1. तुम समझो कि एक तरह से राज्य की ओर से हमारे वंश का
सम्मान किया जा रहा है। और वे वंशावतंस कहते हैं , ‘मुझे यह सम्मान नहीं चाहिए....।’
क) प्रस्तुत पंक्ति के वक्ता और श्रोता कौन है ? ‘वंशावतंस’ से किसकी
ओर संकेत है ?
- प्रस्तुत पंक्ति के मातुल और अम्बिका है। वहाँ मल्लिका
भी उपस्थित है। ‘वंशावतंस’ से कालीदास की ओर संकेत है।
ख) यहाँ कौन, किसे सम्मान दे रहा है ? वह सम्मान उसे क्यों
दिया जा रहा है ? वह सम्मान क्या है ? सम्मान प्राप्त
करने वाला
व्यक्ति के साथ वक्ता का क्या संबंध है ?
- यहाँ उज्जयिनी के सम्राट, कालीदास को सम्मान दे रहे हैं। वह सम्मान उसे उसकी ‘ऋतु संहार’ रचना के लिए दिया
जा रहा है। वह
सम्मान राजकवि का है। सम्मान प्राप्त करने वाला व्यक्ति वक्ता का भागिनेय है।
ग) सम्मान के प्रति सम्मान प्राप्त करने वाले व्यक्ति की
क्या धारणा है ? इससे उसके व्यक्तित्व की किस विशेषता का
पता चलता है ?
- सम्मान के प्रति सम्मान प्राप्त
करने वाले व्यक्ति की धारणा उदासीन है। उसका कहना है कि उसे वह सम्मान नहीं
चाहिए। उसका मानना है कि उसे यह सम्मान नहीं दिया जा रहा है बल्कि उसे खरीदा जा
रहा है। स्वयं उसी के शब्दों में – “ मैं राजकीय मुद्राओं से क्रीत होने के लिए
नहीं हूँ।”
सम्मान के प्रति उदासीन दृष्टि उसके महत्त्व को बढ़ा देती है। इससे उसके
लोकनीति में निष्णात होने के गुण का पता चलता है। वह राजकीय सम्मान का मोहताज नहीं
है। इससे उसके व्यक्तित्व की महत्ता ही प्रकट होती है। स्वयं अम्बिका के शब्दों
में- “ सम्मान प्राप्त होने पर्सम्मान के प्रति प्रकट की गई उदासीनता व्यक्ति के
महत्त्व को बढ़ा देती है।”
घ) पठित अंक के अधार पर मल्लिका का चरित्र-चित्रण करें।
- पठित अंक के अधार पर हम कह सकते हैं
कि मल्लिका कालीदास से स्नेह करती है। वह प्रकृति का आनंद खुल कर उठाती है। उसके
मन में पशुओं के प्रति भी प्रेम भाव है। जब वह कालीदास के हाथ में घायल हरिणशावक
को देखती है तो तुरंत ही पूछ बैठती है कि “यह आहत हरिणशावक ? यहाँ ऐसा कौन व्यक्ति
है जिसने इसे आहत किया ?”
वह कालीदास की उन्नति में बाधक नहीं
बनना चाहती है। तभी तो वह उसे समझाते हुए सम्मान स्वीकार करने के लिए कहती है। वह
उसे सम्झाती है कि उसके जाने के बाद भी वह प्रसन्न रहेगी। उसी के शब्दों में-
“हाँ ! देखना मैं तुम्हारे पीछे प्रसन्न रहूँगी, बहुत घूमूँगी और हर संध्या को
जगदंबा के मंदिर में सूर्यास्त देखने आया करूँगी...।”
वह कल्पनाशील भी है। वह अपने भावना में ही कालीदास को वरण कर लेती है।
2. क्या कहते हैं ? क्या अधिकार है
उन्हें कुछ भी कहने का ? मल्लिका का जीवन उसकी अपनी संपत्ति है। वह उसे
नष्ट करना चाहती है तो किसी को
उस पर आलोचना करने का क्या अधिकार है ?
क) कृति और कृतिकार का संक्षिप्त परिचय दें।
- कृति का नाम ‘आषाढ़ का एक दिन’ और कृतिकार का नाम मोहन राकेश है। यह एक
ऐतिहासिक आधार को लेकर लिखा गया नाटक है जिसमें प्रेम तथा राज्याश्रय नामक दो
संदर्भों पर प्रकाश डाला गया है।
ख) प्रस्तुत संवाद का प्रसंग स्पष्ट कीजिए।
- प्रस्तुत संवाद का प्रसंग मल्लिका का विवाह से संबंधित
है। नाटक की नायिका मल्लिका का विवाह कहीं निश्चित हो चुका है। उसी जगह उसकी माँ
अंबिका ने अग्निमित्र को भेजा था ताकि मल्लिका का विवाह शीघ्र कर दिया जाए।अग्निमित्र
को माँ ने वहाँ भेजा था, यह जानकर मल्लिका दृढ़ता से कहती है कि वह विवाह नहीं
करना चाहती है। यह सुन उसकी माँ अंबिका कहती है कि लगता है उसी की बात सत्य सिद्ध
होने जा रही है क्योंकि लाड़के वालों ने यह संदेश भेजा है कि वे विवाह के लिए तैयार
नहीं हैं क्योंकि मल्लिका ग्राम-प्रांतर में कालीदास से प्रेम करने के कारण एक
बदनाम लड़की है। माँ की इसी बात को सुन मल्लिका क्रोध से भर कर प्रस्तुत पंक्तियाँ
कहती है।
ग) उपर्युक्त कथन कहने के पीछे वक्ता का दृष्टिकोण क्या
है ?
- उपर्युक्त कथन
कहने के पीछे वक्ता अर्थात मल्लिका का ऐसा कहना है कि लड़के वाले को यह कहने का
कोई अधिकार नहीं है कि वह एक बदनाम लड़की है। उसका कहना है कि उसका अपना जीवन उसकी
अपनी संपत्ति है। उसके जीवन पर उसका अधिकार है। उसमें किसी और को दखल देने का या
उसके संबंध में किसी और को कुछ भी कहने का कोई अधिकार नहीं है। यदि वह कालीदास से
प्रेम करके अपने जीवन को नष्ट कर रही है तो यह भी उसी की इच्छा है। इस संदर्भ में
उसका मानना है कि किसी को कोई टीका टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है।
घ) हमारे समाज में प्रेम की परिकल्पना किस प्रकार की है ?
- हमारे समाज में
विवाह से पूर्व नर-नारी या लड़का-लड़की के संबंधों को पवित्र दृष्टि से नहीं लिया
जाता। प्रस्तुत नाटक में भी मल्लिका के कालीदास से प्रेम और उस प्रेम के कारण
ग्राम प्रांतर में होने वाली बदनामी की ओर संकेत किया गया है। इसके साथ ही भारतीय
समाज में प्रचलित मान्यता की ओर संकेत किया गया है कि कोई भी किसी बदनाम लड़की से
विवाह करने के लिए तैयार नहीं होता।
३. ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक के आधार पर कालिदास का चरित्रांकन
कीजिए।
- कालिदास मोहन
राकेश द्वारा लिखित ऐतिहासिक नाटक ‘आषाढ़ का
एक दिन’ का नायक है। उसकी पृष्ठभूमि इतिहास पर आधारित है। मोहन राकेश ने उस
इतिहास के पन्नों पर लिखित कवि को तथा उसके चरित्र को आधुनिक रंग-रेशे देकर नाट्य
रूप में प्रस्तुत किया है। कालिदास के चरित्र में हमें निम्नलिखित प्रवृतियाँ
दिखाई देती हैं :-
१. द्वंद्वग्रस्त कवि : कालिदास के चरित्र की सर्वप्रथम विशेषता उसका अंतद्र्वंद्व
है। सर्वप्रथम उसका अंतद्र्वंद्व मल्लिका
को लेकर उभरता है। वह स्वयं सर्वहारा और अभावग्रस्त है। पर वह अपनी
प्रेमिका मल्लिका के साथ घर बसाना चाहता है परंतु उसकी विपन्नता आड़े आती है।
दूसरा अंतद्र्वंद्व उज्जयिनी जाकर कवि बनने या न बनने का है। वहाँ
से निमंत्रण आने पर वह जगदंबा के मंदिर में जा छिपता है। वह सोचता है कि मल्लिका
से तथा अपनी जन्म भूमि से दूर चले जाने पर कहीं उसकी प्रेरणा छिन तो नहीं जाएगी।
स्वयं उसी के शब्दों में :
“मुझे हृदय में उत्साह का अनुभव
नहीं होता...।”
इसी द्वंद्व के कारण वह कश्मीर
जाते हुए मल्लिका से नहीं मिलने आता। उसे लगता है कि यदि वह मिलने आता तो क्या वह
लौट पाता। वह कहता है : “ मैं तब तुमसे मिलने के लिए नहीं आया, क्योंकि भय था
तुम्हारी आँखें मेरे अस्थिर मन को और अस्थिर कर देंगी। मैं उनसे बचना चाहता था।”
२. करुण हृदय : कालिदास का हृदय करुणा से भरा हुआ है। घायल
हिरणशावक के बच्चे को गोद में लेकर वह उसे
पुचकारता है।
मातुल जब उससे हिरणशावक को माँगता है और
तलवार पर हाथ रखकर उसे जाने को कहता है तो मल्लिका कहती है :- “ ठहरो राजपुरुष !
हिरण-शावक के लिए हठ मत करो। तुम्हारे लिए प्रश्न अधिकार का है, उनके लिए संवेदना
का। कालिदास नि:शस्त्र होते हुए भी तुम्हारे शस्त्र की चिंता नहीं करेंगे।
३. प्रेम-भावना : नाटककार
ने कालिदास को एक प्रगाढ़ प्रेमी के रूप में दिखाया है। वह मल्लिका से एकनिष्ठ
प्रेम
करता है। मल्लिका
के कहने पर तो वह उज्जयिनी चला जाता है। पर, वह उसे भूल नहीं पाता। वहाँ जाकर वह
जो भी लिखता है, मल्लिका के प्रेम को सामने रखकर ही लिखता है। उदाहरणार्थ :
“ मैंने जब-जब लिखने का प्रयत्न किया तुम्हारे और अपने
जीवन के इतिहास को फिर-फिर दोहराया।”
४. प्रकृति-प्रेम : कालिदास एक
प्रकृति प्रेमी भी हैं। उनकी रचनाएँ ऋतु संहार, मेघदूत आदि प्रकृति-प्रेम की ओर
संकेत
करती है। वे
स्वयं स्वीकारते हैं :
“ मैं अनुभव करता
हूँ कि यह यह ग्राम-प्रांतर मेरी वास्तविक भूमि है। मैं कई सूत्रों से इस भूमि से
जुड़ा हूँ। उन सूत्रों में तुम हो, यह आकाश और ये मेघ हैं, यहाँ की हरियाली है,
हिरणों के बच्चे हैं, पशुपाल हैं।”
५. अहं एवं व्यक्ति चेतना : कालिदास
अहं एवं व्यक्ति चेतना का सजीव मूर्ति है। वह उज्जयिनी जाकर अपनी व्यक्तिवादी
चेतना का अनुभव करता है। मल्लिका के सामने स्वीकार करता है :
“ मन में कहीं यह आशंका थी कि वह वातावरण मुझे छा लेगा और
मेरे जीवन की दिशा बदल देगा और यह शंका निराधार नहीं थी।”
इस प्रकार कालिदास का चरित्र अनेक प्रवृतियों की ओर संकेत
करता है।
४. सिद्ध कीजिए कि
‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक एक से अधिक समस्याओं को संब्द्ध करके
चलता है।
अथवा
‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक में राज्याश्रय, सर्जक का अहं तथा
नर-नारी संबंधों का दस्तावेज प्रस्तुत हुआ है। व्याख्या कीजिए।
अथवा
“मोहन राकेश ने ‘आषाढ़ का
एक दिन’ शीर्षक नाटक्में इतिहास के बहाने आधुनिक युग की समसायिक समस्याओं को उठाया
है।” इस कथन की समीक्षा करें।
अथवा
‘समस्या’ की दृष्टि से ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक किन बिंदुओं की ओर संकेत करता है। युक्तियुक्त विवेचन
कीजिए।
उत्तर- ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक में नाटककार ने एक सर्जक के अंतद्र्वंद्व,
राज्याश्रय तथा नर-नारी संबंधों का चित्रण किया है। इसमें महत्त्वाकांक्षा,
रचनाधर्मिता, शरीरी और अशरीरी के बीच चेतना की प्रवृत्ति एवं पीड़न व्याप्त है।
मल्लिका प्रकृति तथा उदात्त भावना का प्रतीक है। कालिदास का आक्रोस और मोह भंग
परिवेश से ही नहीं स्वयं अपनी समझ और प्रकृति के प्रति भी है।
अंतद्र्वंद्व और अहं भावना इस नाटक की आधार्भूत समस्या है। जब कालिदास को
राजकवि बनाने का आदेश आता है तो उसका अहं जाग जाता है। है। स्वयं उसी के शब्दों
में – “ मैं राजकीय मुद्राओं से क्रीत होने के लिए नहीं हूँ।”
नाटककार ने कालिदास के जीवन के कुछ अंशों की चर्चा करते हुए
उसके अहं की ओर संकेत किया है। उसका जीवन एक अभावग्रस्त सर्वहारा गोपालक का रहा
है\ जब वह उस अभावों से भरे जीवन से मुक्त हो जाता है, राजकवि बन जाता है,
काश्मीर का राजा बन जाता है तो वह अपनों को भूल जाता है। मल्लिका से न तो वह कभी
मिलने आता है और न ही उसे प्त्र लिखता है। यहाँ तक कि आर्थिक सहायता करने की बात
भी उसके दिमाग में नहीं आती। जब वह दोबारा साधनहीन हो जाता है तब उसे पुन: अपने
लोगों की स्मृति हो आती है।
दूसरी समस्या राज्याश्रय से संबंधित है। नाटककार यह कहना
चाहते हैं कि राजकीय मुद्राओं से खरीदा गया साहित्यकार कभी भी अपना स्वतंत्र अस्तित्व
बनाए नहीं रख सकता। राजदरबार में आते ही उसकी प्रतिभा कुंद हो जाती है। कालिदास के
संदर्भ में भीयही होता है। वह अपनी सर्जनात्मक चिंतन से हाथ धो बैठता है।
तीसरी समस्या नर-नारी संबंधों के रूप में आती है। मल्लिका
और कालिदास का निश्छल और निश्चल पवित्र प्रेम एक ओर रह जाता है और राज्याश्रय का
प्रकोप प्रबल हो उठता है।यद्यपि राज्याश्र्य में जाने की प्रेरणा स्वयं मल्लिका
देती है तथापि उसके पीछे उसकी दुर्गति भी कम त्रासद नहीं है। माँ अंबिका के
स्वर्गवास के बाद वह दाने-दाने को मुँहताज हो जाती है तो विवशता में विलोम का
आश्रय लेती है। विलोम से उसे एक पुत्री रत्न की प्राप्ति होती है। परंतु, उसके
मन-मस्तिष्क पर कालिदास ही छाया रहता है। अंत में हम उसे अनिश्चितता के धरातल पर
खड़ा देखते हैं।
राजकुमारी प्रियंगुमंजरी से कालिदास का विवाह भी इसी ओर
संकेत करता है किकालिदास के लिए प्रेम अंतिम और चरम मूल्य नहीं बन सका।
अंतत: हम कह सकते हैं कि नाटककार ने उपर्युक्त समस्याओं के
आलोक में प्रस्तुत नाटक का ताना-बाना बुनने की कोशिश की है जिसमें उन्हें सफलता भी
मिली है।
5. ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक के आधार पर मल्लिका का चरित्र-चित्रण
करें।
- मल्लिका मोहन राकेश द्वारा लिखित ऐतिहासिक नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ की नायिक है। वह स्वतंत्र चिंतन,
प्रेम-भावना, स्वाभिमान, साहसी, ममता तथा कर्त्तव्य भावना से ओत-प्रोत है।
स्वतंत्र चिंतन : मल्लिका के चरित्र की सर्वप्रथम विशेषता उसका स्वतंत्र
चिंतन है। वह कालिदास के साथ, जो कि उसका प्रेमी है, स्वच्छंदता के साथ घूमती है। वह
नहीं चाहती कि उसके जीवन के बारे में कोई भी कुछ भी कहे। जब उसे माँ से यह पता
चलता है कि जहाँ उसका विवाह तय हुआ था अब वे लोग इस विवाह के लिए तैयार नहीं हैं
क्योंकि मल्लिका ग्राम-प्रांतर में कालीदास से प्रेम करने के कारण एक बदनाम लड़की
है। माँ की इसी बात को सुन मल्लिका क्रोध से भर कर प्रस्तुत पंक्तियाँ कहती है –“क्या
अधिकार है उन्हें कुछ भी कहने का ? मल्लिका का जीवन उसकी अपनी संपत्ति है। वह
उसे नष्ट करना चाहती है तो किसी को उस पर आलोचना करने का क्या अधिकार है ?”
प्रेम-भावना : मल्लिका का प्रेम
नि:स्वार्थ भाव से परिपूर्ण है। उसका प्रेम उज्ज्वल है। यही कारण है कि जब उसके
प्रेमी कालिदास को राजकवि से सम्मानित किए जाने का प्रस्ताव आता है तो वह उसे उज्जयिनी
जाने के लिए प्रेरित करती है। अपने प्रेम की चर्चा करते हुए वह अपनी माँ से कहती
है- “मैंने भावना में एक भावना का वरण किया है।मेरे लिए वह संबंध और संबंधों से
बड़ा है। मैं वास्तव में अपनी भावना से ही प्रेम करती हूँ, जो पवित्र है, कोमल है,
अनश्वर है....।”
स्वाभिमान : स्वाभिमानिनी युवती मल्लिका
अंत तक अपने स्वाभिमान को बनाए रखने की कोशिश करती है। प्रियंगुमंजरी द्वारा रखे
गए घर के परिसंस्कार के प्रस्ताव को यह कहते हुए ठुकरा देती है कि- “आप बहुत उदार
हैं। परंतु हमें ऐसे घर में रहने का ही अभ्यास है, इसलिए हमें असुविधा नहीं होती।”
प्रियंगुमंजरी जब उसका विवाह करवाना चाहती है तो उसके अहं को चोट लगती है। वह अपने
आत्म सम्मान की रक्षा करते हुए कहती है कि “आप इस विषय में चर्चा न ही करें तो
अच्छा होगा।”
साहसी नारी : मल्लिका एक साहसी नारी है। जब गाँववाले उसके प्रेम संबंधों की चर्चा करते हैं
तब भी वह घबराती नहीं है। दंतुल द्वारा कालिदास पर दबदबा बनाए जाने पर वह उसे
फटकारते हुए कहती है-“....तुम्हें ऐसा लांछन लगाते हुए लज्जा नहीं आती ?”
उसके साहस का पता हमें तब भी मिल जाता है जब कालिदास
काश्मीर जाते समय उससे मिलने नहीं आता और विलोम अपने व्यंग्य वाणों से उस पर
प्रहार करता है। तब वह उसका तिरस्कार साहस पूर्वक करते हुए कहती हैकि- “मैं कह रही
हूँ कि आप चले जाइए। यह मेरा घर है। मैं नहीं चाहती कि आप इस समय मेरे घर में
हों।”
कर्त्तव्य बोध नारी : मल्लिका
को अपने कर्त्तव्य का बोध है। कालिदास को उज्जयिनी जाने की प्रेरणा देते समय इसी
कर्त्तव्य को निभाते हुए वह कहती है- “मैं जानती हूँ कि तुम्हारे चले जाने पर
मेरे अंतर को एक रिक्तता छा लेगी, और बाहर भी संभवत: बहुत सूना प्रतीत होगा। फिर
भी मैं अपने साथ छल नहीं कर रही। मैं हृदय से कह्ती हूँ तुम्हें जाना चाहिए...यहाँ
ग्राम प्रांतर में रहकर तुम्हारी प्रतिभा को विकसित होने का अवकाश कहाँ मिलेगा...
तुम्हें आज नई भूमि की आवश्यकता है जो तुम्हारे व्यक्तित्व कोअधिक पूर्ण बना
सके...।” इस प्रकार वह अपने कर्त्तव्य बोध के मार्ग में अपने प्रेम को बाधा नहीं
बनने देती।
अंतत: हम कह सकते हैं कि नाटककार ने मल्लिका के चरित्र को
एक सशक्त नारी के रूप में चित्रित किया है जो अंत तक हार नहीं मानती।
आषाढ़ का एक दिन : ऐतिहासिकता
मोहन राकेश द्वारा रचित नाट्य-कृति ’आषाढ़ का एक दिन’ इतिहास तथा कल्पना के योग से लिखी
गई हिन्दी की प्रसिद्ध रचना है। मोहन राकेश ने इतिहास का आश्रय लेकर उसके
काल्पनिक संदर्भों को नाटकीयता प्रदान कर दिया है । मोहन राकेश ने कहा है – “ऐतिहासिक नाटककार इतिहास की बत्ती में
कल्पना का दिया जलाकर रसानुभूति का सुंदर प्रकाश फैला देता है|’’ उनके
शब्दों में ““साहित्य
में इतिहास
अपनी यथा तथ्य घटनाओं में व्यक्त नहीं होता, घटनाओं को जोड़ने वाली कल्पनाओं
में व्यक्त होता है, जो अपने
ही एक नये और अलग रूप में इतिहास का निर्माण करती है।”
‘आषाढ़ का
एक दिन’का परिवेश ऐतिहासिक है , परंतु उसमें आज की आधुनिक समस्याओं को प्रस्तुत
किया गया है। प्रस्तुत नाटक में कालिदास व्रती, तपस्वी, महात्मा नहीं हैं बल्कि दुर्बल और सामान्य
व्यक्ति है जो दायित्वहीन, ज्ञानशून्य, स्वार्थी, आत्मसीमित, पलायनवादी कवि के रूप में सामने आता है।
मोहन राकेश ने
विश्व-विख्यात कवि कालिदास को कल्पना और मिथ की सहायता से विकसित किया है जो
सृजन शक्तियों का प्रतीक है। वह आधुनिक-युग के व्यक्ति के अंतद्र्वन्द को व्यक्त करता है जो अपनी
महत्त्वाकांक्षा के कारण राजसत्ता की मोह में पड़कर अपना सब कुछ खो देता
है।
‘आषाढ़ का
एक दिन’की कथावस्तु के अनुसार कालिदास केवल भावना के स्तर पर
मल्लिका से बंधा हुआ है
लेकिन भौतिक स्तर पर वह मल्लिका से बहुत दूर चला जाता है। अपनी प्रेयसी
मल्लिका से विवाह किए बगैर उज्जयिनी के सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के बुलावे पर राज्याश्रय
स्वीकार कर उज्जयिनी चला जाता है। वहाँ राजकुमारी प्रियंगुमंजरी से विवाह
कर लेता है और उसके पश्चात काश्मीर का शासक बन जाता है। काश्मीर जाने के
मार्ग में वह मल्लिका के ग्राम-प्रदेश से गुजरता है पर उससे मिलता नहीं है।
शासक के रूप में कवि कालिदास की सृजन-क्षमता अवरुद्ध होने लगती है। अंत
में पर्वतीय-प्रकृति-प्रेमी कालिदास का शासक के रूप में जब मोह भंग
होता है तब वह हताश और पराजित होकर मल्लिका के पास वापस लौटता है लेकिन
मल्लिका के वर्तमान रूप को देखकर पुन: मल्लिका को छोड़कर चला जाता है।
इसके विपरीत ऐतिहासिक रूप से कालिदास का चरित्र एक आदर्श चरित्र है।
कालिदास का आरंभिक जीवन
उपेक्षित और अभावग्रस्त था। कालिदास को उज्जयिनी में राजकवि का सम्मान प्राप्त
हुआ था। कालिदास का काश्मीर जाना, काश्मीर के सिहांसन को त्यागकर काशी में संन्यास लेना आदि तथ्य
इतिहास-सम्मत हैं। दन्तकथाओं के आधार पर कवि कालिदास का विवाह राजकुमारी
विद्योत्तमा से हुआ था। मोहन राकेश ने नाटक में प्रियंगुमंजरी की कल्पना विद्योत्त्मा
से की है। नाटक में अनेक ऐसे संदर्भ हैं जो कालिदास के कुमारसंभवम्, मेघदूत, अभिज्ञान शाकुंतलम् और ऋतुसंहार
के दृश्य संदर्भों को उजागर करते हैं।
निष्कर्ष में हम कह सकते हैं कि ‘आषाढ़ का एक दिन’नाटक के कथासूत्र तथा पात्र भले ही ऐतिहासिक
हो किन्तु इसमें मोहन राकेश ने वर्तमान समय की समस्या को पाठकों के
सम्मुख प्रस्तुत किया है।
मूलत: तभी उस सम्मान के प्रति उस व्यक्ति
की क्या धारणा है ?
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ReplyDeleteSimran kaur
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