तथा स्वाभाविक है।
शब्दार्थ:
१. अभिराम- सुंदर
२.वाम- विपरीत
३.प्रबल- तीव्र
४.अवरुद्ध- रुकना
५. विशद- बड़े
६. याम- समय
पंक्तियों पर आधारित प्रश्नोत्तर
१. गति प्रबल पैरों में भरी,
फिर क्यों रहूँ
दर-दर खड़ा,
जब आज मेरे
सामने
है रास्ता
इतना पड़ा।
जब तक न मंज़िल
पा सकूँ, तब-तक मुझे न विराम है।
चलना हमारा काम
है।
क) कौन, कहाँ खड़ा नहीं होना चाहता और क्यों ?
- कवि शिवमंगल
सिंह ‘सुमन’ जी किसी भी दर पर खड़े नहीं होना चाहते हैं।
कवि के अनुसार
जीवन पथ पर आगे बढ़ते रहना ही मानव का लक्ष्य होना चाहिए। उनका कहना है कि
कर्म पथ पर हमें
निरंतर गतिशील बने रहना चाहिए। वास्तव में जब-तक हमारी एक भी धड़कन जीवित
है हमें अपनी मंजिल
तक पहुँचने की कोशिश करते रहना चाहिए।
ख) ‘रास्ता इतना पड़ा’ से कवि
का क्या तात्पर्य है।
- ‘रास्ता
इतना पड़ा’ से कवि का तात्पर्य है कि जीवन में कर्म क्षेत्रों की कमी नहीं है। कवि
कहना चाहते हैं
कि यदि मनुष्य
के मन में कर्म के प्रति लगन हो तो वह अपना रास्ता स्वयं चयन करते हुए बना भी
लेगा। बस मानव
को साहस और विश्वास के साथ कर्म पथ पर बढ़ते रहना होगा।
ग) कवि ने हमें जीवन पथ पर किस तरह चलने के लिए कहा है और
क्यों ?
- कवि ने हमें जीवन
पथ पर परस्पर सहयोग से चलने के लिए कहा है। कवि हम मानव को प्रेरणा देते हुए
कहते हैं कि हमें
अपना सुख-दु:ख एक-दूसरे से बाँटना चाहिए।
कवि ने ऐसा
इसलिए कहा है क्योंकि उनका मानना है कि ऐसा करने से हमारे मन का बोझ हल्का
हो जाता है। सहजतापूर्वक
समस्या के समाधान होने की भी संभावना होती है।
घ) कवि कब तक विराम नहीं लेने की बात करते हैं और क्यों ?
- कवि तब तक विराम नहीं लेने की बात करते हैं जब तक उन्हें
उनका मंज़िल न मिल जाए।
कवि ऐसी बात
इसलिए करते हैं क्योंकि उनका मानना है कि जिस उद्देश्य़ से उन्होंने यह जीवन धारण
किया है, जिस उद्देश्य़ से वे कर्म पथ पर अग्रसर हुए हैं, उसे पूरा करना उनका धर्म
भी है।
२.मैं पूर्णता की खोज में
दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक भाग पर कुछ-न-कुछ
रोड़ा अटकता ही रहा
पर हो निराशा क्यों मुझे ? जीवन इसी का नाम है।
चलना हमारा काम है।
क) मनुष्य दर-दर क्यों भटकता है ?
अथवा
कवि ने जीवन की किस विशेषता की ओर संकेत किया है ?
- मनुष्य पूर्णता
की खोज़ में दर-दर भटकता है क्योंकि मनुष्य
का जीवन सदा अपूर्ण रहता है। जीवन में आशा-निराशा, पाना-खोना, सुख-दु:ख,
हँसना-रोना लगा रहता है। इसी चक्र में फँसकर मानव दर-दर भटकता है और यह मानव-जीवन की विशेषता भी है।
ख) कवि के अनुसार जीवन की क्या परिभाषा है ?
अथवा
‘जीवन इसी
का नाम है’- कवि ने ऐसा क्यों कहा है ?
- कवि के अनुसार जीवन में सफलता-असफलता, सुख-दु:ख तथा उन्नति
करने के मार्ग में बाधाएँ अर्थात रोड़ा भी आता रहता है। हमें उससे घबराना नहीं
चाहिए बल्कि उसे स्वीकार करते हुए हँसते हुए उसका सामना करना चाहिए। कवि के
अनुसार यही जीवन की परिभाषा है। जिस तरह से प्रकृति में परिवर्तन होता है ठीक इसी
तरह मानव जीवन में भी बदलाव आता रहताहै। अत: कवि के अनुसार इस सत्य को स्वीकार कर
लेना ही जीवन है।
ग) जीवन पथ पर किस-किस तरह के लोग मिलते हैं ?
- जीवन पथ पर कई तरह के लोग मिलते हैं। कुछ ऐसे लोग मिलते
हैं जो हमारे सच्चे मित्र बनकर अंत तक हमारे साथ रहते हैं। अर्थात हर परिस्थिति
में वह हमारा हौसला बढ़ाता है। साथ ही कुछ ऐसे लोग भी मिलते हैं जो हमारे कहने के
लिए तो मित्र बन जाते हैं लेकिन जीवन पथ की बाधाओं को देखकर वह हमारा साथ छोड़ देता
है।
घ) कविता का मूल भाव अपने शाब्दों में लिखें।
- कविता का मूल भाव जीवन की गतिशीलता को प्रस्तुत करना है।
कवि का कहना है कि जीवन में हमेशा चलते
रहना ही हमारा काम है। उनका विचार है कि जीवन गतिशील है। अत: इस गतिशील जीवन में
यदि कोई बाधा आए तो उसकी चिंता न करते हुए बल्कि उसका सामना करते हुए आगे बढ़ना
चाहिए। जिस तरह से भगवद् गीता में भी फल की चिंता न करते हुए कर्म करने की
प्रेरणा दी गई है, जिस तरह से झरना अपने मार्ग में आने वाली बाधओं को अनदेखा कर या
उसका सामना करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है , ठीक इसी प्रकार मानव को भी अपने
जीवन में निरंतर गतिशील बने रहना चाहिए। यह तो हम जानते ही हैं कि जिस दिन यह गति
रुक जाएगी, उस दिन मानव मरे हुए प्राणी के समान हो जाएगा।
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10.मातृ मन्दिर की ओर
सुभद्रा कुमारी चौहान
जन्म: 16 अगस्त 1904 निधन: 15 फ़रवरी 1948
कुछ प्रमुख
कृतियाँ
त्रिधारा, ‘मुकुल’ (कविता-संग्रह), ‘बिखरे मोती’ (कहानी संग्रह), ‘झांसी की रानी’ इनकी बहुचर्चित रचना है।
विविध
‘मुकुल’ तथा ‘बिखरे मोती’ पर अलग-अलग सेकसरिया पुरस्कार।
न होने दूँगी अत्याचार, चलो मैं हो जाऊँ बलिदान।
सुभद्रा जी ने
बहुत पहले अपनी कविताओं में भारतीय संस्कृति के प्राणतत्वों, धर्मनिरपेक्ष समाज का निर्माण और सांप्रदायिक सद्भाव का वातावरण बनाने के प्रयत्नों को रेखांकित कर दिया था-
रचनाकार परिचय: ये
आधुनिक काल की रचनाकार हैं। इनकी रचनाओं पर देशभक्ति की भावना की गहरी छाप है।
अपनी रचनाओं में इन्होंने गरीब, पीड़ित,
शोषित जनता के प्रति गहरी सहानुभूति प्रकट की है।
रचनाएँ: त्रिधारा, मुकुल (कविता-संग्रह), बिखरे मोती (सेकसरिया पुरस्कार ), झांसी
की रानी, मुकुल
सीधे-सादे चित्र आदि।
भाषा: इनकी भाषा सरल एवं सुबोध है।
शब्दार्थ: १.व्यथित- दुखी,२. सोपान-सीढ़ियाँ, ३. दुर्गम- जहाँ जाना कठिन हो,
४.पद- चरण,५.पंकज- कमल,
६.स्फूर्ति-फुर्तीलापन, ७.भार-बोझ।
प्रश्नोत्तर:
1.व्यथित है मेरा हृदय-प्रदेश,/ चलूँ, उसको बहलाऊँ आज।/ बताकर अपना सुख-दुख उसे/
हृदय का भार हटाऊँ आज।/ चलूँ माँ के
पद-पंकज पकड़/ नयन जल से नहलाऊँ आज।/ मातृ-मंदिर में मैंने कहा-/ चलूँ दर्शन कर आऊँ
आज॥/ किंतु यह हुआ अचानक ध्यान।/ दीन हूँ, छोटी हूँ, अज्ञान।/ मातृ-मंदिर का दुर्गम मार्ग।/ तुम्हीं बतला दो हे भगवान॥
क) किसका हृदय व्यथित है और क्यों ?
- कवयित्री सुभद्रा
कुमारी चौहान का हृदय व्यथित है।
कवयित्री सुभद्रा
कुमारी चौहान जब समाज में व्याप्त भारतीय संस्कृति के प्राणतत्वों
पर आघात होते हुए
पाती है तो उनका
हृदय व्यथित हो जाता है। कवयित्री जब समाज में छूआ-छूत, जाति-पाँति, अमीर-गरीब
की भावना को देखती है तो उनका हृदय व्यथित हो जाता है।
ख) कवयित्री कहाँ पहुँचना चाहती है और क्यों ?
- कवयित्री मातृ-मंदिर
तक पहुँचना चाहती है।
वहाँ पहुँचकर
वह माता को अपना सुख-दुख बताकर अपने मन का भार हल्का करना चाहती है। वह एक ऐसा
स्थान है जहाँ पहुँचकर मानव अपनी अज्ञानता मिटा देता है और ज्ञान की प्राप्ति
करता है। इसलिए कवयित्री भी वहाँ पहुँचकर ज्ञान प्राप्त कर सुख का अनुभव करना
चाहती है।
ग) कवयित्री माँ को
कैसे द्रवित करने की बात सोचती है ?
- कवयित्री माँ
के कमल समान कोमल चरणों को पकड़ कर अपने नयन जल से नहलाकर द्रवित करने की बात सोचती
है। उनका मानना है कि जब वह माँ को अपने हृदय की व्यथा सच्चे भाव से बताएगी तो
माँ द्रवित हो जाएगी।
घ) अचानक कवयित्री को क्या ध्यान आता है ?
अचानक कवयित्री को ध्यान आता है कि वह बहुत
दीन है, छोटी है, अज्ञान है, मातृ-मंदिर का मार्ग दुर्गम है। वह वहाँ तक कैसे पहुँच पाएगी।
२. कलेजा माँ का, मैं संतान/ करेगी दोषों पर अभिमान।/ मातृ-मंदिर में हुई पुकार,/
चढ़ा दो मुझको हे भगवान॥ सुनूँगी माता की आवाज,/ रहूँगी मरने को तैयार।/ कभी भी उस वेदी पर देव,/ न
होने दूँगी अत्याचार।/ न होने दूँगी अत्याचार।/
चलो मैं हो जाऊँ बलिदान।/ मातृ-मंदिर में हुई पुकार,/ चढ़ा दो मुझको हे भगवान॥
क) माँ का कलेजा कैसा होता है ?
- माँ का कलेजा
संवेदनशील होता है। उनका कलेजा ममता के भाव से परिपूर्ण होता है। वह अपनी संतान के
हर दोषों को माफ कर देती है।
ख) माता से किसकी ओर संकेत है ? उसके प्रति रचनाकार के हृदय में कैसे भाव
हैं ?
- माता से
मातृभूमि अर्थात भारत माता की ओर संकेत है। ? उसके प्रति रचनाकार के हृदय में सम्मान के भाव हैं। रचनाकार
मातृभूमि पर किसी भी तरह के अत्याचार नहीं सह सकती। उसकी रक्षा के लिए भले ही
उन्हें आत्मोसर्ग ही क्यों न करना पड़े, वह हमेशा तैयार हैं।
ग) मातृ मन्दिर तक पहुँचने का मार्ग कैसा है ?
- मातृ मन्दिर तक
पहुँचने का मार्ग बड़ा ही कठिन है। वहाँ तक जाने के मार्ग में कई पहरेदार खड़े हैं
जो मानव को वहाँ तक पहुँचने से रोकते हैं। भाव यह है कि मार्ग की परेशानियाँ, आकर्षित वस्तुएँ मानव को वहाँ तक पहुँचने
नहीं देती। वहाँ तक ले जाने वाली सीढ़ियाँ बहुत ऊँची है जिस पर चढ़ना बड़ा मुश्किल
है। इस प्रकार मातृ मन्दिर तक पहुँचने का मार्ग बड़ा ही कठिन है।
घ)
कवयित्री प्रभु से क्या सहायता चाहती है ?
- कवयित्री
प्रभु से यह सहायता चाहती है कि वे मातृमन्दिर तक पहुँचने में उनकी मदद करें। वह
उसे शक्ति प्रदान करे ताकि वह इस कठिन मार्ग को पार करके वहाँ तक पहुँच सके।
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